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    सांस संबंधी बीमारियों की जल्द पहचान के लिए पहले ही करवा लें ये काम, वरना होगा बड़ा नुकसान!

    By Jai Shankar Bihari Edited By: Rajesh Kumar
    Updated: Sun, 20 Jul 2025 11:42 AM (IST)

    आईजीआईएमएस पटना में पल्मोनरी फंक्शन टेस्ट पर एक कार्यशाला का आयोजन किया गया। इसका उद्देश्य अस्थमा सीओपीडी जैसे रोगों की शुरुआती पहचान और फेफड़ों की कार्यक्षमता का आकलन करना है। युवा डॉक्टरों को आधुनिक तकनीकों का प्रशिक्षण दिया गया जिससे वे बेहतर इलाज कर सकें। विशेषज्ञों ने जाँच के महत्व पर जोर दिया ताकि गंभीर बीमारियों से बचा जा सके।

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    आईजीआईएमएस पटना में पल्मोनरी फंक्शन टेस्ट पर एक कार्यशाला का आयोजन किया गया। फाइल फोटो

    जागरण संवाददाता, पटना। अस्थमा, सीओपीडी, ब्रोंकाइटिस, एलर्जी, फेफड़ों में फाइब्रोसिस, सांस लेने में तकलीफ और सर्जरी से पहले जोखिम आकलन के लिए पल्मोनरी फंक्शन टेस्ट जरूरी है। यह जांच शुरुआत में ही बीमारी की पहचान करने और दवा या इलाज की प्रभावशीलता का आकलन करने में मदद करती है। इससे फेफड़ों की बिगड़ती स्थिति पर नजर रखने और सर्जरी या अन्य इलाज में कितना जोखिम हो सकता है, इसकी भी जानकारी मिलती है।

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    युवा डॉक्टरों को इन सभी पहलुओं की जानकारी देने के लिए शनिवार को आइजीआइएमएस के पल्मोनरी मेडिसिन विभाग में पल्मोनरी फंक्शन टेस्ट पर एक दिवसीय हैंड्स ऑन कार्यशाला का आयोजन किया गया।

    विभागाध्यक्ष डॉ. मनीष शंकर और डॉ. ऐजाजी अहमद की देखरेख में इसका आयोजन किया गया। इसका मुख्य उद्देश्य फेफड़ों से संबंधित बीमारियों की पहचान करना और आधुनिक जांच तकनीकों की जानकारी देना था।

    कार्यक्रम का उद्घाटन संस्थान के निदेशक डॉ. बिंदे कुमार ने किया। इसमें प्रतिभागियों को पल्मोनरी फंक्शन टेस्ट की तकनीकों का अभ्यास कराया गया। उन्हें वास्तविक केस स्थितियों के माध्यम से जांच प्रक्रिया को समझने का अवसर मिला।

    इस अवसर पर फेफड़ा रोग विशेषज्ञ डॉ. सुधीर कुमार, पीएमसीएच के मेडिसिन विभागाध्यक्ष डॉ. नरेश कुमार, डॉ. पीके अग्रवाल, डॉ. बीके चौधरी, डॉ. अरशद अहमद और आईजीआईएमएस के मेडिसिन विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. मनोज कुमार चौधरी समेत कई वरिष्ठ चिकित्सक उपस्थित थे।

    डॉ. मनीष शंकर ने कहा कि फेफड़ों की कार्यक्षमता की समय-समय पर जाँच न केवल गंभीर बीमारियों से बचाती है, बल्कि भविष्य में अस्थमा, सीओपीडी जैसी बीमारियों के खतरे को भी कम करती है। उन्होंने कहा कि इस प्रशिक्षण से छात्रों को मरीजों की स्थिति को बेहतर तरीके से समझने और इलाज की दिशा तय करने में मदद मिलेगी।