बुखार की मार से लोग बेहाल, ऐसे रखें अपना ख्याल
बारिश का मौसम आते ही बुखार के रोगियों की संख्या तेजी से बढऩे लगती है। वैसे तो बुखार कई प्रकार का होता हैं, लेकिन मलेरिया और डेंगू इनमें सबसे खतरनाक होते हैं। मलेरिया और डेंगू मच्छर की वजह से फैलते हैं।
पटना [काजल]। बारिश का मौसम आते ही बुखार के रोगियों की संख्या तेजी से बढऩे लगती है। वैसे तो बुखार कई प्रकार का होता हैं, लेकिन मलेरिया और डेंगू इनमें सबसे खतरनाक होते हैं। मलेरिया और डेंगू मच्छर की वजह से फैलते हैं। बुखार और इससे बचने के लिए हम आपको बताते हैं कुछ खास उपाय...
क्या है बुखार
जब हमारे शरीर पर कोई बैक्टिरिया या वायरस हमला करता है तो हमारा शरीर अपने आप ही उसे मारने की कोशिश करता है। इसी मकसद से शरीर जब अपना टेम्प्रेचर बढ़ाता है तो उसे ही बुखार कहा जाता है। जब भी शरीर का टेम्प्रेचर नॉर्मल (98.3) से बढ़ जाए तो वह बुखार माना जाएगा। आमतौर पर छोटे बच्चों को बुखार होने पर उनके हाथ -पांव तो ठंडे रहते हैं लेकिन माथा और पेट गर्म हो जाता है, इसलिए उनके पेट से उनके बुखार की जांच की जाती है।
कब जाएं डॉक्टर के पास
कई बार बुखार 104-105 डिग्री फॉरनहाइट तक भी पहुंच जाता है। आमतौर पर100 डिग्री तक बुखार में किसी दवा की जरूरत नहीं होती। हालांकि बुखार इसी रेंज में 3-4 या च्यादा दिन तक लगातार बना रहे या च्यादा हो जाए तो इलाज की जरूरत होती है। इसी तरह बुखार अगर 102 डिग्री तक है और कोई खतरनाक लक्षण नहीं हैं तो मरीज की देखभाल घर पर ही कर सकते हैं। आजकल यानी मॉनसून में एक दिन के बुखार के बाद ही फौरन डॉक्टर के पास चले जाएं, चाहे बुखार कैसा भी हो।
घर पर कैसे रखें ख्याल
मरीज के शरीर पर सामान्य पानी की पïिट्टयां रखें। पट्टियां तब तक रखें, जब तक शरीर का तापमान कम न हो जाए। पट्टी रखने के बाद वह गरम हो जाती है इसलिए उसे सिर्फ एक मिनट तक ही रखें। अगर माथे के साथ-साथ शरीर भी गरम है तो नॉर्मल पानी में कपड़ा भिगोकर निचोड़ें और उससे पूरे शरीर को पोंछें। बुखार है (खासकर डेंगू के सीजन में) तो एस्प्रिन बिल्कुल न लें। यह मार्केट में डिस्प्रिन, एस्प्रिन, इकोस्प्रिन आदि ब्रैंड नेम से मिलती है। ब्रूफेन, कॉम्बिफ्लेम आदि एनॉलजेसिक से भी परहेज करें क्योंकि अगर डेंगू है तो इन दवाओं से प्लेटलेट्स कम हो सकती हैं और शरीर से ब्लीडिंग शुरू हो सकती है। किसी भी तरह के बुखार में सबसे सेफ पैरासिटामोल लेना है।
मच्छर रोकने के उपाय
1. घर या ऑफिस के आसपास पानी जमा न होने दें।
2. गड्ढों को मिट्टी से भर दें।
3. रुकी हुई नालियों को साफ करें।
4. अगर पानी जमा होने से रोकना संभव नहीं है तो उसमें पेट्रोल या केरोसिन ऑयल डालें।
5. रूम कूलर और फूलदानों का सारा पानी हफ्ते में एक बार और पक्षियों को दाना-पानी देने के बर्तन को रोज पूरी तरह से खाली करें, उन्हें सुखाए और फिर भरें।
6. घर में टूटे-फूटे डिब्बे, टायर, बर्तन, बोतलें आदि न रखें। अगर रखें तो उल्टा करके रखें।
7. डेंगू के मच्छर साफ पानी में पनपते हैं, इसलिए पानी की टंकी को अच्छी तरह बंद करके रखें।
8. अगर मुमकिन हो तो खिड़कियों और दरवाजों पर महीन जाली लगवाकर मच्छरों को घर में आने से रोकें।
9. मच्छरों को भगाने और मारने के लिए मच्छरनाशक क्रीम, स्प्रे, मैट्स, कॉइल्स आदि का प्रयोग करें। गुग्गुल के धुएं से मच्छर भगाना अच्छा देसी उपाय है।
10. घर के अंदर सभी जगहों में हफ्ते में एक बार मच्छर- नाशक दवाई का छिड़काव जरूर करें। यह दवाई फोटो- फ्रेम्स, पर्दों, कैलंडरों आदि के पीछे और घर के स्टोर रूम और सभी कोनों में जरूर छिड़कें। दवाई छिड़कते समय अपने मुंह और नाक पर कोई कपड़ा जरूर बांधें। साथ ही, खाने-पीने की सभी चीजों को ढककर रखें।
11. एक नीबू को बीच से आधा काट लें और उसमें खूब सारे लौंग घुसा दें। इसे कमरे में रखें। यह मच्छर भगाने का अच्छा और नैचुरल तरीका है।
12. लेवेंडर ऑयल की 15-20 बूंदें, 3-4 चम्मच वनीला एसेंस और चौधाई कप नीबू रस को मिलाकर एक बॉटल में रखें। पहले अच्छी तरह मिलाएं और बॉडी पर लगाएं। इससे मच्छर दूर रहते हैं।
13. मच्छरों के आतंक से बचने के लिए अगरबत्ती को देशी घी में डिप करें। फिर अगरबत्ती को सिट्रेनेला ऑयल में डालकर निकाल लें। फिर इसे जलाएं। घर से मच्छर भाग जाएंगे।
14. विक्स के इस्तेमाल भी आप मच्छर दूर भगाने के लिए भी कर सकते हैं। सोने से पहले हाथ-पैर और शरीर के खुले हिस्से पर विक्स लगाएं जिससे मच्छर पास नहीं आएंगे। विक्स में यूकोलिप्टस के तेल, कपूर और पुदीने के तत्व होते हैं, जो मच्छर दूर भगाने में मदद करते हैं।
15. तुलसी का तेल, पुदीने की पत्तियों का रस, लहसुन का रस या गेंदे के फूलों का रस शरीर पर लगाने से भी मच्छर दूर भागते हैं।
बच्चों का रखें खास ख्याल
बच्चे नाजुक होते हैं और उनका इम्यून सिस्टम कमजोर होता है इसलिए बीमारी उन्हें जल्दी जकड़ लेती है। ऐसे में उनकी बीमारी को नजरअंदाज न करें।
1. खुले में च्यादा रहते हैं इसलिए इंफेक्शन होने और मच्छरों से काटे जाने का खतरा उनमें च्यादा होता है।
2. बच्चों को घर से बाहर पूरे कपड़े पहनाकर भेजें। मच्छरों के मौसम में बच्चों को हॉफ पैंट व टी-शर्ट न पहनाएं।
3. रात में मच्छर भगाने की क्रीम लगाएं।
4. अगर बच्चा बहुत च्यादा रो रहा हो, लगातार सोए जा रहा हो, बेचैन हो, उसे तेज बुखार हो, शरीर पर रैशेज हों, उलटी हो या इनमें से कोई भी लक्षण हो तो फौरन डॉक्टर को दिखाएं।
5. बच्चों के पेट को छूकर और रेक्टल टेम्प्रेचर लेकर उनका बुखार चेक किया जाता है। अगर बगल से तापमान लेना ही है तो जो रीडिंग आए, उसमें 1 डिग्री जोड़ दें। उसे ही सही रीडिंग माना जाएगा।
6. बच्चे को डेंगू हो तो उसे अस्पताल में रखकर ही इलाज कराना चाहिए क्योंकि बच्चों में प्लेटलेट्स जल्दी गिरते हैं और उनमें डीहाइड्रेशन (पानी की कमी) भी जल्दी होता है।
7. अगर बच्चे की उम्र छह महीने से कम है, उसमें बुखार के दूसरे लक्षण दिखाई दे रहे हैं, उसे दो दिन से च्यादा बुखार है या फिर उसका वैक्सीनेशन नहीं हुआ है तो ही डॉक्टर को बुलाएं।
8. बच्चे को बुखार में आइबुप्रोफेन या एसिटामिनोफेन दी जा सकती है। बाल रोग विशेषज्ञ बच्चों को एस्पीरिन न देने की सलाह देते हैं। उनके अनुसार इससे बच्चों के शरीर में रेज़ सिड्रोम होने की संभावना होती है। यह एक तरह की गंभीर बीमारी है जो बच्चे को लीवर और दिमाग पर असर डालती है। इस बीमारी को इग्नोर करना खतरनाक हो सकता है।
बुखार में कॉमन गलतियां
1. कई बार लोग बुखार में फौरन ऐंटी-बायोटिक देने लगते हैं। सच यह है कि टायफायड के अलावा आमतौर पर किसी और बुखार में एंटी-बायोटिक की जरूरत नहीं होती।
2. च्यादा ऐंटी-बायोटिक लेने से शरीर इसके प्रति इम्यून हो जाता है। ऐसे में जब टायफायड आदि होने पर वाकई ऐंटी-बायोटिक की जरूरत होगी तो वह शरीर पर काम नहीं करेगी। ऐंटी-बायोटिक के साइड इफेक्ट भी होते हैं। इससे शरीर के गुड बैक्टीरिया मारे जाते हैं।
3. डेंगू में अक्सर तीमारदार प्लेटलेट्स चढ़ाने की जल्दी करने लगते हैं। यह सही नहीं है। इससे उलटे रिकवरी में वक्त लग जाता है। जब तक प्लेटलेट्स 20 हजार या उससे कम न हों, प्लेटलेट्स चढ़ाने की जरूरत नहीं होती।
4. कई बार परिजन मरीज से खुद को चादर से ढक कर रखने को कहते हैं, ताकि पसीना आकर बुखार उतर जाए। इससे बुखार फौरी तौर पर उतर भी जाता है लेकिन सही तापमान का अंदाजा नहीं हो पाता। इसकी बजाय उसे खुली और ताजा हवा लगने दें। उसके शरीर पर सादे पानी की पट्टियां रखें। जरूरत है तो कूलर, एसी चलाएं ताकि उसके शरीर का तापमान कम हो सके।
5. बुखार में मरीज या उसके परिजन पैनिक करने लगते हैं और आनन-फानन में तमाम टेस्ट ( मलेरिया , डेंगू , टायफायड आदि के लिए ) कराने लगते हैं। दो दिन इंतजार करने के बाद डॉक्टर के कहे मुताबिक टेस्ट कराना बेहतर है।
6. मरीज बुखार में कॉम्बिफ्लेम , ब्रूफेन आदि ले लेते हैं। अगर डेंगू बुखार है तो इन दवाओं से प्लेटलेट्स कम हो सकते हैं , इसलिए ऐसा बिल्कुल न करें। पैरासिटामोल, क्रोसिन आदि किसी भी बुखार में सेफ है।
7. मरीज आराम नहीं करता और पानी कम पीता है। तेज बुखार में आराम बहुत जरूरी है। आधी बीमारी तो आराम से दूर हो जाती है। साथ ही, शरीर में पानी की कमी न हो तो उसे बीमारी से लडऩे में मदद मिलती है।
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