जानिए दुनिया में कब और कैसे आया ये 'प्लास्टिक', क्यों है हानिकारक
प्लास्टिक हमारी रोजमर्रा की जरुरतों में इस कदर शामिल है कि हम सुबह जगते और रात के सोते तक इसे किसी ना किसी रूप में इस्तेमाल करते ही हैं। जानिए प्लास्टिक की कहानी....
पटना, काजल। प्लास्टिक, एक शब्द जो आज सबकी जरुरत है और हमारे दिनचर्या में इस कदर शामिल है कि हम इसे नकार नहीं सकते। हमारे जीवन में सुबह से शाम तक प्लास्टिक से बनीं इतनी चीजें शामिल रहती हैं कि इन्हें अगर हम निकाल दें तो दुनिया ही अधूरी लगने लगे।
बच्चों के खिलौने हों, दूध या पानी पीने की बोतलें हों, खेल के सामान हों, जूते और यहां तक कि कपड़ों तक में आज प्लास्टिक प्रयोग में लाई जा रही है। 1960 में दुनिया में 50 लाख टन प्लास्टिक बनाया जा रहा था, आज यह बढ़कर 300 करोड़ टन के पार हो चुका है। यानी हर व्यक्ति के लिये करीब आधा किलो प्लास्टिक हर वर्ष बन रहा है।
कब और कैसे आया दुनिया में प्लास्टिक
अब सवाल ये उठता है कि प्लास्टिक आखिर दुनिया में क्यों और कब आया? प्लास्टिक की कहानी बहुत पुरानी है। जानकारी के मुताबिक 1600 ईसा पूर्व में प्राकृतिक रूप से रबर के पेड़ों से मिलने वाले रबर, माइक्रोसेल्यूलोज, कोलेजन और गैलालाइट आदि के मिश्रण से प्लास्टिक जैसी किसी चीज को तैयार किया गया था, जिसका इस्तेमाल बॉल, बैंड और मूर्तियां बनाने में किया जाता था।
आज हम जिस आधुनिक प्लास्टिक के विविध रूपों को देख रहे हैं, उसके आरम्भिक आविष्कार का श्रेय ब्रिटेन के वैज्ञानिक अलेक्जेंडर पार्क्स को जाता है। उन्होंने इसे नाइट्रोसेल्यूलोज कहा, जिसे उनके सम्मान में पार्केसाइन कहा जाने लगा।
लियो एच. बैकलैंड ने घर-घर पहुंचाया प्लास्टिक को
प्लास्टिक को घर-घर पहुंचाने का श्रेय जाता है लियो एच. बैकलैंड को बेल्जियम मूल के अमेरिकी वैज्ञानिक लियो एच. बैकलैंड को प्लास्टिक को घर-घर पहुंचाने का श्रेय दिया जा सकता है। आज हम प्लास्टिक की जिन विभिन्न किस्मों और सभी चीजों में प्लास्टिक के इस्तेमाल को देख रहे हैं, उसकी खोज उन्होंने ही की
थी।
लियो बेकलैंड ने प्लास्टिक का अविष्कार करने के बाद 11 जुलाई, 1907 को अपने जर्नल में लिखा था- अगर मैं गलत नहीं हूं तो मेरा ये अविष्कार (बैकेलाइट) भविष्य के लिए अहम साबित होगा।" उनकी कही ये बात सच निकली।
बेल्जियम में पैदा होने वाले लियो बेकलैंड एक मोची के बेटे थे। लियो के पिता अशिक्षित थे और उन्हें अपनी तरह ही जूते बनाने के धंधे में लाना चाहते थे। लियो को पढ़ने का शौक था लेकिन उनके पिता समझ नहीं पा रहे थे कि लियो पढ़-लिखकर आख़िर क्या करना चाहते हैं?
लियो की मां अपने बेटे को पढ़ाना चाहती थीं। लियो ने 13 की उम्र में अपने पिता के साथ उनका काम करना भी शुरू कर दिया था। लेकिन मां के प्रोत्साहन पर लियो ने रात की शिफ़्ट में चलने वाले स्कूल में पढ़ना शुरू कर दिया था। इसके बाद लियो ने घैंट यूनिवर्सिटी में स्कॉलरशिप भी पाई।
होनहार लियो ने सिर्फ़ 20 साल की उम्र में रसायनशास्त्र में डॉक्टरेट की और अपने टीचर की बेटी से शादी करके अमेरिका पहुंच गए। वहां पहुंचते ही उन्होंने नाम और धन कमाना शुरू किया। शुरुआत में फ़ोटोग्राफ़िक प्रिंटिंग पेपर से उन्होंने बहुत पैसा कमाया।
इसके बाद न्यूयॉर्क में हडसन नदी के किनारे एक घर खरीदा। बेकलैंड ने अपना समय बिताने के लिए अपने इस घर में एक लैब बनवाया। इसी घर में 1907 में उन्होंने फ़ॉरमलडेहाइड और फ़ेनॉल जैसे केमिकलों के साथ समय बिताते हुए प्लास्टिक का अविष्कार किया था। इसे उन्होंने बैकेलाइट कहा।
अपनी इस सफ़लता के बाद बेकलैंड ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। बेकलैंड ने जब ये कहा था कि उनका अाविष्कार भविष्य के लिए अहम है तो वह गलत नहीं थे। क्योंकि प्लास्टिक ने बहुत जल्दी अपनी जगह बनानी शुरू कर दी थी।
कितनी बड़ी है प्लास्टिक की दुनिया....
दुनिया में कितनी प्लास्टिक बनती है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि हम अपने पूरे तेल उत्पादन का आठ फ़ीसदी हिस्सा प्लास्टिक उत्पादन में लगाते हैं। बैकेलाइट कॉरपोरेशन ने प्लास्टिक के प्रचार के लिए कहा कि इस अविष्कार से मानव ने जीव, खनिज और सब्जियों की सीमा के पार एक नई दुनिया खोज ली है जिसकी सीमाएं अपार हैं। ये बात अतिश्योक्ति जैसी लगती है, लेकिन ये बात पूरी तरह सच थी।
वैज्ञानिकों ने इससे पहले भी प्राकृतिक तत्वों को विकसित करने या उनकी नकल बनाने के बारे में सोचा था।
प्लास्टिक से पहले प्लास्टिक की तरह की चीज सेल्युलाइड सामने आई थी जो पौधों पर निर्भर थी। बेकलैंड इलेक्ट्रिक इंसुलिन में प्रयोग होने वाले रेसिन शैलेक का विकल्प तलाश रहे थे जोकि झिंगुरों से निकलता था।
लेकिन बेकलैंड जल्द ही समझ गए कि उनका अविष्कार बेकैलाइट शैलेक रेसिन के विकल्प बनने से भी बेहतर प्रयोग किया जा सकता है।
बेकैलाइट कॉरपोरेशन प्लास्टिक ने प्रयोग को प्रचलित करने की कोशिश में इसे हज़ारों तरह से प्रयोग किया जा सकने वाला पदार्थ भी कहा। इसके बाद प्लास्टिक का प्रयोग टेलिफोन, रेडियो, बंदूकों, कॉफ़ी पॉट, बिलियर्ड बॉल से लेकर गहनों में भी होने लगा।
बेकलैंड की सफ़लता के बाद दुनिया भर की साइंस लैबों से प्लास्टिक के तरह-तरह के रूप सामने आने लगे। इनमें पैकेजिंग में इस्तेमाल होने वाली पॉलीस्टारेन, नायलॉन, पॉलिथायलेन जैसी चीजें शामिल थीं। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद दुनिया के सामने प्लास्टिक के बने हुए बर्तन आने लगे।
कैसे जहरीला हो जाता है प्लास्टिक...
पानी में न घुल पाने और बायोकेमिकली ऐक्टिव न होने की वजह से प्योर प्लास्टिक बेहद कम जहरीला होता है। लेकिन जब इसमें दूसरी तरह के प्लास्टिक और कलर आदि मिला दिए जाते हैं तो यह नुकसानदेह साबित हो सकते हैं।
प्लास्टिक मूल रूप से जहरीला या हानिरहित नहीं होता है लेकिन प्लास्टिक की थैलियां रंगों और रंजक, धातुओं और अन्य अकार्बनिक रसायनों से बनी होती हैं। रासायनिक पदार्थ और रंग, जो आमतौर पर प्लास्टिक उत्पादों के गुणों में सुधार लाने और मिट्टी को घुलनशील बनाने के इरादे से मिश्रित होते हैं, अक्सर स्वास्थ्य पर खराब प्रभाव डालते हैं।
प्लास्टिक को खुद से रखें दूर...
जूट से या कपड़े का बना थैला लेकर बाजार जायें। प्लास्टिक कचरे को कूड़ा संग्रह कर रही एजेंसी के सफाईकर्मी को दें, ताकि उसको रीसाइकिल किया जा सके।
जानिए कुछ जरूरी बातें...
-6 करोड़ जम्बो जेट के बराबर प्लास्टिक है इस धरती पर।
- मौजूद प्लास्टिक का वजन110 करोड़ हाथियों के बराबर है।
- 9 करोड़ ब्लू व्हेल के बराबर प्लास्टिक है।
-मौजूद प्लास्टिक से 9 एफिल टावर खड़े किये जा सकते हैं।
-प्लास्टिक से19 हजार बुर्ज खलीफा जैसी इमारतें बनाई जा सकती है।
कितना प्लास्टिक धरती पर यूज किया जा रहा
-609 करोड़ टन प्लास्टिक कचरे के रूप में धरती पर फेंका गया है।
-79 प्रतिशत प्लास्टिक का कचरा जमीन में भरा गया।
-1.3 करोड़ टन प्लास्टिक कचरा हर साल सीधे समुद्रों में गिराया जा रहा है।
-एक लाख करोड़ प्लास्टिक बैग हर वर्ष उपयोग हो रहे हैं।
-150 प्लास्टिक बैग हर व्यक्ति पर।
-8 प्रतिशत जीवाश्म ईंधन प्लास्टिक निर्माण में हो रहा है खर्च।
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