Bihar Chunav 2025: वोटर लिस्ट के सत्यापन पर उठ रहे सवालों पर लगा विराम, वेरिफिकेशन क्यों जरूरी? EC ने किया साफ
चुनाव आयोग ने बिहार में मतदाता सूची के सत्यापन पर उठ रहे सवालों का जवाब दिया है। आयोग के अनुसार यह प्रक्रिया योग्य नागरिकों को सूची में शामिल करने के लिए है और पिछले 75 वर्षों से चल रही है। 2003 के बाद बिहार में गहन पुनरीक्षण नहीं हुआ है। कुछ दल विरोध कर रहे हैं जबकि कुछ जनप्रतिनिधि इसका समर्थन कर रहे हैं।

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। विधानसभा चुनाव से पहले बिहार में मतदाता सूची के सघन सत्यापन व पुनरीक्षण के लिए चुनाव आयोग द्वारा चलाए जा रहे अभियान पर सवाल उठा रहे राजनीतिक दलों को चुनाव आयोग ने सोमवार को जवाब दिया।
आयोग ने कहा कि यह सत्यापन इसलिए किया जा रहा है ताकि योग्य नागरिकों को ही मतदाता सूची में जगह मिले। पुनरीक्षण व सत्यापन एक सतत प्रक्रिया है। यह पिछले 75 वर्षों से होता आ रहा है, इसमें कोई नई बात नहीं है। इससे पहले बिहार में मतदाता सूची का सत्यापन 2003 में किया गया था।
आयोग ने सत्यापन व पुनरीक्षण का यह अभियान तब शुरू किया है, जब महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के बाद मतदाता सूची में गड़बड़ी को लेकर उस पर गंभीर आरोप लग रहे थे।
सूत्रों की मानें तो कुछ निर्वाचन क्षेत्रों में प्रवासियों की संख्या वहां जीत के अंतर से अधिक हो गई है, जिससे लोकतांत्रिक अखंडता प्रभावित हो सकती है। 2011 की जनगणना के अनुसार, जहां 2001 में भारत में 31 करोड़ प्रवासी मतदाता थे, वहीं 2021 में इनके करीब 45 करोड़ होने का अनुमान है।
पुनरीक्षण और सत्यापन इसलिए जरूरी
- कई लोग एक जगह के सामान्य निवासी होते हैं और उन्होंने अपना EPIC वहीं से प्राप्त किया है, लेकिन वे किसी तरह से जानबूझकर या अनजाने में माइग्रेशन करके अपना पुराना EPIC बनाए रखने में कामयाब हो गए हैं, जो एक आपराधिक अपराध है।
- मतदाता पहचान पत्र में मतदाताओं की तस्वीरें इतनी पुरानी हैं कि तस्वीरों का मिलान करना मुश्किल हो गया है। ऐसी स्थिति में मतदाताओं की नई तस्वीरें पहचान में मदद करेंगी।
- कई अपात्र लोगों ने EPIC प्राप्त कर लिया है, क्योंकि 2003 के बाद सत्यापन नहीं हुआ है। उनके पात्रता संबंधी दस्तावेज भी उपलब्ध नहीं हैं। इससे ऐसे लोगों की पहचान करना आसान हो जाएगा। शिकायतें भी खत्म होंगी।
- 1952 से 2004 तक 52 वर्षों में पूरे देश या भागों में नौ बार विभिन्न गहन पुनरीक्षणों के माध्यम से मतदाता सूची को नए सिरे से तैयार किया गया है। यानी औसतन हर छह साल में एक बार। हालांकि, बिहार में पिछले 22 वर्षों में गहन पुनरीक्षण नहीं किया गया है।
सूची के सत्यापन का विरोध और समर्थन भी
बिहार में कुछ राजनीतिक दल जहां मतदाता सूची के सत्यापन का विरोध कर रहे हैं, वहीं कुछ राजनीतिक दलों से जुड़े जनप्रतिनिधि भी इसका समर्थन कर रहे हैं।
आयोग ने इस दौरान बूथ स्तर से मिल रहे फीडबैक को भी सोमवार को साझा किया। जिसमें बिहार के हथुआ विधानसभा क्षेत्र से राष्ट्रीय जनता दल के विधायक राजेश कुमार सिंह कुशवाहा ने एक पर्चा जारी कर चुनाव आयोग द्वारा शुरू किए गए सत्यापन का पूरा ब्योरा जारी किया और लोगों से बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने की अपील की।
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