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    Patna High Court: पटना हाई कोर्ट ने 3 तलाक के दावे को किया खारिज, वैवाहिक रिश्ता अब भी कायम

    By Jagran NewsEdited By: Rajat Mourya
    Updated: Mon, 16 Jun 2025 07:47 PM (IST)

    पटना उच्च न्यायालय ने तीन तलाक को वैध न मानते हुए परिवार न्यायालय के फैसले को बरकरार रखा। शम्स तबरेज ने पत्नी इसरत जहां को तीन बार तलाक देने का दावा किया था जिसे न्यायालय ने खारिज कर दिया। अदालत ने पाया कि तीन तलाक का कोई ठोस प्रमाण नहीं दिया गया और गवाहों के बयान अस्पष्ट थे।

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    पटना हाई कोर्ट ने तीन तलाक के दावे को किया खारिज, वैवाहिक रिश्ता अब भी कायम

    विधि संवाददाता, पटना। पटना हाई कोर्ट (Patna High Court) ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में तीन तलाक को वैध मानने से इनकार करते हुए परिवार न्यायालय के आदेश को बरकरार रखा। न्यायाधीश पी. बी. बजंथ्री और न्यायाधीश एस. बी. पी. सिंह की खंडपीठ ने शम्स तबरेज बनाम इसारत जहां मामले में यह फैसला सुनाया।

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    क्या है मामला?

    शम्स तबरेज ने पश्चिम चंपारण के परिवार न्यायालय में एक वाद दायर कर दावा किया था कि उन्होंने 08 अक्टूबर 2007 को अपनी पत्नी इसरत जहां को तीन बार “तलाक” कहा और वैवाहिक संबंध समाप्त कर दिए।

    उन्होंने यह भी कहा कि तलाक के पश्चात उन्होंने “दैन मेहर” और “इद्दत” की राशि का भुगतान कर दिया, लेकिन फैमिली कोर्ट ने उनका यह दावा खारिज कर दिया।

    फैमिली कोर्ट के फैसले से असंतुष्ट होकर शम्स तबरेज ने मिसलेनियस अपील संख्या 392/2017 के तहत पटना हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। उन्होंने यह तर्क दिया कि गवाहों की उपस्थिति में तलाक हुआ और इस्लामिक कोर्ट दरुल कज़ा, बेतिया ने भी पत्नी को ससुराल लौटने का निर्देश दिया था, जिसे उसने नहीं माना।

    महिला का पक्ष

    पत्नी इसारत जहां ने दावा किया कि वह आज भी शम्स तबरेज की कानूनी पत्नी हैं और कभी तलाक नहीं दिया गया। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि शादी के बाद उन्हें दहेज के लिए प्रताड़ित किया गया और अंततः घर से निकाल दिया गया।

    हाईकोर्ट ने मामले का अवलोकन के साफ तौर पर कहा कि तीन तलाक का कोई ठोस और कानूनी साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया गया। गवाहों की गवाही विरोधाभासी और अस्पष्ट रही।

    मुस्लिम पर्सनल लॉ के अनुसार, तीन तलाक के बीच समयांतराल आवश्यक होता है, जिसे इस मामले में नहीं दर्शाया गया। तलाक के बाद पुनः विवाह होने का भी कोई प्रमाण नहीं है, जबकि याचिकाकर्ता ने दोबारा विवाह की बात कही थी। “दैन मेहर” की राशि 51,000/- रुपये तय थी, जबकि केवल 2,100/- रुपये के भुगतान का दावा किया गया, जो स्वयं में संदेहास्पद है।