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    शराब पीने की पुष्‍टि‍ के लिए क्‍या है विश्‍वसनीय आधार? पटना हाईकोर्ट ने सुनाया महत्‍वपूर्ण फैसला

    By Pratyush Pratap Singh Edited By: Vyas Chandra
    Updated: Fri, 12 Dec 2025 08:12 PM (IST)

    पटना हाईकोर्ट ने मधेपुरा में शराब पीने के दर्ज मामले की सुनवाई करते हुए महत्‍वपूर्ण निर्णय दिया। अदालत ने कहा कि केवल संदेह या सतही मेडिकल जांच से किस ...और पढ़ें

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    पटना हाईकोर्ट ने मधेपुरा के मामले में सुनाया फैसला। जागरण आर्काइव

    विधि संवाददाता, पटना। पटना हाई कोर्ट ने मधेपुरा के सिंहेश्वर थाना कांड संख्या 69/2021 में दर्ज शराबबंदी उल्लंघन के मामले को रद करते हुए स्पष्ट निर्देश दिया है कि राज्य के सभी ट्रायल कोर्ट शराबबंदी कानून के मामलों में निर्धारित विधिक प्रक्रिया के प्रावधानो का सख्ती से पालन करें।

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    न्यायाधीश अरुण कुमार झा की पीठ ने शमशेर बहादुर की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि शराबबंदी से जुड़े मामलों में अदालतों की भूमिका और भी संवेदनशील हो जाती है, क्योंकि मामूली प्रक्रियात्मक गलती भी निर्दोष व्यक्तियों को अपराधी बना सकती है।

    अदालत ने स्पष्ट किया कि केवल “संदेह” या सतही मेडिकल अवलोकन के आधार पर किसी को शराब सेवन का दोषी नहीं ठहराया जा सकता। एकलपीठ ने सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला देते हुए स्पष्ट किया कि वैज्ञानिक परीक्षण ही शराब सेवन सिद्ध करने का एकमात्र विश्वसनीय आधार है।

    कोर्ट ने यह भी पाया कि ट्रायल कोर्ट ने आरोपी का बयान नियम 18 के तहत निर्धारित फॉर्म VI-ए में दर्ज नहीं किया और न ही आदेश फॉर्म VII के अनुसार पारित किया।

    आरोपी ने जबरन या गलत सलाह पर जुर्माना भी भर दिया था। हाई कोर्ट ने इस आदेश की प्रति को सूबे के सभी ट्रायल कोर्ट को भेजने का आदेश हाई कोर्ट के महानिबंधक को दिया है।

    क्या है मामला ?

    मामला मधेपुरा के सिंघेश्वर थाना से सम्बंधित हैं। पुलिस ने आवेदक सहित एक अन्य को शराब पीने के आरोप में 25 मार्च 2021 को गिरफ्तार किया। याचिकाकर्ता का कहना था कि गिरफ्तारी के बाद पुलिस ने ब्रेथ एनालाइजर से जांच तक नहीं की। 

    यही नहीं खून और पेशाब का नमूना तक नहीं लिया गया। सिर्फ डॉक्टर के कहने पर शराब के नशा में होने को लेकर केस दर्ज कर लिया गया। कोर्ट ने आवेदक को 2000 रुपये जमा करने का आदेश दिया और जुर्माना जमा नहीं किये जाने पर एक माह का साधारण कारावास की सजा दी।

    साथ ही मामले को निष्पादित कर दिया। याचिकाकर्ता के अधिवक्ता का कहना था कि आवेदक ने कभी भी अपना अपराध स्वीकार नहीं किया और गलत कानूनी सलाह के तहत उसने जुर्माना जमा किया।

    ट्रायल कोर्ट के आदेश से ऐसा प्रतीत होता है कि आवेदक ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया है। बल्कि उसने अपने आप को पूरी तरह निर्दोष बताया सिर्फ मामले को समाप्त करना चाहता था और इसके लिए वह जुर्माना जमा करने को तैयार था।