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    BPSC चयन प्रक्रिया में सामने आई अनियमितता, अब 8 सप्ताह के भीतर इस कैंडिडेट को नियुक्ति पत्र देने का आदेश

    पटना हाई कोर्ट ने बिहार लोक सेवा आयोग द्वारा वोकल म्यूजिक के व्याख्याता पद पर एक चयनित अभ्यर्थी की नियुक्ति रद कर दी है। अदालत ने पाया कि अभ्यर्थी का विकलांगता प्रमाणपत्र अमान्य था जबकि याचिकाकर्ता दुर्गेश कुमार का प्रमाणपत्र वैध था। कोर्ट ने बीपीएससी को दुर्गेश कुमार को आठ सप्ताह के भीतर नियुक्ति पत्र जारी करने और मुआवजा देने का आदेश दिया।

    By Jagran NewsEdited By: Mukul Kumar Updated: Sun, 04 May 2025 07:32 PM (IST)
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    BPSC चयन प्रक्रिया में सामने आई अनियमितता

    विधि संवाददाता, पटना। पटना हाई कोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण निर्णय से बिहार लोक सेवा आयोग द्वारा वोकल म्यूजिक (फाइन आर्ट्स एंड क्राफ्ट्स) विषय में व्याख्याता के 26 रिक्त पदों पर चयनित अभ्यर्थी के विरुद्ध अपना फैसला सुनाकर नियुक्ति रद कर दी।

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    न्यायालय ने पाया कि चयनित अभ्यर्थी का अस्थायी विकलांगता प्रमाणपत्र आवेदन की अंतिम तिथि 22 जून 2016 तक अवैध हो चुका था, जबकि स्थायी विकलांगता प्रमाणपत्र धारी याचिकाकर्ता दुर्गेश कुमार का प्रमाणपत्र वैध था।

    न्यायाधीश पूर्णेन्दु सिंह की पीठ ने अपने आदेश में कहा कि 'आवेदन की अंतिम तिथि तक समस्त शैक्षणिक एवं चिकित्सीय प्रमाण पत्र वैध होने चाहिए, अन्यथा आरक्षण का लाभ नहीं मिल सकता'।

    कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि सर्वोच्च न्यायालय ने भी अपने निर्णय में स्पष्ट किया है कि विज्ञापन में निर्धारित मापदंडों में किसी भी प्रकार की छूट नहीं दी जा सकती जब तक नियम या विज्ञापन स्वयं इसकी सहूलियत न प्रदान करे।

    आठ सप्ताह के भीतर नियुक्ति पत्र जारी करने का आदेश

    अदालत ने निर्देश दिया कि बीपीएससी को आठ सप्ताह के भीतर याचिकाकर्ता दुर्गेश कुमार को व्याख्याता (वोकल म्यूजिक) के रूप में नियुक्ति पत्र जारी करे।

    साथ ही, उन्हें 21 जुलाई 2020 से लागू वेतन, सेवा अवधि एवं अन्य लाभ प्रदान किए जाएं। अदालत ने आयोग को 20 लाख रुपये मुआवजा व 20 हजार रुपये याचिका व्यय के रूप में भुगतान का भी आदेश दिया, यह कहते हुए कि 'अन्यथा भर्ती प्रक्रिया में हुई मनमानी का खामियाज़ा दृष्टिहीन अभ्यर्थी को चार साल तक भुगतना पड़ा।'

    निर्णय में न्यायालय ने बीपीएससी अध्यक्ष को यह भी निर्देश दिया कि दोषी अधिकारियों के विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्रवाई कर उन्हें व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदार बनाया जाए, ताकि भविष्य में आयोग की विश्वसनीयता बनी रहे।

    न्यायालय ने यह भी उल्लेख किया कि विकलांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 का उद्देश्य सिर्फ आरक्षण देना नहीं, बल्कि संवैधानिक गरिमा और समान अवसर सुनिश्चित करना भी है।

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