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पटना जन्मे आनंदपुर वासी गोविंद सिंह नाम अविनाशी, ये है गुरु की नगरी

पटना की धरती पवित्र है। सिख धर्म के गुरुओं से। यहीं पर गुरु गोविंद सिंह का जन्म हुआ था। पटना गुरु नगरी है।

By Akshay PandeyEdited By: Published: Sat, 12 Jan 2019 11:43 AM (IST)Updated: Sat, 12 Jan 2019 11:43 AM (IST)
पटना जन्मे आनंदपुर वासी गोविंद सिंह नाम अविनाशी, ये है गुरु की नगरी
पटना जन्मे आनंदपुर वासी गोविंद सिंह नाम अविनाशी, ये है गुरु की नगरी

अनिल कुमार, पटना सिटी। पटना एेसे ही पवित्र धरती नहीं है। ये गुरु की नगरी है। सिख पंथ के तीन गुरुओं के पावन चरण से पवित्र हुई पटना साहिब की धरती पर सिखों के दसवें गुरु श्री गुरु गोविंद सिंह का जन्म पौष सूदी सप्तमी के दिन संवत 1723 में 22 दिसंबर 1666 को हुआ। विश्व में सिख धर्म के पांच प्रमुख तख्तों में तख्त श्री हरिमंदिर जी पटना साहिब का दूसरा स्थान है।

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जत्थेदार ज्ञानी इकबाल सिंह बताते हैं कि जिस समय गुरु महाराज का जन्म पटना साहिब में हुआ था, उस समय उनके पिता व नवम् गुरु तेग बहादुर गुरु मिशन की प्रचार के लिए घुबड़ी आसाम की यात्रा पर गए थे। उस समय नवम गुरु की पत्नी माता गुजरी गर्भवती थी। ऐसे में जब गुरु महाराज गायघाट स्थित बड़ी संगत गुरुद्वारा पहुंचे तो वहां से मुंगेर रवाना होने से पहले गुरु महाराज ने परिवार वालों को अच्छी तरह से हवेली में रखने का आदेश व संगत को आशीर्वाद दे प्रस्थान कर गए। जहां गुरु महाराज का जन्म हुआ है वहां पहले सालिस राय जौहरी का आवास होता था।

गायघाट में है बड़ी संगत गुरुद्वारा

जानकारों कि माने तो संवत 1563 में सिख पंथ के संस्थापक गुरु नानक देव भक्त जैता मल के यहां ठहरे थे, जो गायघाट बड़ी संगत गुरुद्वारा है। वहीं से सालिस राय जौहरी निमंत्रण पर निवास स्थान पहुंचे थे। इसी हवेली मे दशमेश गुरु का जन्म हुआ और यह विश्व में सिखों का दूसरा बड़ा तख्त बन गया।

दशमेश गुरु श्री गुरु गोविंद सिंह जी महाराज ने अपनी रचना दशमग्रंथ में आत्मकथा विचित्र नाटक में लिखा है, तही प्रकाश हमारा भयो, पटना शहर बिखै भव लयो। सिख पुस्तक गुरुमत फिलास्फी में भी वर्णित है पटना जन्मे आनंदपुर वासी, गोविंद सिंह नाम अविनाशी है। नौंवे गुरु ने अपने हुकमनामा के अंदर पटना गुरु का घर का मान दिया है। 13 जनवरी 2019 को दशमेश गुरु की जन्मस्थली में 352 वां प्रकाशोत्सव मनाया जाएगा।

तख्त श्री हरिमंदिर जी पटना साहिब के दर्शनीय धरोहर

गुरु ग्रंथ साहिब (बड़ा साहिब)- जिस पर गुरु महाराज ने तीर की नोक से केसर के साथ मूल मंत्र लिखा।

छबि साहिब -श्री गुरु गोविंद सिंह जी महाराज का युवावस्था का ऑयल पेंट से तैयार चित्र।

पंगुड़ा साहिब ( चार पांव का छोटा झूला) जिस पर बचपन में गुरु महाराज बैठते थे. जो सोने की प्लेटों से मढ़ा है।

छोटी सेफ : गुरु जी की छोटी तलवार, जो बचपन में पहना करते थे।

गुरु जी के गुलेल की गोली, बचपन के चार तीर, चंदन का कंधा जिससे केश साफ करते।

हाथी दांत के खड़ाऊं एक जोड़ा, गुरु तेग बहादुर के लकड़ी संदल के खड़ाऊं एक जोड़ा।

गुरु जी के 300 वर्ष पुराना चोला( चोंगा) व माता गुजरी का कुआं 

गुरु तेग बहादुर, गुरु गोविंद सिंह व माता सुंदरी के हस्तलिखित हुकूमनामों की पुस्तकें

श्री गुरु ग्रंथ साहिब की छोटी बीड़(एक इंच साइज में)

बाल लीला मैनी संगत गुरुद्वारा

तख्त श्री हरमंदिर जी पटना साहिब से पचास गज की दूरी पर स्थित बाललीला मैनी संगत गुरुद्वारा है। बचपन में श्री गुरु गोविंद सिंह यहां चमत्कार किया था। दरअसल फतेह चंद मैनी एक बड़े जमींदार थे। उन्हें राजा का खिताब मिला था। पत्नी रानी विश्वंभरा देवी थी। राजा दंपति को संतान का सुख नहीं मिला था। बचपन के गोङ्क्षवद राय साथियों के साथ के यहां खेलने आते थे। रानी विश्वंभरा देवी गोङ्क्षवद राय जैसे बालक का संकल्प कर रोज प्रभु से प्रार्थना करती थी। अंतर्यामी गोविंद राय एक दिन रानी की गोद में आकर बैठ गए और मां कह कर पुकारा। रानी खुश हुई और बालक को धर्म पुत्र स्वीकार लिया।

दर्शनीय वस्तु

-खीन-खाब जूता, जो गुरु जी बाल्यावस्था में पहना करते थे।

-करौंदा वृक्ष : यह वृक्ष गुरु जी ने बचपन में दत्तवन करते हुए यहां की जमीन में गाड़ दिया था। जो वृक्ष का रुप ले लिया। यह वृक्ष सालों भर हरा-भरा रहता है।

गायघाट बड़ी संगत गुरुद्वारा

तख्त श्री हरिमंदिर जी पटना साहिब से चार किलोमीटर की दूरी पर स्थित गायघाट गुरुद्धारा पहले भगत जैतामल का पुराना घर हुआ करता था। सबसे पहले इस भूमि को गुरु नानक देव ने अपनी पहली उदासी यात्रा पूर्व यात्रा के समय वर्ष 1508 में यहां आकर पवित्र किया। भक्त जैतामल जी गुरुजी के शिष्य बने और इस जगह का को संगत का नाम दिया गया। जो बाद में बड़ी संगत गायघाट के नाम से प्रसिद्ध हुआ। प्रथम गुरु नानक देव ने जमीन से उठाया पत्थर देकर मरदाना को पटना सिटी के बाजार में बेचने के लिए भेजा था। इसके बाद नौंवे गुरु तेग बहादुर अपनी पूरब की यात्रा के दौरान परिवार समेत इस जगह पर आकर ठहरे थे। भक्त जैतामल जी को मुक्ति देने के बाद परिवार समेत वर्ष 1666 में खालसा राय जौहरी की संगत ( वर्तमान का तख्त श्री हरिमंदिर) में आए थे। यहां प्रबंधक समिति द्वारा प्रत्येक वर्ष श्री गुरुग्रंथ साहिब का प्रकाश पर्व मनाया जाता है।

गायघाट गुरुद्वारा में गुरुजी के यादगार

1. थड़ा साहिब (जिसपर गुरुजी आकर बैठे थे)

2. हरश्रृंगार का वृक्ष( जिसके साथ गुरुजी ने घोड़ा बांधा था)

3. गुरु परिवार की चक्की जिससे गेंहूं पीसा करते थे

4. खिड़की साहिब-जिससे श्री गुरु तेग बहादुर जी घोड़ा समेत पार कर प्रवेश किया

कंगन घाट गुरुद्वारा

गोङ्क्षवद राय जब कुछ बड़े हुए तो खेलने-कूदने लगे। वे धनुष-वाण व गुलेल से निशाना लगाते थे। बालक गोविंद राय ने बचपन के चमत्कार गोविंद घाट वर्तमान के कंगन घाट पर ही किए। गुरु जी बचपन में अपने साथियों की दो टोली बनाकर लड़ाई करते। किले बनाते। विजय प्राप्त करने के गुर बताते। विजयी टोली को पुरस्कृत भी इसी गंगा घाट किनारे करते थे।

यहीं से जुड़ी कंगनों की कहानी

जब लड़के सेना तथा युद्धों की नकल उतारते तो गोविंद सेनापति या राजा बनते थे। वे न्यायालय की नकल उतारते और लड़कों के मामलों को सुन कर उनका न्याय करते। इसी तट पर गुरु जी ने अपने सोने का कंगन गंगा में फेंका था। कहा जाता है कि जब लोग कंगन निकालने गए तो गंगा में चारों ओर कंगन ही कंगन देख अचंभित हो गए।  जब मांझी उसे निकालने गया और गंगा में ढेर सारे कंगन देखा। तब गुरु जी ने मांझी को दूसरे कंगन निकालने से मना किया। इसी पर गोविंद सिंह ने कहा गंगा हमारी तिजोरी है और तुम हमारा कंगन पहचान कर निकाल दो। इसी तरह गुरुजी ने माया का त्याग प्रकट किया किया था। इसी कारण तख्त श्री हरिमंदिर से सटे छोटे गुरुद्वारा का नाम कंगन घाट रखा गया। इसी गोङ्क्षवद घाट पर गुरु जी ने पंडित शिवदत्त शर्मा को मानसिक शांति का वरदान भी दिया था। वे गुलेल से निशाना लगाने का अभ्यास स्वयं करते और साथियों से भी करवाते। मार्ग से जब स्त्रियां खाली घड़ा सिरों पर उठाकर कुआं अथवा नदियों पर पानी भरने जाती तो वह घड़ों पर भी निशाने लगाते। घड़े तोड़ देते। स्त्रियां उनके इस खेल से तंग आकर उनकी दादी माता नानकी के पास शिकायत करतीं। दादी मां उनको डांटती भी थी।

सोनार टोली गुरुद्वारा

तख्त श्री हरिमंदिर जी पटना साहिब गुरुद्वारा से एक किलोमीटर की दूरी पर है सोनार टोली गुरुद्वारा। यहां पर तख्त पटना साहिब के तरफ से एक ग्रंथी सेवा करते हैं। तख्त श्री हरिमंदिर जी पटना साहिब का दर्शन करने वाले लोग इसका दर्शन अवश्य करते हैं।

दानापुर में खिचड़ी की हांडी पर रखी थी लाज

तख्त श्री हरिमंदिर जी पटना साहिब से 20 किलोमीटर की दूरी पर दानापुर गंगा नदी के अवस्थी घाट पर स्थित है हाड़ी साहिब गुरुद्वारा। गुरु जी ने बचपन के लगभग सात वर्ष तख्त श्री हरिमंदिर जी पटना साहिब में बिताकर पंजाब जाते समय पहला पड़ाव दानापुर में किया था। यहां पर वृद्ध यमुना देवी ने गुरु जी के आने के बाद प्यार से खिचड़ी खिलाई। संगत अधिक होने के कारण वृद्ध यमुना देवी ने घबराकर गुरु जी से लाज रखने की प्रार्थना किया। गुरु जी ने अपना रूमाल उस खिचड़ी भरी हांडी पर रख दिया। उनकी कृपा से सभी संगत ने खिचड़ी खाई पर खिचड़ी खत्म नहीं हुई। तब से उसी स्थान पर हांडी साहिब गुरुद्वारा बनाया गया। जहां आज भी गुरु गोविन्द ङ्क्षसह जी महाराज के पावन प्रकाशोत्सव के बाद सालाना उत्सव मनाया जाता है।


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