अक्सर गले में दर्द, बुखार, सर्दी-खांसी तो हो सकता है थायराइडाइटिस
गले में दर्द सर्दी-खांसी से लेकर बुखार की समस्या यदि आपको लगातार रहती है तो यह थायराइड ग्रंथि के तीसरे प्रकार की समस्या थायराइडाइटिस के लक्षण हो सकते हैं। कुछ वायरल इंफेक्शन या आटो इम्यून समस्याओं के कारण इसमें थायराइड ग्रंथि ठीक से काम नहीं कर पाती और ऐसी समस्याएं सामने आती हैं।
पटना। गले में दर्द, सर्दी-खांसी से लेकर बुखार की समस्या यदि आपको लगातार रहती है तो यह थायराइड ग्रंथि के तीसरे प्रकार की समस्या थायराइडाइटिस के लक्षण हो सकते हैं। कुछ वायरल इंफेक्शन या आटो इम्यून समस्याओं के कारण इसमें थायराइड ग्रंथि ठीक से काम नहीं कर पाती और ऐसी समस्याएं सामने आती हैं। हालांकि, हाइपरथायराइडिज्म से अलग कर इसकी जांच व उपचार हर जगह संभव नहीं है। न्यूक्लियर मेडिसिन विभाग में ही इसे किया जा सकता है। एम्स पटना में जल्द ही ये जांच होने लगेंगी। हर वर्ष जनवरी माह में मनाए जाने वाले थायराइड अवेयरनेस मंथ पर यह संदेश एम्स पटना में न्यूक्लियर मेडिसिन विभाग के अध्यक्ष सह थायराइड क्लीनिक के इंचार्ज डा. पंकज कुमार ने दिया।
डा. पंकज कुमार ने बताया कि खून में थायराइड एंटीबाडी और थायराइड स्कैन से थायराइडाइटिस की सटीक जांच हो सकती है। इसमें रेडियोआयोडिन या टेक्नीशियम परटेक्नेटेट स्कैन द्वारा हाइपरथायराइडिज्म से अलग कर थायराइडाइटिस की जांच की जाती है। उन्होंने कहा कि तितली के आकार की थायराइड ग्रंथि आयोडीन का उपयोग कर टी-3 व टी-4 बनाकर शरीर के मेटाबालिज्म को नियंत्रित करती है। जब थायराइड ग्रंथि कम या ज्यादा हार्मोंस बनाने लगती है, तो कई तरह की समस्याएं होती हैं, इसे दो वर्ग में बांटा गया है।
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हाइपोथायराइडिज्म
थायराइड हार्मोन की कमी से वजन बढ़ना, जल्द थकान, पीरियड में अनियमितता व बदलाव, यौन उत्तेजना कम होना, ज्यादा ठंड लगना व गले में सूजन जैसे लक्षण उभरते हैं। गोभी, शलजम, ब्रोकली जैसे ग्वाइटरोजेन के अधिक सेवन, जीवनशैली में परिवर्तन, पिट्यूटरी ग्रंथि की समस्या या वंशानुगत कारणों से भी यह विकार हो सकता है। थायराइड फंक्शन टेस्ट में टी-3, टी-4 कम व टीएसएच का स्तर ज्यादा होने पर इसकी पुष्टि होती है और लिवो थायराक्सिन गोली दी जाती है। हर दिन सुबह खाली पेट नियमित दवा लेने से इसे नियंत्रित किया जा सकता है लेकिन दवा लेने के पौन घंटे तक कोई दूसरी दवा या अन्य चीज नहीं खानी चाहिए।
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हाइपरथायराइडिज्म
थायराइड हार्मोन की अधिकता से धड़कन में बदलाव, घबराहट, चिता, चिड़चिड़ापन, अनिद्रा, हाथ व अंगुलियों में कंपन, कमजोरी, बाल झड़ना, अचानक वजन कम होना व गले में सूजन इसके प्रमुख लक्षण हैं। कई बार इसके गंभीर होने यानी ग्रेव्ज डिजीज होने पर आंखें लाल हो जाती हैं और बाहर की तरह निकलने लगती हैं।
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थायराइड फंक्शन टेस्ट
अल्ट्रासोनोग्राफी और रेडियो सक्रिय आयोडिन या टेक्नीशियम परटेक्नेटेट थायराइड स्कैन से जांच की जाती है। एंटीथायराइड ड्रग्स व रेडियोसक्रिय आयोडिन थेरेपी या सर्जरी से इसका उपचार किया जाता है। गर्भवती महिलाओं को कुछ एंटीथायराइड दवाएं नहीं दी जाती हैं।
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गर्भ की पुष्टि होते ही
कराएं थायराइड की जांच
गर्भावस्था में थायराइड ग्रंथि से बनने वाले हार्मोन के स्तर में बदलाव होते हैं। पहले तीन माह भ्रूण के विकास के लिए हार्मोंस मां से ही मिलते हैं। इन्हीं हार्मोन से शिशु के ब्रेन व तंत्रिका तंत्र का विकास होता है। ऐसे में मां को गर्भ की पुष्टि होते ही थायराइड की जांच करानी चाहिए। जरूरत होने पर विशेषज्ञ दवाएं देकर और हर चार से आठ सप्ताह में जांच करवा गर्भावस्था के दौरान टीएचएस स्तर को स्थिर रखते हैं। वहीं, जन्म के साथ ही बच्चे की भी थायराइड जांच करानी चाहिए। कई बच्चों को जन्मजात हाइपोथायराडिज्म या इक्टोपिक थायराइड की समस्या होती है। इसमें थायराइड ग्रंथि का विकास नहीं हो पाता और शारीरिक व मानसिक विकास अवरुद्ध हो जाता है। न्यूक्लियर मेडिसिन स्कैन से इसकी जांच संभव है जो इलाज में काफी मददगार है।
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आंकड़ों में थायराइड
- 10 में एक वयस्क को देश में हाइपोथायराइडिज्म की समस्या, पुरुषों से तीन गुना ज्यादा महिला रोगी
- 4.2 करोड़ थायराइड के मरीज है देश में
- 3 में से एक मधुमेह रोगी को थायराइड की समस्या।
-1 तिहाई मरीजों को थायराइड की नहीं होती जानकारी।
- 44.3 प्रतिशत गर्भवती महिलाओं को पहले तीन माह में होती हाइपोथायराइड की समस्या