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    Patna High Court: मां बनने पर सजा क्यों? पटना हाई कोर्ट ने सहायक प्राध्यापिका को दिया इंसाफ

    Updated: Tue, 25 Nov 2025 07:33 PM (IST)

    पटना हाई कोर्ट ने तिलका मांझी भागलपुर विश्वविद्यालय की कार्रवाई को असंवैधानिक ठहराते हुए सहायक प्राध्यापिका मुबीना ओ. को 2020 में ली गई मातृत्व अवकाश अवधि (10 मई-11 नवंबर) का पूरा वेतन, सेवा अनुभव और रोकी गई वेतनवृद्धि बहाल करने का आदेश दिया। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि मातृत्व लाभ अधिनियम-1961 किसी भी विश्वविद्यालय उपविधि से ऊपर है और यह सभी महिला कर्मचारियों का संरक्षित अधिकार है। आदेश 8 सप्ताह में लागू करना होगा।

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    पटना हाई कोर्ट।

    विधि संवाददाता, पटना। पटना हाई कोर्ट (Patna High Court) ने मातृत्व लाभ से जुड़े एक महत्वपूर्ण मामले में तिलका मांझी भागलपुर विश्वविद्यालय की कार्रवाई को असंवैधानिक ठहराते हुए सहायक प्राध्यापिका मुबीना ओ. को मातृत्व अवकाश अवधि का पूरा वेतन, सेवा अनुभव और रोकी गई वेतनवृद्धि बहाल करने का आदेश दिया है।

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    न्यायाधीश हरीश कुमार की एकलपीठ ने अपने विस्तृत फैसले में कहा कि मातृत्व अवकाश महिला कर्मचारी का वैधानिक व संरक्षित अधिकार है, जिस पर किसी भी उपविधि, शर्त या प्रशासनिक निर्णय के माध्यम से प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता।

    याचिकाकर्ता की ओर से वरीय अधिवक्ता बिनोदानंद मिश्र ने अदालत को बताया कि मुबीना ओ. वर्ष 2019 में समाजशास्त्र विभाग में नियुक्त हुई थीं और 10 मई 2020 से 11 नवम्बर 2020 तक स्वीकृत मातृत्व अवकाश पर रहीं।

    इसके बावजूद न तो वेतन दिया गया, न अवकाश अवधि को सेवा अनुभव में शामिल किया गया और न ही जुलाई 2020 से देय वार्षिक वेतनवृद्धि प्रदान की गई।

    विश्वविद्यालय की ओर से अधिवक्ता रितेश कुमार ने तर्क दिया कि बिहार राज्य विश्वविद्यालय अधिनियम, 1976 की सेवा उपविधि (रूल 28) के अनुसार किसी महिला कर्मचारी को दो वर्ष की निरंतर सेवा से पूर्व मातृत्व अवकाश का लाभ नहीं दिया जा सकता।

    अदालत ने इन दलीलों को अस्वीकार करते हुए कहा कि मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961 की धारा 27 किसी भी विरोधी सेवा नियम को अप्रभावी कर देती है और यह कानून सभी महिला कर्मचारियों—नियमित, संविदा या दैनिक वेतनभोगी—पर समान रूप से लागू होता है।

    कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के कई महत्वपूर्ण निर्णयों का हवाला देते हुए कहा कि मातृत्व अधिकारों पर रोक लगाना “लोक नीति के विरुद्ध और सामाजिक न्याय के सिद्धांतों के प्रतिकूल” है।

    अदालत ने विश्वविद्यालय और राज्य सरकार को निर्देश दिया कि याचिकाकर्ता को 10.05.2020 से 11.11.2020 तक की अवधि का पूरा वेतन, सेवा गणना तथा रोकी गई इन्क्रीमेंट आठ सप्ताह के भीतर बहाल की जाए।