लोकसभा चुनाव के बाद पहली बार सार्वजनिक रूप से एक साथ होंगे राहुल और तेजस्वी, निकलेंगे पैदल मार्च पर
महागठबंधन के प्रयासों के बावजूद राहुल गांधी और तेजस्वी यादव चुनाव की तैयारी में पहली बार एक साथ दिखेंगे। वे पटना में चक्का जाम में भाग लेंगे जो श्रम संहिता और मतदाता सूची के पुनरीक्षण के खिलाफ है। राहुल और तेजस्वी 14 महीने बाद सार्वजनिक रूप से साथ दिखेंगे पिछली बार लोकसभा चुनाव में मंच साझा किया था।

राज्य ब्यूरो, पटना। महागठबंधन की एकजुटता का हर संभव प्रदर्शन-प्रयास करने के बावजूद विधानसभा चुनाव की तैयारियों के क्रम में राहुल गांधी और तेजस्वी यादव अब तक किसी कार्यक्रम में साझेदार नहीं हुए थे। ऐसा तब जबकि लोकसभा चुनाव के बाद राहुल पांच बार बिहार आ चुके हैं।
राहुल के इन दौरे के बीच ही कन्हैया कुमार की नौकरी दो पदयात्रा भी हुई थी। उसमें भी तेजस्वी साथ नहीं दिखे, जबकि नौकरी-रोजगार राजद का भी प्रमुख मुद्दा है। दोनों नेताओं के इस रुख को लेकर राजनीतिक गलियारे में अब तक कानाफूसी हो रही थी, जिस पर अब विराम का अवसर बन आया है।
बुधवार को होने वाले चक्का जाम में पटना की सड़क पर दोनों एक साथ दिखेंगे। श्रम संहिता के विरुद्ध आहूत इस आंदोलन का एक महत्वपूर्ण कारण अब मतदाता-सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) भी बन गया है। राजद इसके विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय तक पहुंच गया है।
राहुल और तेजस्वी लगभग 14 माह के अंतराल के बाद सार्वजनिक आयोजन में एक साथ दिखेंगे। पिछले वर्ष लोकसभा चुनाव के दौरान दोनों आखिरी बार पाटलिपुत्र संसदीय क्षेत्र में मंच साझा किए थे। वह अवसर मीसा भारती के चुनाव प्रचार का था।
मीसा जीत गईं और औरंगाबाद मेंं राजद के अभय कुशवाहा भी जीते। औरंगाबाद कांग्रेस की परंपरागत सीट थी, जिस पर राजद का मोल-तोल कांग्रेस नेतृत्व को रास नहीं आया। उस पर पूर्णिया का पचड़ा भी रहा। एक समय तो यह अंतर्द्वंद्व चरम पर पहुंचता प्रतीत हो रहा था, लेकिन विधानसभा चुनाव ने उस पर विराम लगाया। उसके लिए पहल राजद को ही करनी पड़ी।
राहुल से मिलने के लिए तेजस्वी इस वर्ष 15 अप्रैल को दिल्ली गए। तब दोनों के बीच सीटों के तालमेल और महागठबंधन से जुड़े विभिन्न मुद्दों पर चर्चा हुई थी। उसके बाद भी राहुल बिहार आए, लेकिन तेजस्वी दूर-दूर ही रहे। इस बीच कांग्रेस के दबाव पर महागठबंधन की समन्वय समिति भी बन गई, लेकिन चुनावी तैयारी समन्वित रूप से परवान चढ़ते नहीं दिखी।
अलबत्ता चुनाव फिक्सिंग के संदर्भ में राहुल के आरोपों से हामी भरकर तेजस्वी ने एक बार फिर एकसुर होने का प्रयास किया। वह तारीख आठ जून थी। उसके माह भर बाद अब सड़क पर एक साथ उतरने की नौबत बन आई है।
यह चक्का जाम वस्तुत: मजदूर संगठनों का आंदोलन था, जिसे वामदलों के दबाव में महागठबंधन ने सक्रिय समर्थन दिया। एसआइआर के कारण अब इसका मूल कारण गौण हो गया है और हड़ताल के अगुवा भी नेपथ्य में हो गए हैं।
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