patna news: जन्म, सहजीवन और परंपरा से पुष्ट संबंध को धारा 125 सीआरपीसी के संदर्भ में वैध विवाह माना जाएगा
विवाह रीति-रिवाज सहजीवन सामाजिक स्वीकृति और संतानोत्पत्ति से प्रमाणित हो तो उसे धारा 125 सीआरपीसी के तहत वैधानिक विवाह माना जाएगा और ऐसी महिला को भरण-पोषण से वंचित नहीं किया जा सकता।यह विवाह उनके समुदाय की लेवीरेट परंपरा के अनुसार संपन्न हुआ जिसमें विधवा का विवाह छोटे देवर से कराया जाता है।

विधि संवाददाता, पटना। पटना हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में यह स्पष्ट किया है कि यदि विवाह रीति-रिवाज, सहजीवन, सामाजिक स्वीकृति और संतानोत्पत्ति से प्रमाणित हो, तो उसे धारा 125 सीआरपीसी के तहत वैधानिक विवाह माना जाएगा और ऐसी महिला को भरण-पोषण से वंचित नहीं किया जा सकता।
न्यायाधीश बिबेक चौधरी की एकलपीठ ने यह टिप्पणी संगीता देवी बनाम पवन कुमार सिंह मामले में की, जिसमें परिवार न्यायालय, कैमूर द्वारा भरण-पोषण की याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया गया था कि याचिकाकर्ता “कानूनी पत्नी” नहीं हैं।
याचिकाकर्ता संगीता देवी की ओर से अधिवक्ता पार्थ गौरव और आशुतोष कुमार पांडेय ने कोर्ट को बताया कि याचिकाकर्ता एक पर्दानशीं महिला हैं जिनके पति की मृत्यु के बाद जून 2010 में उन्होंने अपने देवर पवन कुमार सिंह से विवाह किया। यह विवाह उनके समुदाय की लेवीरेट परंपरा के अनुसार संपन्न हुआ, जिसमें विधवा का विवाह छोटे देवर से कराया जाता है।
इस वैवाहिक जीवन से दो पुत्र भी उत्पन्न हुए। लेकिन पवन कुमार सिंह, जो बिहार पुलिस में कांस्टेबल हैं, छह वर्षों से उन्हें और बच्चों को त्याग चुके हैं और कोई भरण-पोषण नहीं दे रहे हैं। इसके उत्तर में पति ने दावा किया कि याचिकाकर्ता वास्तव में उनके भाई की विधवा हैं, और इस नाते यह विवाह हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 5(iv) के अंतर्गत वर्जित संबंध में आता है, इसी तर्क को स्वीकार करते हुए परिवार न्यायालय ने याचिका खारिज कर दी थी।
मामले की सुनवाई करते हुए पटना हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि धारा 125 सीआरपीसी के अंतर्गत भरण-पोषण की याचिका के लिए विवाह की वैधता का औपचारिक निर्णय आवश्यक नहीं है, बल्कि केवल प्रथमदृष्टया संबंध की पुष्टि पर्याप्त होती है।
लेवीरेट विवाह जैसे रिवाज का स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया था, जिसे बिना किसी साक्ष्य या विचार के खारिज कर देना न्यायिक त्रुटि है। अदालत ने यह भी कहा कि “ऐसी महिला, जो पत्नी की भूमिका में रही हो, बच्चे पैदा किए हों और जिसे बाद में त्याग दिया गया हो, वह धारा 125 सीआरपीसी की सुरक्षा के दायरे में आती है। केवल तकनीकी आधार पर विवाह को अमान्य बताकर भरण-पोषण से वंचित करना अन्याय है।”
कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों का उल्लेख करते हुए स्पष्ट किया कि दीर्घकालिक सहजीवन को वैध विवाह का प्रमाण माना जा सकता है, खासकर जब समाज ने उस संबंध को स्वीकार किया हो। कोर्ट ने परिवार न्यायालय के 20 जून 2024 के आदेश को रद्द करते हुए मामले को पुनः सुनवाई के लिए वापस भेज दिया और निर्देश दिया कि दोनों पक्षों को रीति-रिवाज, सहजीवन और सामाजिक स्वीकृति जैसे बिंदुओं पर साक्ष्य प्रस्तुत करने का पूरा अवसर दिया जाए।
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