Bihar Politics: एसआईआर के बहाने गरीबों-वंचितों को गोलबंद करने में जुटा राजद, इस बात की है बेचैनी
राजद मतदाता सूची के विशेष पुनरीक्षण का विरोध कर गरीब और वंचितों को अपने साथ लाने की कोशिश कर रही है क्योंकि उन्हें लगता है कि यह वर्ग उनसे दूर है। राजद इस मुद्दे को लेकर सुप्रीम कोर्ट भी जा चुकी है और बिहार बंद में भी शामिल हुई। पार्टी कार्यकर्ताओं को निर्देश है कि वे गरीबों का विश्वास जीतें।

राज्य ब्यूरो, पटना। मतदाता-सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआइआर) के विरुद्ध राजद के आक्रामक रुख का मुख्य कारण गरीब-वंचित वर्ग को अपने पक्ष में गोलबंद करना है। मतदाताओं का यह वर्ग अभी राजद से बहुत निकट नहीं, ऐसे में उसे लुभाने के लिए अच्छा अवसर बन आया है।
यही कारण है कि एसआईआर पर महागठबंधन, विशेषकर राजद, द्वारा केवल विरोध दर्ज कराया जा रहा। इस पर बनी भ्रम की स्थिति से नागरिकों को बाहर निकालने का वह कोई ठोस प्रयास नहीं कर रहा।
एसआईआर के मुद्दे पर राजद सर्वाेच्च न्यायालय का रुख भी कर चुका है और बुधवार को बिहार बंद में बढ़-चढ़कर आगे रहा। संयोग से विरोध के लिए उसे पर्याप्त कारण भी मिल जा रहा। तीन तारीखों का विकल्प देकर निर्वाचन आयोग ने राजद के प्रतिनिधिमंडल को दिल्ली बुलाया था।
पहली तारीख (10 जुलाई) पर भेंट-वार्ता हेतु प्रतिनिधिमंडल प्रस्थान करने वाला था। इसी बीच मुलाकात का कार्यक्रम निरस्त कर दिया गया। अब राजद का कहना है कि उसकी बात की अनसुनी की जा रही। नेतृत्व से पार्टी-जनों को निर्देश है कि इसी बहाने गरीब-वंचित वर्ग का विश्वास प्राप्त करने का प्रयास हो, जो अभी एसआईआर में उलझा हुआ है।
इस गरीब-वंचित वर्ग में बहुतायत संख्या अनुसूचित जाति-जनजाति और अति-पिछड़ा वर्ग की है। कांग्रेस से मोहभंग के बाद अनुसूचित जाति एक समय लालू प्रसाद से निकटता का अनुभव कर रही थी, लेकिन राजद के जनाधार की दबंगई से वह बहुत जल्द दूर भी हो गई। संयोग से उसके राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के रूप मेंं विकल्प भी मिल गया। पिछले चुनाव परिणाम इसकी पुष्टि कर रहे।
2020 के विधानसभा चुनाव में राजग से मात्र 11150 वोट कम पाकर महागठबंधन सत्ता से दूर रह गया था। मात्र इतने वोटों के अंतर ने 15 सीटों का फासला बनाया था। उस परिणाम के बाद राजद माय (मुसलमान-यादव) के साथ बाप (बहुजन-आधी आबादी-अगड़ा-गरीब) की भी दुहाई देने लगा। इस अपेक्षा के साथ कि इस बाप का एक छोटा अंश भी उसके साथ आए जाए तो चुनावी राजनीति का सुफल मिले।
लोकसभा के पिछले चुनाव में आंशिक रूप से उसका यह प्रयोग सफल रहा है, लेकिन विधानसभा चुनाव मेंं समीकरण और चुनौती अलग तरीके की है। 2020 में महागठबंधन को 2015 की तुलना में 8.62 प्रतिशत अधिक वोट मिले थे। राजग को 7.84 प्रतिशत कम। इन पांच वर्षों में बढ़े-घटे वोट यथावत हैं, इसकी गारंटी नहीं। राजद की बेचैनी का मूल कारण यही है। इसीलिए वह एसआइआर के मुद्दे को हाथ से फिसलने नहीं देना चाहता।
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