Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    मां-बाप को ठेले पर बैठा तय की 550 किलोमीटर की दूरी, 11 साल के इस बच्चे के हौसले को सलाम

    By Kajal KumariEdited By:
    Updated: Mon, 01 Jun 2020 10:10 PM (IST)

    बिहार के अररिया जिले के जोकीहाट प्रखंड के एक 11 साल के बच्चे के हौसले को सभी सलाम कर रहे हैं। घायल पिता और दिव्यांग मां को ठेले पर बैठाकर 550 किलोमीटर ...और पढ़ें

    Hero Image
    मां-बाप को ठेले पर बैठा तय की 550 किलोमीटर की दूरी, 11 साल के इस बच्चे के हौसले को सलाम

    अररिया, ज्योतिष झा। 550 किलोमीटर का सफर, ठेले पर घायल पिता और एक आंख से दिव्यांग मां। 11 वर्षीय बालक तबारक अपने पिता और मां को वाराणसी से अररिया जिले के जोकीहाट ले आया। रास्ते में जिसने भी यह देखा, तबारक की हौसला-आफजाई की। कइयों ने वीडियो बनाई और उसे आज के श्रवण कुमार का नाम दे दिया। सफर आसान नहीं था। नौ दिन का सफर, पेट्रोल पंप पर रातें गुजारी। 

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    मोहम्मद तबारक ने बताया कि उनके पिता मोहम्मद इसराफिल बनारस में ठेला चलाने के साथ मजदूरी भी करते थे। मजदूरी के दौरान पैर पर पत्थर गिर गया जिसकी वजह से उनका पैर चोटिल हो गया और काम करने से वे असमर्थ हो गए। एेसे में अपने बीमार पति को देखने के लिए तबारक की मां बेचैन थीं।

    मां की बेचैनी देखकर तबारक लॉकडाउन से पहले ट्रेन से मां को लेकर बनारस चला गया। इसके लगभग एक सप्ताह बाद लॉकडाउन शुरू हो गया। लॉकडाउन में पहले से ही संकट में घिरा तबारक का परिवार बनारस में एक-एक दाने को मोहताज हो गया। एक दिन तबारक ने अपने बीमार पिता और दिव्यांग मां को ठेले पर बिठाया और घर की ओर चल पड़ा।

    ठेले पर माता-पिता को लेकर चलने के बाद उसे काफी तकलीफें हुईं। रातें रास्ते में मिलने वाले पेट्रोल पंप पर गुजरती थीं। इस दौरान किसी रात खाना बनता तो किसी रात कोई खाना दे जाता। नौ दिनों के सफर के बाद आखिरकार 11 साल का बच्चा तबारक अपने माता-पिता को लेकर अपने घर जोकीहाट पहुंचा। उसे परिवार समेत उदा हाई स्कूल में क्वारंटाइन कर दिया गया।

    जोकीहाट के विधायक ने तबारक को पांच हजार रुपये और अंगवस्त्र देकर सम्मानित किया। विधायक ने बताया कि तबारक का हौसला वाकई चकित कर देने वाला है। तबारक कक्षा दो का छात्र है। पढ़ाई में उसकी रुचि है, लेकिन गरीबी मार्ग में बाधक बनकर खड़ी है। ग्रामीणों की इच्छा है कि बिहार सरकार तबारक की पढ़ाई का खर्च उठाए।