'पत्नी का भरण-पोषण पति की पहली जिम्मेदारी', हाई कोर्ट ने खारिज की RPF कॉन्स्टेबल की याचिका
पटना हाई कोर्ट ने कहा है कि पत्नी का भरण-पोषण पति का पहला कर्तव्य है। आरपीएफ कांस्टेबल चंदन पासवान की याचिका खारिज करते हुए अदालत ने यह फैसला सुनाया। पासवान ने पत्नी को दिए गए गुजारा भत्ता आदेश को चुनौती दी थी। कोर्ट ने कहा कि पति को अपनी पत्नी की देखभाल सबसे पहले करनी चाहिए उसके बाद ही अन्य जिम्मेदारियों का निर्वहन करना चाहिए।

विधि संवाददाता, पटना। पटना हाई कोर्ट (Patna High Court) ने स्पष्ट किया है कि पति का पहला दायित्व अपनी पत्नी की देखभाल करना है। न्यायाधीश अरुण कुमार झा की एकलपीठ ने आरपीएफ कॉन्स्टेबल चंदन पासवान की उस अर्जी को खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने पत्नी को दिए गए गुजारा भत्ता आदेश को चुनौती दी थी।
आवेदक ने तर्क दिया था कि परिवार न्यायालय ने उसकी देनदारियों को नजरअंदाज किया है। आवेदक का कथन था कि उसे अपने दो भाइयों और दिवंगत बहन की बेटी की देखभाल करनी होती है।
इस पर हाई कोर्ट ने कहा कि भाइयों को आश्रित नहीं माना जा सकता। वहीं, बहन की बेटी की देखभाल करना निस्संदेह एक “पवित्र दायित्व” हो सकता है, लेकिन यह कानूनी दायित्व नहीं है।
मामले से जुड़े तथ्यों के अनुसार, पत्नी ने गया के परिवार न्यायालय में दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के तहत भरण-पोषण का वाद दायर किया था। परिवार न्यायालय ने आदेश दिया था कि पति प्रत्येक माह की 15 तारीख तक पत्नी को 12 हज़ार रुपये भरण-पोषण के रूप में दे।
कोर्ट ने कहा कि चंदन पासवान, जिन्हें सभी कटौतियों के बाद लगभग 41 हजार रुपये मासिक वेतन प्राप्त होता है, सबसे पहले अपनी पत्नी के जीवन-यापन की जिम्मेदारी निभाएंगे। इसके बाद ही अन्य रिश्तेदारों की देखभाल का क्रम आता है। इस टिप्पणी के साथ हाई कोर्ट ने परिवार न्यायालय के आदेश को बरकरार रखते हुए पति की अर्जी को खारिज कर दिया।
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