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    बीयर के चर्चित ब्रांड और Energy Drink का मामला; पटना हाई कोर्ट ने ले ल‍िया एक्‍शन

    By Pratyush Pratap Singh Edited By: Vyas Chandra
    Updated: Fri, 21 Nov 2025 07:45 PM (IST)

    पटना हाई कोर्ट ने बीयर ब्रांड और एनर्जी ड्रिंक के विवाद पर एक्शन लिया है। न्यायमूर्ति संदीप कुमार की एकल पीठ ने इस मामले में दर्ज एफआइआर को निरस्‍त कर दिया है।  

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    एनर्जी ड्र‍िंक मामले में एफआइआर निरस्‍त। सांकेत‍िक तस्‍वीर

    विधि संवाददाता, पटना। Patna High Court:  पटना हाई कोर्ट ने रामकृष्णानगर थाना में एनर्जी ड्रिंक को लेकर दर्ज प्राथमिकी को निरस्त कर दिया है।

    न्यायाधीश आलोक कुमार पांडेय की एकलपीठ ने कुमारी पूनम द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए यह फैसला सुनाया।

    रामकृष्णानगर थाना में भारतीय दंड संहिता की धारा 419, 420 तथा बिहार उत्पाद एवं मद्य निषेध अधिनियम की धारा 30(ए), 35(सी) और 32 के तहत एफआईआर दर्ज की गई थी।

    यह कार्रवाई उस समाचार रिपोर्ट के प्रकाशन के बाद शुरू हुई थी, जिसमें दावा किया गया था कि एनर्जी ड्रिंक के नाम पर बीयर बेची जा रही है तथा ‘थंडर बोल्ट’ और ‘किंगफिशर’ जैसे लोकप्रिय बीयर ब्रांडों से मिलते-जुलते नाम और पैकिंग का उपयोग किया जा रहा है।

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    समाचार प्रकाशित होने के बाद की गई जांच में 4 से 5 प्रतिशत तक अल्कोहल मिलने का दावा किया गया था। इसके आधार पर आबकारी विभाग ने छापेमारी कर ‘डब्ल्यूएफएम सुपर स्ट्रांग’, ‘थाउजेंड बोल्ट’, ‘कलालोन गोल्डन’ और ‘किंगफार्मर’ नामक पेय पदार्थों को जब्‍त कर दो कर्मचारियों को गिरफ्तार किया।

    अल्‍कोहल रहित थे पेय 

    राज्य सरकार की ओर से कोर्ट में कहा गया कि पूर्ण शराबबंदी लागू होने के बावजूद फर्म ने अल्कोहलिक बीयर जैसी पैकिंग और नाम का इस्तेमाल कर मादक पेय की बिक्री की। 

    दूसरी ओर, याचिकाकर्ता की ओर से बताया गया कि उत्पादों को बाजार में लाने से पहले परीक्षण कराया गया था, जिसमें ये पेय पूरी तरह अल्कोहल-रहित पाए गए थे।

    यहां तक कि सरकारी प्रयोगशाला द्वारा किए गए परीक्षण में भी इन पेयों में अल्कोहल नहीं पाया गया। याचिकाकर्ता का कहना था कि संबंधित फर्म को नई दिल्ली स्थित खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय से वैध लाइसेंस प्राप्त है और उत्पाद एनर्जी ड्रिंक की श्रेणी में ही आते हैं।

    सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद हाई कोर्ट ने पाया कि फोरेंसिक जांच सहित सभी परीक्षणों में पेय पदार्थ अल्कोहल-रहित सिद्ध हुए हैं। ऐसे में प्राथमिकी को जारी रखना न्यायसंगत नहीं है।