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    पटना की श्रद्धा ने गढ़ दीं हजारों कहानियां, बनाया ऐसा मंच जिसपर विचारों को दे सकते हैं आकार

    योर स्टोरी डाट काम की संस्थापक श्रद्धा के एक दृढ़ निश्चय ने ऐसी कहानियों का सिलसिला शुरू किया जो धीरे-धीरे बन गया एक-दूसरे से सफलता-असफलता साझा करते हुए आगे बढ़ने का विशाल मंच। जानें पटना की श्रद्धा के विषय में।

    By Akshay PandeyEdited By: Updated: Tue, 12 Oct 2021 06:26 PM (IST)
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    'योर स्टोरी डाट काम' की संस्थापक श्रद्धा। साभारः स्वयंः

    अश्विनी, पटना: 13 साल पहले जैसे कहीं कोई बिजली चमकी। मन में कौंधा एक विचार, पर आगे बढ़ें कि न बढ़ें...,और फिर तत्क्षण एक निर्णय। वह निर्णय ही मानो भविष्य की पतवार हो। अपनी इस पतवार पर भरोसा कर विचार की वह नौका उतर पड़ी अनिश्चितता के समुद्र में, जहां से निकलीं एक लाख से अधिक कहानियां। सिलसिला जारी है। निर्णय लेने और उन पर अडिग रहने की मां महागौरी की शक्ति का अनुसरण करते हुए श्रद्धा शर्मा ने जो निर्णय लिया उसने उन्हें दी अंतरराष्ट्रीय पहचान। 'योर स्टोरी डाट काम' की संस्थापक श्रद्धा के एक दृढ़ निश्चय ने ऐसी कहानियों का सिलसिला शुरू किया, जो धीरे-धीरे बन गया एक-दूसरे से सफलता-असफलता साझा करते हुए आगे बढ़ने का विशाल मंच। यहां आज की तारीख में हैं लोगों द्वारा साझा की गईं संघर्ष और सफलता की एक लाख बीस हजार कहानियां।

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    औरों के लिए भी रोजगार बना एक विचार 

    'योर स्टोरी डाट काम', यानी एक ऐसा मंच जिस पर हर कोई अपनी कहानी को आकार दे सकता है। स्टार्ट अप और युवा उद्यमियों के प्रेरक किस्से। श्रद्धा को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी प्रोत्साहित किया और उद्योगपति रतन टाटा ने भी। कारवां ऐसा बढ़ा कि 13 साल पहले के एक विचार पर लिया गया उनका निर्णय उस कंपनी में तब्दील हो गया, जहां दो सौ से अधिक लोग कार्य कर रहे हैं। एक विचार का फलीभूत होना सिर्फ अपने लिए नहीं था। यह औरों के लिए भी अवसर लेकर आया। इस कंपनी में काम करने वालों में पचास फीसद महिलाएं हैं।

    रच-बस गईं अपने सपनों में 

    बेंगलुरू में अपनी कंपनी का संचालन कर रहीं श्रद्धा पटना की हैं। यहीं के नोट्रेडम स्कूल से उच्च माध्यमिक परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद सेंट स्टीफेंस कालेज, दिल्ली से परास्नातक किया। मुद्रा इंस्टीटयूट आफ कम्युनिकेशंस, अहमदाबाद से प्रबंधन की पढ़ाई के बाद अच्छी नौकरी लगी, पर जोखिम उठाते हुए 2008 से ही योर स्टोरी में रच-बस गईं। तीन साल बाद अपनी कंपनी के रूप में नई राह स्वागत कर रही थी।

    पढ़ाई के समय ही बीजारोपण 

    हर महीने एक करोड़ से अधिक लोग इस मंच पर लोगों की कहानियां पढ़ रहे हैं। श्रद्धा ने जो निर्णय लिया, वह आसान नहीं था, पर इसका बीजारोपण जैसे पढ़ाई के समय ही हो चुका हो। वह बताती हैं, तब स्टीफेंस कालेज में थीं। जब दोस्तों से बात करतीं तो वह कहते, फिर से बोलो न। वह बोलतीं और दोस्त हंसने लगते। उन्हें बाद में यह बात समझ में आई कि दोस्त उनके बिहारीपन से भरे लहजे को सुनना चाहते थे। उन्होंने इसे बहुत सकारात्मक रूप में लिया। यह उनकी खुद की कहानी थी। बस यहीं से सोचा कि हर किसी की कोई न कोई कहानी, अनुभव तो होगा। क्यों न इसे एक मंच दिया जाए।

    आज औरों के लिए भी प्रेरणा

    यह सवाल मन में उठता रहा था। मीडिया के क्षेत्र में नौकरी के बाद वह विचार फिर कौंधा और एक झटके में ले लिया निर्णय। अपना सफर शुरू करने और लोगों को जोड़ने का। एक महिला के सामने चुनौतियां भी कम नहीं होतीं। मुश्किलें भी आईं, पर कदम बढ़ते गए। हिंदी, अंग्रेजी और तमिल भाषा में आए दिन कोई नई कहानी योर स्टोरी पर पढ़ाई जाती है। अब जर्मनी, यूके और दुबई में भी इसे विस्तार देने की कवायद चल रही है। श्रद्धा का सफर हजारों लोगों के लिए प्रेरणा है।