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    बढ़ती मानसिक मंदता बनी बड़ी चुनौती: प्रदेश में दिव्यांगता का स्वरूप बदला, 14 वर्षों में संख्या में भारी इजाफा

    Updated: Wed, 03 Dec 2025 09:07 AM (IST)

    बिहार में दिव्यांगजनों की स्थिति बदल रही है। मानसिक मंदता, जो पहले चौथे स्थान पर थी, अब दूसरी सबसे बड़ी चुनौती बन गई है। विशेषज्ञों के अनुसार, कुपोषण ...और पढ़ें

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    सरकार ने दिव्यांगजनों के लिए कई योजनाएं शुरू

    जागरण संवाददाता, पटना। प्रदेश में दिव्यांगजनों की स्थिति और स्वरूप तेजी से बदल रहा है। 2011 की जनगणना में जहां मानसिक मंदता 3.69 लाख मामलों के साथ राज्य में चौथे नंबर की प्रमुख दिव्यांगता थी, वहीं विशेषज्ञों का कहना है कि पिछले 14 वर्षों में इसकी संख्या में तेज वृद्धि हुई है। यही कारण है कि वर्तमान में 40 लाख से अधिक दिव्यांगजनों में मानसिक मंदता को नेत्र दिव्यांगता के बाद दूसरी सबसे बड़ी चुनौती माना जा रहा है।

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    2011 की जनगणना में प्रदेश में कुल दिव्यांगों की संख्या 23 लाख 31 हजार थी। इनमें सबसे अधिक 5.49 लाख नेत्रहीन, 5.72 लाख श्रवण बाधित, 4.31 लाख वाणी से अक्षम और 1.70 लाख चलने-फिरने में असमर्थ लोग थे।

    मानसिक मंदता के मामले 3.69 लाख दर्ज किए गए थे। विशेषज्ञों का मानना है कि इस तेजी से बढ़ते ग्राफ के पीछे कई कारण जुड़े हैं, गर्भावस्था में कुपोषण, प्रसवकालीन जटिलताएं, संक्रमण, न्यूरोलॉजिकल रोग और सबसे बड़ी वजह प्रारंभिक निदान का अभाव।

    सबसे चिंताजनक तथ्य यह है कि जन्म के बाद बच्चों में मानसिक मंदता की शुरुआती पहचान के लिए मनोचिकित्सकों की भारी कमी है।

    कई बार बाल रोग विशेषज्ञ भी इसे समय के साथ ठीक हो जाने वाली स्थिति मानकर नजरअंदाज कर देते हैं।

    स्कूलों में सीखने-सिखाने के दौरान ही मानसिक मंदता के अधिकांश मामलों की पहचान हो पाती है, तब तक कई अवसर हाथ से निकल चुके होते हैं।

    चुनौतियों की गंभीरता को देखते हुए सरकार ने दिव्यांगता के दायरे को विस्तृत करते हुए 2016 में दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम लागू किया, जिसमें दिव्यांगता की श्रेणियां सात से बढ़ाकर 21 की गईं।

    इसके बाद से प्रदेश में दिव्यांगजनों के लिए योजनाओं का विस्तार हुआ। 2 अप्रैल 2018 को समाज कल्याण विभाग के अंतर्गत दिव्यांगजन सशक्तिकरण निदेशालय का गठन किया गया, जिसने दिव्यांगजनों के जीवन में बदलाव लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

    सरकार द्वारा मुफ्त सहायक उपकरण, आधुनिक कृत्रिम अंग, बैटरी चालित ट्राइसाइकिल, प्रशिक्षण व पुनर्वास कार्यक्रम, छात्रवृत्ति, विशेष विद्यालय, थेरेपी सेवाएं, प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए आर्थिक सहायता जैसी योजनाओं के कारण दिव्यांगजनों को नई दिशा मिली है।

    इसके साथ ही दिव्यांग-अनुकूल भवनों और परिवहन व्यवस्था की पहल तथा सरकारी नौकरियों में 4 प्रतिशत आरक्षण ने उनके अधिकारों, सम्मान और मुख्यधारा में भागीदारी को मजबूत किया है।

    विशेषज्ञों का मानना है कि मानसिक मंदता की बढ़ती चुनौती को रोकने के लिए सरकार को जन्म के साथ ही बच्चों के गहन परीक्षण और शुरुआती हस्तक्षेप की व्यवस्था मजबूत करनी होगी।

    समय पर पहचान और उपचार ही इस समस्या को बढ़ने से रोक सकता है।

    अंतरराष्ट्रीय दिव्यांगजन दिवस पर विशेष

    • 3,69,577 मानसिक मंदता दिव्यांग थे 2011 में, 14 वर्ष में तेजी से बढ़ी इनकी संख्या
    • 5,49,080 सर्वाधिक दिव्यांग थे नहीं देख पाने वाले, जन्मजात कारणों से इनकी बढ़ी संख्या
    • 40 लाख दिव्यांग हैं वर्तमान में, 2011 की जनगणना में 23 लाख 31 हजार 9 दिव्यांग थे

     

    दिव्यांगता का प्रकार संख्या
    देख नहीं पाने वाले 5,49,080
    सुनने में अक्षम 5,72,163
    बोलने में अक्षम 4,31,728
    चलने-फिरने में अक्षम 1,70,845
    मानसिक मंदता 3,69,577
    मानसिक बीमारी 89,251
    एक से अधिक प्रकार की दिव्यांगता 37,521
    अन्य प्रकार की दिव्यांगता 1,10,844

    नोट - सभी आंकड़ें 2011 जनगणना के आधार पर, उस समय कुल 23 लाख 31 हजार 9 दिव्यांगजन थे।