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    Bihar News: पटना हाईकोर्ट ने बिहार सरकार को दिया बड़ा झटका, इस बड़े अधिकारी की बर्खास्तगी को बताया अवैध

    Updated: Sat, 15 Feb 2025 03:08 PM (IST)

    भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय मुजफ्फरपुर के पूर्व रजिस्ट्रार संजय कुमार को पटना हाईकोर्ट से बड़ी राहत मिली है। संजय कुमार ने अपनी बर्खास्तगी को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। इस मामले में न्यायाधीश अंजनी कुमार शरण की एकलपीठ ने संजय कुमार की बर्खास्तगी को अवैध बताया। साथ ही उन्हें तुरंत बहाल करने का आदेश भी जारी किया है।

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    पटना हाईकोर्ट ने पूर्व रजिस्टार के पक्ष में सुनाया फैसला

    विधि संवाददाता, पटना। पटना हाईकोर्ट ने भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय, मुजफ्फरपुर के पूर्व रजिस्ट्रार संजय कुमार की बर्खास्तगी को अवैध करार देते हुए उन्हें तत्काल बहाल करने का आदेश दिया है। न्यायाधीश अंजनी कुमार शरण की एकलपीठ ने अपने फैसले में कहा कि संजय कुमार को बिना किसी पूर्व सूचना और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन किए पद से हटा दिया गया था, जो पूरी तरह से असंवैधानिक है।

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    क्या है मामला

    • संजय कुमार, जो पहले बीआरए बिहार विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार थे, को 20 जून 2024 को एक आधिकारिक आदेश के माध्यम से पद से हटा दिया गया था।
    • उनकी जगह डॉ. अपराजिता कृष्णा को नियुक्त कर दिया गया था। इस फैसले को चुनौती देते हुए संजय कुमार ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी।
    • याचिका में उन्होंने दावा किया कि उन्हें बिना किसी पूर्व सूचना और सुनवाई के हटाया गया और उनकी जगह नियुक्त की गई नई रजिस्ट्रार आवश्यक योग्यता भी नहीं रखती थीं।

    हाईकोर्ट ने यह पाया कि डॉ. अपराजिता कृष्णा की नियुक्ति बिहार राज्य विश्वविद्यालय अधिनियम, 1976 की धारा 15 के नियमों के अनुसार नहीं हुई थी और वे इस पद के लिए आवश्यक योग्यता भी नहीं रखती थीं।

    अदालत ने यह भी कहा कि रजिस्ट्रार की नियुक्ति के लिए एक पारदर्शी प्रक्रिया होनी चाहिए थी, जिसमें एक पैनल से योग्य उम्मीदवारों के नाम मांगे जाने चाहिए थे, लेकिन ऐसा नहीं किया गया।

    सरकारी अधिकारी के व्यक्तिगत रूप से पेश होने के आदेश पर हाईकोर्ट ने जताई आपत्ति

    पटना हाईकोर्ट में एक महत्वपूर्ण मामला सामने आया, जिसमें राज्य सरकार और शिक्षा विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों की व्यक्तिगत उपस्थिति को लेकर बहस हुई। बिहार सरकार ने एक याचिका दायर कर यह अपील की थी कि एकलपीठ द्वारा जारी आदेश, जिसमें शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव को व्यक्तिगत रूप से पेश होने के लिए कहा गया था, अनुचित है।

    मामला एक सिविल रिट याचिका से जुड़ा था, जिसमें 13 फरवरी को एकल पीठ ने सरकार के वकील को निर्देश दिया था कि वे अपर मुख्य सचिव को दोपहर के सत्र में कोर्ट में पेश होने के लिए कहें।

    हालांकि, प्रशासनिक कारणों से यह आदेश पूरा नहीं हो सका, जिससे अदालत ने इसे अवमानना मानते हुए अगले दिन 14 फरवरी को अपर मुख्य सचिव को पेश होने का निर्देश दिया।

    सरकार की ओर से पेश महाधिवक्ता पीके शाही ने कोर्ट में तर्क दिया कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार सरकारी अधिकारियों की व्यक्तिगत उपस्थिति की जरूरत केवल विशेष परिस्थितियों में होती है और इस मामले में इसकी आवश्यकता नहीं थी।

    उन्होंने कहा कि यदि अधिकारी की व्यक्तिगत उपस्थिति आवश्यक हो तो वीडियो कान्फ्रेंसिंग जैसे अन्य विकल्पों पर भी विचार किया जाना चाहिए। कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने सरकार की दलीलों को सुनने के बाद एकल पीठ को निर्देश जारी किया।

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