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    Patna High Court : याचिकाकर्ता को भरना होगा हर्जाना, देश के पहले राष्‍ट्रपत‍ि का इलाज करने वाले डाक्‍टर से जुड़ा है मामला

    By Pratyush Pratap SinghEdited By: Vyas Chandra
    Updated: Mon, 10 Nov 2025 09:46 PM (IST)

    पटना उच्च न्यायालय ने एक याचिकाकर्ता पर जुर्माना लगाया है, जिसका मामला देश के पहले राष्ट्रपति का इलाज करने वाले डॉक्टर से संबंधित था। अदालत ने याचिका को निराधार पाया और कहा कि यह केवल समय बर्बाद करने के लिए दायर की गई थी। अदालत ने याचिकाकर्ता को अदालत के खर्चों का भुगतान करने का आदेश दिया।

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    Patna High Court ने 10 हजार हर्जाना भरने का द‍िया आदेश। जागरण आर्काइव

    विधि संवाददाता, पटना। बेवजह याचिका दायर कर अदालत का समय नष्ट करने के लिए पटना हाईकोर्ट ने अशोक राजपथ स्थित चौधरी मार्केट के मधुमेश चौधरी पर 10 हजार रुपये का हर्जाना लगाया है।

    न्यायाधीश शैलेन्द्र सिंह की एकलपीठ ने मधुमेश की सिविल रिव्यू याचिका खारिज करते हुए निर्देश दिया कि चार सप्ताह के भीतर यह राशि पटना हाईकोर्ट लीगल सर्विसेज कमिटी के कार्यालय में जमा की जाए।

    मामला पटना के हृदयस्थल में स्थित प्रख्यात चिकित्सक डॉ. टी.एन. बनर्जी के आवासीय बंगले की कथित धोखाधड़ीपूर्ण बिक्री से जुड़ा है। कोर्ट ने इसी वर्ष 27 फरवरी को इस संपत्ति की बिक्री की प्रक्रिया पर रोक लगा दी थी।

    उक्त आदेश को हटाने के उद्देश्य से मधुमेश चौधरी ने पुनर्विचार याचिका दायर की थी, जिसे न्यायालय ने निराधार मानते हुए अस्वीकार कर दिया।

    बिक्री पर की थी रोक लगाने की मांग 

    डॉ. बनर्जी की पौत्रियां उपासना मुखर्जी और चन्दना चैटर्जी, जो वर्तमान में कोलकाता में निवास करती हैं, ने हाईकोर्ट में अपील दायर कर अपने पैतृक आवासीय बंगले की बिक्री पर रोक लगाने की मांग की थी।

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    कोर्ट ने उनकी अपील स्वीकार करते हुए बिक्री पर रोक का आदेश दिया था। याचिकाकर्ताओं के पक्ष में वरीय अधिवक्ता अमित श्रीवास्तव और अधिवक्ता गिरीश पांडेय ने दलील दी।

    उन्‍होंने कहा कि डॉ. बनर्जी देश के विख्यात चिकित्सकों में से एक थे, जिन्होंने भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद (Dr. Rajendra Prasad) का उपचार किया था। उनके सम्मान में उनके आवास के समीप की एक प्रमुख सड़क का नाम भी रखा गया है।

    अधिवक्ताओं ने कोर्ट के समक्ष यह भी प्रस्तुत किया कि निचली अदालतों के अभिलेखों से स्पष्ट है कि बंगले को फर्जी दस्तावेज़ों के आधार पर हड़पने का प्रयास किया जा रहा था।

    कोर्ट ने पाया कि रिव्यू याचिका में पुनर्विचार के कोई वैध कानूनी आधार नहीं हैं और यह याचिका केवल न्यायिक प्रक्रिया में अनावश्यक बाधा उत्पन्न करने के उद्देश्य से दायर की गई थी।