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    गैरकानूनी तरीके से चल रहे ईंट भट्ठों पर पटना हाईकोर्ट नाराज, पूछा-बोर्ड के बावजूद क्‍यों हो रहा ऐसा

    By Vyas ChandraEdited By:
    Updated: Wed, 21 Sep 2022 09:36 AM (IST)

    बिहार में अवैध तरीके से चल रहे ईंट भट्ठों को लेकर पटना हाईकोर्ट ने नाराजगी जताई है। इन भट्ठों से होनेवाले प्रदूषण को लेकर कोर्ट ने प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के दावे पर तल्‍ख टिप्‍पणी की। आदेश दिया है कि ऐसे भट्ठों को तुरंत बंद कराया जाए।

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    अवैध ईंट भट्ठों पर पटना हाईकोर्ट ने जताई नाराजगी। सांकेतिक तस्‍वीर

    पटना,  राज्य ब्यूरो। पटना हाईकोर्ट ने बिहार में गैर कानूनी रूप से चलने वाले ईंट भट्ठे से होने वाले प्रदूषण के मामले पर बिहार प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के दावे पर तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा सभी 102 ईंट भट्ठों को बंद कराने के बावजूद कैसे इतनी बड़ी संख्या में ईंट भट्ठे प्रदूषण फैला रहे हैं।

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    प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के बावजूद इतनी बड़ी संख्‍या में क्‍यों चल रहे भट्ठे

    मुख्य न्यायाधीश संजय क़रोल व न्यायाधीश एस कुमार ने अनमोल कुमार की लोकहित याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि सभी 102 ईट भट्ठे को बंद करा दिया गया ,लेकिन प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड होने के बावजूद इतनी बड़ी संख्या में ईंट भट्ठे चल रहे हैं। इसके साथ साथ कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर ऐसे अवैध रूप से ईट भट्ठे चालू पाये गए तो उन्हें तत्काल बंद करा दिया जाएगा तथा उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई चलेगी। एमिकस क्यूरी अधिवक्ता शिल्पी केशरी ने कोर्ट को बताया कि राज्य में ईंट भट्ठे चलाने के क्रम में नियमों का खुला उल्लंघन किया गया। उन्होंने कहा कि बारिश के दिनों में तो ईट भट्ठे ऐसे भी बंद ही रहते है। उन्होंने कहा कि इन ईंट भट्ठे से होने वाले प्रदूषण के कारण वातावरण पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। इसका खामियाजा आम लोगों को भुगतना पड़ता है। इस मामले पर अगली सुनवाई 29 सितबंर को होगी।

    अपारदर्शी है कोलेजियम सिस्‍टम 

    पटना हाई कोर्ट एडवोकेट्स एसोसिएशन के अध्यक्ष वरीय अधिवक्ता योगेश चंद्र वर्मा ने मंगलवार को एक सुप्रीम कोर्ट व हाई कोर्ट में जजों की नियुक्ति के लिए अपनाए गए वर्तमान कोलेजियम सिस्टम पर सवाल खड़ा करते हुए इसे अपारदर्शी व लोकतांत्रिक ढांचे के विरुद्ध बताया । उन्होंने कहा कि संविधान में कोलेजियम नाम की कोई व्यवस्था नहीं है, जिसके तहत उच्च न्यायपालिका में जजों की नियुक्ति की जाती है । वर्मा मंगलवार को प्रेस से बात कर रहे थे। उन्होंने कहा कि काबिल एवं सक्षम होने के बावजूद कई अधिवक्ता उच्च न्यायपालिका में जज नहीं बन पाते हैं, क्योंकि उनके नामों की अनुशंसा करने वाला कोई नहीं होता है।

    उन्होंने कहा कि संविधान के अनुसार न्यायपालिका को स्वतंत्र होना चाहिए, लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि न्यायपालिका आज के दिनों में विधायिका और कार्यपालिका से प्रभावित हो रही है और इस तरह से सक्षम जजों की निष्पक्ष रूप से नियुक्ति नहीं हो पा रही है। उन्होंने जजों के कार्यकाल को बढ़ाने पर भी आपत्ति जाहिर करते हुए कहा कि जजों की ज़्यादा से ज़्यादा नियुक्ति की जानी चाहिए , न कि जजों के कार्यकाल की अवधि बढ़ाई जानी चाहिए । उनका कहना था कि जजों की नियुक्ति के लिए ऐसी व्यवस्था बनाई जानी चाहिए, जिसके जरिये सक्षम और समाज के सभी तबकों की नियुक्ति संभव हो। उनका कहना था कि जजों की समाज में एक अति महत्वपूर्ण भूमिका है। जिसका सीधा असर देश और समाज पर पड़ता है, इसलिए इस पद पर सही लोगों को नियुक्त किया जाना समय की मांग और जरूरत है।