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    बेटे हरिलाल से अच्छे नहीं रहे गांधी के संबंध, धर्मपरिवर्तन से आहत थीं बा

    By Amit AlokEdited By: Amit Alok
    Updated: Sun, 02 Oct 2016 10:59 PM (IST)

    गांधीजी व उनके बेटे हरिलाल के रिश्ते ठीक नहीं रहे। निजी जीवन का यह दर्द गांधी व कस्तूरबा को सालता रहा। हरिलाल के धर्म परिवर्तन को लेकर बा के कुछ पत्रो ...और पढ़ें

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    पटना [अमित आलोक]। यह महात्मा गांधी के निजी जीवन का एक दुखद पहलू है। बड़े बेटे हरिलाल के इस्लाम धर्म कबूल करने से न केवल महात्मा गांधी, बल्कि उनकी पत्नी कस्तूरबा गांधी भी बेहद आहत थीं। उन्होंने इस संबंध में अपने इस पुत्र के साथ ही उसके मुसलमान दोस्तों को भी पत्र लिखा था। इन पत्रों में न केवल एक मां की ममता की बेबसी झलकती है बल्कि यह भी पता चलता है कि वह धार्मिक रूप से किस कदर सहिष्णु थीं।

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    बा ने 27 सितंबर 1936 को हरिलाल को लिखे एक पत्र में इस बात पर हैरानी जताई थी कि उसने अपना प्राचीन धर्म क्यों बदल लिया। वह इस बात को सोच-सोच कर भी बेहद दुखी होती थीं कि हरिलाल ने धर्म परिवर्तन के बाद मांस का सेवन शुरू कर दिया होगा।

    उन्होंने पत्र में लिखा था कि मुझे कई बार हैरानी होती है कि तुम कहां रहते, कहां सोते हो और क्या खाते हो। हो सकता है कि तुम मांस खाते हो। ऐसी ही अनगिनत बातों ने मेरी रातों की नींद उड़ा दी है।

    बा धार्मिक रूप से सहिष्णु थीं उसका पता भी इस पत्र से चलता है जिसमें उन्होंने हरिलाल से कहा था, 'यह तुम्हारा मामला है। लेकिन मैंने सुना है कि तुम भोले-भाले लोगों से अपना अनुकरण करने को कह रहे हो। तुम धर्म के बारे में क्या जानते हो। तुम अपनी सीमाओं को क्यों नहीं समझ रहे हो।'

    बा इस बात से भी बेहद दुखी थीं कि हरिलाल के कारण उनके पति की छवि प्रभावित हो रही है। उन्होंने पत्र में कहा भी था कि लोग इस बात से प्रभावित होते हैं कि तुम अपने पिता के पुत्र हो। मैं तुमसे विनती करती हूं कि जिंदगी में कुछ क्षण ठहरकर इन सब चीजों पर विचार करो और मूर्खतापूर्ण हरकतें बंद करो।

    अपने पिता के विशाल व्यक्तित्व के विपरीत जिंदगी भर तमाम उठा पटक झेलने वाले और लगभग भिखारी का सा जीवन बिताने वाले हरिलाल के बारे में कस्तूरबा गांधी को लगता था कि उनके मुस्लिम दोस्तों ने उसे इस्लाम ग्रहण करने के लिए प्रलोभन दिया।

    बा ने हरिलाल के मुस्लिम दोस्तों को भी 27 सितंबर 1936 को एक पत्र लिखकर कहा था कि मैं तुम लोगों की कार्रवाई को समझ नहीं पा रही हूं। मैं जानती हूं और इस बात को सोचकर खुश हूं कि बड़ी संख्या में विचारवान मुसलमान और हमारे लंबे समय से दोस्त रहे मुस्लिम मित्र इस पूरी घटना की निंदा कर रहे हैं।

    बा को कहीं न कहीं इस बात की उम्मीद थी कि धर्मातरण से उनके पुत्र का कुछ भला होगा, लेकिन उन्होंने इस पत्र में लिखा कि मेरे बेटे का भला होने के बजाय मैंने पाया है कि उसके तथाकथित धर्मातरण ने वास्तव में मामले को और बिगाड़ दिया है। कुछ लोग तो इस हद तक चले गए हैं कि उसे मौलवी का खिताब दे दिया जाए। क्या तुम्हारा धर्म मेरे बेटे जैसे व्यक्ति को मौलवी कहलाने की अनुमति देता है।

    उन्होंने उनके मुस्लिम दोस्तों को समझाते हुए लिखा था कि तुम जो कुछ भी कर रहे हो वह कतई उसके हित में नहीं है। यदि तुम्हारी इच्छा मुख्य रूप से हमारी हंसी उड़वाना है तो मुझे तुमसे कुछ नहीं कहना है।

    बा के इस पत्र में एक मां की ममता की बेबसी झलकती है। उन्होंने लिखा कि मुझे लगता है यह मेरा कर्तव्य है कि मैं तुम लोगों से भी वही बात दोहराऊं जो मैं अपने बेटे को बता रही हूं कि तुम भगवान की नजर में ठीक नहीं कर रहे हो।