Bihar: 'अभी नहीं बोलेंगे, बात बराबरी में करनी है'; क्या राहुल की यात्रा के बीच RJD को भी मिल गया साफ संदेश?
राहुल गांधी बिहार पहुंचे हैं। राहुल गांधी ने बेगूसराय में कन्हैया कुमार की पलायन रोको-नौकरी दो पदयात्रा में हिस्सा लिया। यह यात्रा बेरोजगारी और पलायन के मुद्दे को उठा रही है। कांग्रेस बिहार में अपने जनाधार को मजबूत करने की कोशिश में है। राहुल गांधी ने इस यात्रा के माध्यम से युवाओं और सवर्णों को साधने की कोशिश की है।
विकाश चन्द्र पाण्डेय, बेगूसराय। पलायन रोको-नौकरी दो पदयात्रा पर मध्य मार्च से निकले कन्हैया कुमार का उत्साहवर्द्धन करने राहुल गांधी सोमवार को बेगूसराय पहुंचे।
इस यात्रा में राहुल की यह पहली सहभागिता रही। बेगूसराय कन्हैया का गृह जिला है तो कांग्रेस के राजनीतिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण पड़ाव भी।
संभवत: इसी कारण राहुल ने सहभागिता के लिए बेगूसराय का चयन किया। बहरहाल कांग्रेस-जनों में यह संदेश तो प्रसारित हो ही गया है।
सवर्णों में भूमिहार वर्ग से आने वाले कन्हैया को कांग्रेस बिहार में अपना युवा चेहरा बना रही और कन्हैया बेरोजगारी के साथ पलायन के मुद्दे पर जनमत जुटाने का प्रयास कर रहे।
संविधान और वक्फ की दुहाई दे रही कांग्रेस को आशा है कि अनुसूचित जाति और मुसलमानों से सीधे जुड़ाव वाले इन दो प्रसंगों के साथ बेरोजगारी के मुद्दे को हवा देकर वह बिहार में चुनावी वैतरणी पार कर जाएगी।
इन तीन ज्वलंत मुद्दों से वह अपने पुराने जनाधार सवर्ण, अनुसूचित जाति, मुसलमान के साथ उस युवा-वर्ग को साध लेगी, जिसकी संख्या चुनाव में निर्णायक हैसियत वाली हो चुकी है।
बेरोजगारी को लक्ष्य कर निकली इस यात्रा के अधिसंख्य पथिक युवा हैं। इनमें बिहार से इतर राज्यों की टुकड़िया भी हैं, जो अपनी संख्या से बूढ़ा चुकी कांग्रेस जैसी व्यंग्योक्तियों को धत्ता बता रहीं।
उमड़ आई भीड़ के बीच तीन दर्जन के लगभग घोड़े और फूल लदे दर्जन भर बुलडोजर अपनी गति में जैसे बैंड-बाजे से कोरस कर रहे थे।
सुभाष चौक से कुछ आगे सुरक्षा व्यवस्था में तैनात एक सिपाही साथी के कान में फुसफुसा रहा कि यह कन्हैया की ताकत है। यहां से 10 किलोमीटर आगे बीहट नगर परिषद में कन्हैया का अपना घर है।
वहां रविवार रात वे एक पट्टीदार के घर भोज में गए थे। बीहट वाले बताते हैं कि वहां इस ताकत को लेकर मद्धिम आवाज में कुछ नुक्ताचीं हुई थी।
उलाहना-अवहेलना तो अपने लोगों का अधिकार है! कन्हैया को इसका कोई मलाल भी नहीं कि बेगूसराय ने 2019 में उन्हें नकार दिया था और महागठबंधन की खींचतान के कारण उन्हें 2024 के लोकसभा चुनाव में दिल्ली का रुख करना पड़ा था।
पराजय वहां भी मिली, लेकिन संघर्ष का हौसला नहीं टूटा। अपने साथ-सहयोग से राहुल उस उत्साह को और बढ़ा देते हैं। यात्रियों की पिछली पांत से खींच कन्हैया को वे अपने साथ कर लेते हैं।
उम्र की ढलान पर बढ़ चले मो. मुकीम और शमीम इकबाल पुराने कांग्रेसी हैं। बता रहे कि इधर दो-ढाई दशक में ऐसी यात्रा नहीं देखी।
सच मानिए, यहां कांग्रेस में जान आ गई है। हमसे रुठे आधे सवर्ण भी अगर वापसी का मन बना लिए तो बेगूसराय को कांग्रेस का ही समझिए। वीर अवधेश गया में चाकंद से हैं। तमक कर कहते हैं कि बेगूसराय ही क्यों, गया और गया के आजू-बाजू भी।
अवधेश अग्निवीर योजना के कारण सेना में भर्ती से वंचित रह गए हैं, जबकि 2019 से 2021 के बीच चले भर्ती अभियान की सभी परीक्षाओं-अर्हताओं में वे सफल रहे थे।
उन जैसे सैकड़ों युवा गले में प्रमाण-पत्र लटकाए और हाथों में नारे लिखी तख्तियां लिए धूल उड़ाते चल रहे हैं।
जनाधार के साथ कांग्रेस के मुद्दों की पैमाइश भी करेगा बिहार का चुनाव
बिहार में कांग्रेस आज जिस संकट का सामना कर रही, वह अतीत की तुलना में कहीं अधिक गंभीर है। लोकसभा के पिछले चुनाव में उसका प्रदर्शन 2019 की तुलना में निस्संदेह अच्छा रहा था, लेकिन सीटों को लेकर मची खींचतान के कारण उसे अपने परंपरागत और संभावना वाले क्षेत्र का मोह छोड़ना पड़ा था।
इस बार उसकी पुनरावृत्ति न हो, इसलिए राहुल बिहार पर फोकस किए हुए हैं। लोकसभा चुनाव के बाद वे तीसरी बार बिहार आए हैं।
चुनाव से पहले वे भारत जोड़ो न्याय यात्रा के क्रम में दो बार बिहार आए थे। तब उनकी यात्रा सात लोकसभा क्षेत्रों से होकर गुजरी थी। उनमें से एकमात्र अररिया को छोड़ छह में महागठबंधन विजयी रहा।
वे सीटें सीमांचल और मगध-शाहाबाद की थीं और विजयश्री में कांग्रेस के परंपरागत जनाधार का भी कुछ योगदान रहा था।
अब आगे विधानसभा चुनाव है, जिसके लिए रणनीतिक पृष्ठभूमि तैयार करने के उद्देश्य से पलायन रोको-नौकरी दो यात्रा निकली गई है।
जनाधार की जीवंतता से रणनीति सटीक होगी। संविधान, आरक्षण और वक्फ के मुद्दे की पैमाइश भी इसी चुनाव में होनी है।
संयोग से महागठबंधन के नेतृत्वकर्ता राजद भी इन मुद्दों पर मुखर है। ऐसे में राहुल इस आंदोलन में कन्हैया को अकेले नहीं छोड़ सकते थे, क्योंकि उनके प्रति राजद की बेरुखी सर्वविदित है।
राहुल सुभाष चौक से कपस्या तक दो किलोमीटर पैदल चले हैं। जोश ऐसा कि सामान्य गति वालों को साथ निभाने में दौड़ लगानी पड़ रही।
दौड़ते लोगों के हाथों में झंडे का रुआब कुछ और बढ़ जाता है। राहुल उन्हें देख आश्वस्त हो रहे हैं। वे आंखों से ही सहयात्रियों को अनवरत रहने का संकेत कर जाते हैं।
खिचड़ी दाढ़ियों वाले रघुवर दास अपना चप्पल हाथ में लिए दौड़ रहे। फीता टूट गया है और नई खरीद लेने की अभी बखत नहीं, लेकिन राजनीति का संकेत खूब समझते हैं।
छेड़ने पर हाथ झटक कहते हैं कि राहुल अभी नहीं बोलेंगे, क्योंकि बात बराबरी में करनी है। उनका इशारा संभवत: राजद की ओर है।
सच्चाई चाहे जो कुछ भी हो, लेकिन बेगूसराय में सार्वजनिक तौर पर राहुल एक शब्द नहीं बोले। न संबोधन-उद्बोधन और न ही संवाद-प्रतिवाद।
वे गाड़ी से उतर पदयात्रियों के बीच लपकते हुए आए और सीधे आगे बढ़ते गए। रस्सियों की घेराबंदी के बाहर से भीड़ उचककर एक नजर देख लेना चाह रही थी।
सहयात्रियों के पदचाप के बीच सड़क से धूल के बगुले उठते रहे। सुबह तक सामान्य दिनचर्या वाले बेगूसराय में यह शुक्रवार पूर्वाह्न का माहौल था।
बीच आसमान की ओर बढ़ रहे सूरज की किरणें सीधे सिर पर पसर जातीं, लेकिन झीझी-झीनी हवाएं उन्हें नचाकर दाएं-बाएं कंधे पर उतार दे रहीं। फिर भी चेहरे पर पसीना चुचुआ आया है।
उस पसीने से जाकर गेंदा की कुछ पंखुड़ियां माथे पर चिपक गई हैं। लाउड-स्पीकर वाले वाहन से बजते गाने के बोल (हर सफर के साथी राहुल हैं) पर नगदाहा की नीतू देवी ठिठक जाती हैं।
कहती हैं कि चुनाव तक ऐसे कितने दावे-वादे होंगे, गिनती नहीं! असली प्रश्न यह कि वादे पूरे कौन करेगा! प्रश्नवाचक मुद्रा में वे अपना हाथ उस बुलडोजर की ओर उठा देती हैं, जिससे फूल बरसाए गए थे।
उसका डोंगा अब धरती पर मुंह टिकाए है और उसमें भरी फूलों की पंखुड़ियों का एक तिहाई हिस्सा ज्यों का त्यों रह गया है।
नीतू आशंका को और घनीभूत कर देती हैं। जो लोग फूल फेंकने में थक जा रहे, वे सड़क पर क्या संघर्ष करेंगे। नीतू के इस आईने में बिहार कांग्रेस का अक्श उभर आता है।
यह भी पढ़ें-
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।