भिखारी ठाकुर की प्रतिज्ञा ने समाज और जीवन को दी नई दिशा
गीतों में आम जन की पीड़ा के साथ पति के वियोग में पत्नी का दर्द दिखा
पटना। ठेठ भोजपुरी गीत। गीतों में आम जन की पीड़ा के साथ पति के वियोग में पत्नी का दर्द, तो दूसरी ओर जाति-व्यवस्था के खिलाफ आवाज बुलंद करने का साहस। बिहार के ग्रामीण अंचल को जीवंत करते दृश्य एक-एक कर मंच पर आकार ले रहे थे। 'हाय-हाय राजा कैसे कटिये सारी रतिया, जबले गइले राजा सुधियो ना लिहले, लिखिया ना भेजे पतिया, पियवा गइले कलकतवा ए सजनी' जैसे गीत के बहाने भोजपुरी भाषी क्षेत्र की दीर्घकाल से चली आ रही पीड़ा पलायन का दर्द भी कलाकारों ने बखूबी बयान किया। यह नजारा शुक्रवार को कालिदास रंगालय में देखने को मिला। बिहार आर्ट थियेटर के 58वें स्थापना दिवस के मौके पर विश्वा, पटना के बैनर तले मधुकर सिंह लिखित एवं वरिष्ठ रंगकर्मी राजेश राजा के निर्देशन में 'कुतुबपुर के भिखारी ठाकुर' नाटक की प्रस्तुति सभागार में हुई। कलाकारों ने अपने भाव-भंगिमा से भोजपुरी के शेक्सपियर कहे जाने वाले भिखारी ठाकुर की जीवनयात्रा का वर्णन कर दर्शकों का मनोरंजन कराया।
ये थी कहानी -
छपरा के दलसिंगार ठाकुर के घर भिखारी ठाकुर का जन्म होता है। बेटे के जन्म होने से घर-परिवार में खुशियों की लहर दौड़ती है। पिता दलसिंगार ठाकुर और माता शिवकली देवी बच्चे के जन्म से खुश होते हैं। माता-पिता ने प्यार से अपने बेटे का नाम मंजिउरवी ठाकुर रखा था, लेकिन गांव के जमींदार लोगों ने कहा कि नाम बहुत टेढ़ा है, इसलिए इसे भिखरिया बुलाया करो। भिखारी जैसे-जैसे बड़ा होता जा रहा था, वह पढ़ाई-लिखाई से कोसों दूर भागता था। उसे लोगों की हजामत करने का भी कोई शौक नहीं था। मां-बाप के कहने पर भिखारी गांव के जमींदार हरखू सिंह के यहां हजामत करने को जाता है, लेकिन वहां उसका अपमान कर भगा दिया जाता है। अपने अपमान का बदला लेने के लिए भिखारी कसम खाता है और पूरे जीवन किसी की हजामत नहीं करता। कुछ समय बाद भिखारी का विवाह होता है। इसके बाद बेटा शिलानाथ और पत्नी मंतुरना को छोड़कर कोलकाता की ओर रूख करता है। बचपन के दिनों में रामायण पाठ का असर भिखारी के ऊपर खूब होता है और वह कोलकाता से वापस लौटने के बाद अपनी एक नाच पार्टी बनाता है। नाच पार्टी बनाने के बाद भिखारी अपने साथी कलाकारों के साथ सामंती व्यवस्था के खिलाफ गीत-नाच कर व्यवस्था पर चोट करते रहता है। कलाकारों ने अपने अभिनय के जरएि भिखारी के बचपन के दिनों का खूबसूरत चित्रण कर दर्शकों को देर तक प्रेक्षागृह में रोके रखा।
ये थे कलाकार : मंच पर प्रस्तुति देने वाली टीम में तरुण कुमार, संदीप कुमार, श्रेया, हरेंद्र कुमार, सुधांशु शेखर, जगदीप यादव, प्रिया, प्रिंस राज ओम, हर्ष कुमार राय, उज्जवल सिंह, यतेंद्र कुमार, नितिन कुमार, पंकज कुमार तिवारी, गौतम कुमार, अभिषेक मेहता, राणा प्रताप सिंह आदि शामिल थे।
मंच परे कलाकार -
रूप सज्जा - आदिल रशीद, वस्त्र विन्यास - मोहम्मद सद्दन, मंच व्यवस्था - यतींद्र नितिन का सहयोग रहा।
कालिदास रंगालय में आज -
प्रवीण सांस्कृतिक मंच पटना के बैनर तले विजेंद्र कुमार टॉक के निर्देशन में 'कुच्ची का कानून' का मंचन।

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