पटना हाई कोर्ट ने मेयर और उनके बेटे के खिलाफ दर्ज मामले में पुलिस कार्रवाई पर लगाई रोक, क्या है मामला?
पटना हाई कोर्ट ने मेयर सीता साहू और उनके बेटे के खिलाफ दर्ज मामले की जांच में पुलिस की कार्यशैली पर सवाल उठाए हैं। अदालत ने आधी रात को भारी संख्या में जवानों के साथ छापेमारी और स्ट्रीटलाइट बंद करने पर संदेह जताया। अदालत ने राज्य सरकार से सीसीटीवी फुटेज सहित हलफनामा मांगा है और अगली सुनवाई तक याचिकाकर्ताओं के खिलाफ कोई भी कठोर कार्रवाई करने से मना किया है।

विधि संवाददाता, पटना। पटना हाई कोर्ट ने मेयर सीता साहू और उनके पुत्र शिशिर कुमार के खिलाफ दर्ज मामले की जांच पर गंभीर टिप्पणी करते हुए पुलिस की कार्यशैली पर सवाल उठाए हैं। अदालत ने बिहार के पुलिस महानिदेशक को निष्पक्ष जांच सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है।
न्यायाधीश शैलेन्द्र सिंह की एकलपीठ ने कहा कि दर्ज प्राथमिकी केवल जमानती धाराओं से संबंधित है, बावजूद इसके पुलिस द्वारा आधी रात को भारी संख्या में जवानों के साथ छापेमारी करना और मोहल्ले की स्ट्रीटलाइट बंद कर देना अत्यधिक और संदेहास्पद प्रतीत होता है।
अदालत ने कहा कि इस तरह की कार्रवाई से जांच की निष्पक्षता पर प्रश्नचिह्न खड़े होते हैं। यह मामला 11 जुलाई को एक निजी होटल में आयोजित पटना नगर निगम की बैठक में हुए विवाद से जुड़ा है। बैठक के दौरान कुछ वार्ड पार्षद और नगर आयुक्त ने वॉकआउट किया।
इसके बाद पार्षद जीत कुमार ने प्राथमिकी दर्ज कराते हुए आरोप लगाया कि मेयर के पुत्र शिशिर कुमार और उनके अंगरक्षकों ने हमला कर जान से मारने की नीयत से धमकी दी। गांधी मैदान थाना में दर्ज एफआईआर में भारतीय न्याय संहिता, 2023 की विभिन्न धाराएं लगाई गईं।
याचिकाकर्ताओं की ओर से वरीय अधिवक्ता अंसुल ने दलील दी कि पूरा मामला राजनीतिक द्वेषवश रचा गया है। उन्होंने कहा कि सीसीटीवी फुटेज से साफ है कि शिशिर कुमार बैठक कक्ष के बाहर थे और प्राथमिकी में लगाए गए आरोप मनगढ़ंत हैं।
अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि प्राथमिकी में जो धाराएं दर्ज हैं वे सभी जमानती हैं, ऐसे में सीआरपीसी की धारा 41ए (अब बीएनएसएस की धारा 35) के तहत नोटिस दिए बिना की गई कार्रवाई विधिसम्मत नहीं कही जा सकती।
अदालत ने राज्य सरकार से एक सप्ताह में सीसीटीवी फुटेज सहित विस्तृत हलफनामा दाखिल करने को कहा है। साथ ही निर्देश दिया है कि मामले की जांच वरीय पुलिस पदाधिकारी की देखरेख में हो और अगली सुनवाई 22 अगस्त तक याचिकाकर्ताओं के खिलाफ किसी भी प्रकार की जबरन कार्रवाई न की जाए।
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