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    Bihar Politics: राजनीतिक दलों से जुड़े हैं लाखों वकील SIR के प्रति नहीं हैं सजग; BLO को जागरूक करने में फिसड्डी

    आगामी विधानसभा चुनाव के लिए मतदाता सूची पुनरीक्षण पर राजनीतिक दलों के आरोप निराधार हैं। राजनीतिक दल अपने कार्यकर्ताओं को दावे और आपत्तियां दर्ज कराने के लिए जागरूक नहीं कर रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने भी इस मामले में दलों को फटकार लगाई है। निर्वाचन आयोग ने इस संबंध में आवश्यक दिशा-निर्देश जारी किए हैं और दलों से सहयोग की अपेक्षा की है।

    By Raman Shukla Edited By: Piyush Pandey Updated: Thu, 28 Aug 2025 11:20 PM (IST)
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    प्रस्तुति के लिए इस्तेमाल की गई तस्वीर। (जागरण)

    रमण शुक्ला, पटना। विधानसभा चुनाव को लेकर निर्वाचन आयोग की ओर से कराए गए मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण ( एसआईआर) के विरुद्ध राजनीतिक दलों के आरोप बेशुमार हैं। पर, सच्चाई की कसौटी पर खरे नहीं उतर रहे हैं।

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    इसके पीछे कारण दलों के कर्णधारों का जनता एवं समर्थकों के लिए दावे-आपत्तियों से संबंधित घोषणा पत्र भरवाने में दायित्व की उपेक्षा है। विशेषकर एसआईआर का विरोध करने वाले कांग्रेस-राजद जैसे दलों के अंदर हजारों की संख्या में वकील कार्यकर्ता हैं।

    दायित्व के प्रति सभी दलों के वकील कार्यकर्ता अगर थोड़ा भी सजग होते तो सुप्रीम कोर्ट संभवत: टिप्पणी करने एवं मान्यता प्राप्त दलों को पक्षकार बनाने का आदेश नहीं देना पड़ता।

    दरअसल, सभी दलों के अंदर वकीलों के लिए संगठनात्मक इकाई है। इससे जुड़े वकील ही पार्टी की सरकार बनने पर अनुमंडल कार्यालय से लेकर जिला एवं राज्य स्तर के विभिन्न कार्यालयों में सरकारी वकील, जिला एवं सत्र न्यायालय में लोक अभियोजक (पीपी), अतिरिक्त/सहायक लोक अभियोजक (एपीपी) बनाए जाते हैं।

    इन्हें सरकार की ओर से आपराधिक मामलों की पैरवी करने का अधिकार होता है। इसके अतिरिक्त स्टैंडिंग काउंसल / पैनल लायर विभिन्न विभागों, निगमों, बोर्डों आदि का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील बनाए जाते हैं।

    अगर शीर्ष पद की बात करें तो सालिसिटर जनरल / एडिशनल सालिसिटर जनरल (केंद्र स्तर पर)सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार का पक्ष रखने वाले वरिष्ठ वकील होते हैं। इसी उद्देश्य के साथ लाखों वकील दलों के विचारधारा को आधार बनाकर सक्रिय सदस्य के रूप में जुड़े रहते हैं।

    घोषणा पत्र का प्रारूप है निर्धारित

    एसआईआर के उपरांत दावे एवं आपत्तियां दर्ज कराने के लिए आयोग द्वारा निर्धारित प्रारूप बूथ लेवल अधिकारियों (बीएलओ) को उपलब्ध कराया गया है। बीएलओ के माध्यम से बीएलए प्राप्त कर सकते हैं। आयोग के निर्देशानुसार प्रत्येक बीएलए प्रतिदिन अधिकतम 10 दावा/आपत्ति प्रपत्र (अर्थात कुल अधिकतम 30 प्रपत्र) ही जमा कर सकता है।

    ऐसे प्रत्येक मामले में बीएलए के माध्यम से सत्यापित फार्म 6, 7, या 8 संलग्न होना चाहिए तथा अग्रसारण पत्र में स्पष्ट रूप से उल्लेख होना चाहिए कि संबंधित फार्म संलग्न है।

    अब तक दावे एवं आपत्तियां एवं अन्य मामलों के लिए प्राप्त आवेदन बिना घोषणा प्रपत्रों के प्राप्त हुए हैं, जो निर्धारित प्रक्रिया के अनुरूप नहीं है।

    दलों के बीएलए से घोषणा पत्र भरवाने के लिए मुख्य निर्वाचन अधिकारी कार्यालय ने सभी मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों को अलग-अलग पत्र जारी कर स्पष्ट अनुरोध कर चुका है। यही नहीं, सीईओ की ओर से राजनीतिक दलों की बैठक में भी

    कई बार ध्यान आकृष्ट किया गया लेकिन एसआईआर में विसंगतियां गिनाने वाले दल अपने बीएलए को जागरूक करने में फिसड्डी होते दिख रहे हैं।

    सुप्रीम कोर्ट दलों को लगा चुका है फटकार

    सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया है कि प्रत्येक दल अपने-अपने बूथ लेवल एजेंट (बीएलए) के माध्यम से गांव, पंचायत, प्रखंड एवं विधानसभा स्तर पर सक्रिय भूमिका निभाए। बीएलए मतदाताओं को दावे- आपत्तियां दर्ज कराने में सहयोग करें और आवश्यक दस्तावेज संलग्न कराएं।

    राजनीतिक दलों द्वारा बिहार में 1 लाख 60 हजार से अधिक बीएलए मनोनीत किए गए हैं। शीर्ष कोर्ट के आदेश के बाद यह भी बताया जा रहा है कि यदि प्रत्येक बीएलए रोजाना 10 नामों की सूची जमा कराने में मदद करें, तो पांच दिनों में ही सभी नामों का सत्यापन संभव हो जाएगा। आपत्ति दर्ज कराने की अंतिम तिथि एक सितंबर निर्धारित की गयी है।