जाली नोट रैकेट मामले में पटना हाई कोर्ट ने सभी आरोपियों की उम्रकैद कायम रखी
पटना हाई कोर्ट ने जाली नोटों के प्रसार से जुड़े मामले में एनआईए की जांच और ट्रायल कोर्ट के फैसले को सही ठहराया है। अदालत ने चारों आरोपियों की उम्रकैद की सजा को बरकरार रखा। अदालत ने कहा कि बरामद नोटों की मात्रा, गवाहों के बयान और वैज्ञानिक रिपोर्ट से अपराध साबित होता है। यह मामला 2015 में पूर्वी चंपारण में जाली नोटों की बरामदगी से शुरू हुआ था।

पटना हाई कोर्ट।
विधि संवाददाता, पटना। पटना हाई कोर्ट (Patna High Court) ने देश में उच्च गुणवत्ता वाले जाली भारतीय मुद्रा के प्रसार से जुड़े एक बड़े नेटवर्क के खिलाफ एनआईए की जांच और ट्रायल कोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए चारों आरोपियों की उम्रकैद की सजा को सही ठहराया है।
न्यायाधीश बिबेक चौधरी और न्यायाधीश डॉ. अंशुमन की खंडपीठ ने अपना निर्णय सुनाते हुए कहा कि जाली नोटों की बड़ी मात्रा में बरामदगी, स्वीकृत गवाहों की गवाही, संरक्षित गवाह का बयान और वैज्ञानिक रिपोर्ट मिलकर एक पूर्ण साक्ष्य श्रृंखला बनाते हैं।
मामला 19 सितंबर 2015 को रामगढ़वा, पूर्वी चंपारण में डीआरआई (राजस्व खुफिया निदेशालय) द्वारा बस से अफरोज़ अंसारी की गिरफ्तारी और उसके बैग से 500 रुपये के 1,188 जाली नोट (5.94 लाख रुपये) बरामद होने से शुरू हुआ था। इसके बाद 9 जून 2016 को बेतिया में आरोपी आलमगीर शेख से 3 लाख रुपये के जाली नोट बरामद हुए।
जांच एनआईए को हस्तांतरित होने के बाद चारों आरोपियों- अफरोज अंसारी, सनी कुमार उर्फ कबीर खान, आश्रफुल आलम और आलमगीर शेख के खिलाफ गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम और आईपीसी की विभिन्न धाराओं में आरोप पत्र दाखिल हुआ।
सजा के खिलाफ दायर अपीलों में आरोपियों ने जब्ती, गवाहों की विश्वसनीयता और धारा 108 कस्टम्स एक्ट के तहत दिए गए कथित बयान की वैधता पर सवाल उठाए।
हालांकि, अदालत ने पाया कि जाली नोटों की बरामदगी, कॉल डिटेल रिकॉर्ड, बैंक लेन-देन और दो स्वीकृत गवाहों की विस्तृत गवाही ने षड्यंत्र को स्थापित किया।
अदालत ने कहा कि जाली मुद्रा का संगठित प्रसार देश की आर्थिक सुरक्षा पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है और यह गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम के तहत “आतंकी कृत्य” की श्रेणी में आता है। इसलिए विशेष एनआइए अदालत द्वारा दी गई उम्रकैद की सजा उचित है।

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