पटना एम्स की ओपीडी में डॉक्टर को दिखाने को 4 बजे सुबह से लगती कतार, एक माह बाद होती जांच
राजधानी स्थित एम्स पटना रेफर होने पर गंभीर रोगियों के स्वजन के चेहरे पर नई उम्मीद जाग जाती है मगर यहां जिन परेशानियों बेबसी से सामना होता है वे खुद को अस्पताल के बजाय भूलभुलैया में फंसा पाते हैं। नए रोगियों ने यदि सुबह 10 बजे के पहले आभा पंजीयन नहीं कराया तो उस दिन उनका इलाज नहीं ही होगा।

नकी इमाम, फुलवारीशरीफ। एम्स यानी अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान जब पटना के फुलवारीशरीफ में खुला था, तब प्रदेशवासियों को लगा था अब उत्कृष्ट उपचार के लिए दिल्ली एम्स या बड़े निजी अस्पतालों की दौड़ नहीं लगानी पड़ेगी। यह विश्वास अब भी कायम है, इसलिए सुदूर जिलों से सैकड़ों मरीज प्रतिदिन ओपीडी या इमरजेंसी में आते हैं।
एम्स पटना रेफर होने पर गंभीर रोगियों के स्वजन के चेहरे पर नई उम्मीद जाग जाती है मगर, यहां जिन परेशानियों, बेबसी से सामना होता है, वे खुद को अस्पताल के बजाय भूलभुलैया में फंसा पाते हैं। इमरजेंसी में बेड खाली नहीं है कल आना, यहां के कर्मियों का ऐसा कथन है जो मरीज को दो-चार दिन दौड़ाने के बाद निजी अस्पताल में ही समाप्त होता है।
ओपीडी में नए रोगियों ने यदि सुबह 10 बजे के पहले आभा पंजीयन नहीं कराया तो उस दिन उनका इलाज नहीं ही होगा। कहीं डाक्टर ने सीटी स्कैन, एमआरआइ जांच लिखी तो न्यूनतम एक माह बाद और सर्जरी का नंबर कुछ माह से एक साल बाद तक दिया जाता है। ऐसे में डाक्टर व कर्मचारी खुद मरीजों को निजी अस्पतालों के नाम बता जाने का परामर्श देते दिखते हैं।
खुले आसमान के नीचे रात बिता सुबह से लगाते कतार
सुदूर जिलों से एम्स की ओपीडी में पहली बार आने वाले मरीज, एक दिन में इलाज नहीं करा पाते। कारण डाक्टरों से दिखाने के लिए जरूरी आभा पंजीयन सुबह आठ से 11 बजे तक ही होता है। यही नहीं 10 से 11 बजे के बीच पंजीयन कराने वालों को फाइल बनवाने की कतार में इतना समय लग जाता है कि 12.30 बज जाते हैं और काउंटर बंद हो जाता है।
जिनकी फाइल बन गई और उसी दिन डाक्टर से दिखा लिया तो कोई बड़ी बात नहीं है। यदि आपको डाक्टर ने एमआरआइ, सीटी स्कैन, अल्ट्रासाउंड जांच की पर्ची दे दी तो आप बड़ी मुसीबत में फंस गए। इन जांचों के लिए मरीजों को बुधवार को न्यूनतम 34 दिन बाद का नंबर दिया जा रहा है। सीटी स्कैन काउंटर पर डाक्टर की पर्ची लेकर खड़ी पूनम देवी कर्मचारी से उलझी हुई थीं।
कारण कर्मचारी उन्हें 18 जुलाई यानी 34 दिन बाद जांच के लिए आने को कह रहा था। वह लाख चिल्लाईं कि दर्द अभी है एक माह बाद जांच कराने के लिए बचेंगे, इसकी गारंटी है, पर इसका उन्हें कोई जवाब नहीं मिला। इसी तरह अल्ट्रासाउंड कराने पहुंची इंदू देवी को एक माह बाद का नंबर दिया गया। उन्होंने बाहर जांच कराने की बात पूछी तो कर्मचारी ने कहा कि डाक्टर नहीं मानेंगे, यहीं करानी होगी।
दो दिन में नहीं बदला बेड खाली नहीं का जवाब
नेशनल मेडिकल कमीशन का नियम है कि कोई भी अस्पताल गंभीर रोगियों की हालत किए बिना उन्हें रेफर या भर्ती करने से मना नहीं कर सकता। इसके विपरीत एम्स् पटना की इमरजेंसी में अलग व्यवस्था है। सुदूर जिलों से रेफर होकर आए मरीजों को एंबलेंस या स्ट्रेचर पर लिटाकर रखा जाता है, एक बार कागज देखने के बाद डाक्टर-कर्मी आते हैं तो सिर्फ यह बताने की बेड खाली नहीं है, रात को या कल देखिएगा।
बुधवार को भागलपुर से आए मनोज कुमार, पीएमसीएच से रेफर होकर आए ब्रेन हैमरेज के दो मरीज इंतजार कर रहे हैं, उन्हें बताया गया है कि अभी बेड खाली नहीं है। स्वजन ने बताया कि कल भी आए थे तो यही जवाब मिला और आज भी यही कहा जा रहा है। कल तो शाम होने पर खुद कर्मचारियों ने दो अस्पतालों के नाम बताकर वहां जाने को कहा और अगले दिन अकेले आकर बेड की जानकारी लेने की सलाह दी। मरीजों को एंबुलेंस से उतारने के लिए स्ट्रेचर तक नहीं मिलते हैं।
ओपीडी सेवा, जांच व इमरजेंसी की समस्याएं हमारे संज्ञान में हैं। ओपीडी में जितने भी रोगियों का पंजीयन होता है, चिकित्सक देर शाम तक सभी को देखने के बाद ही चैंबर छोड़ते हैं। रोगियों के विश्वास और बड़ी संख्या को देखते हुए हम ओपीडी व जांच सुविधाएं बढ़ाने की दिशा में काम कर रहे हैं। इमरजेंसी में रेफर होकर आने वाले रोगियों की सुविधा के लिए 250 बेड का क्रिटिकल केयर वार्ड तैयार हो रहा है। दो से ढाई माह में इसके तैयार होने के बाद इमरजेंसी रोगियों को काफी राहत मिलेगी।
डा. सौरभ वार्ष्णेय, निदेशक एम्स पटना व देवघर
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।