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    Bihar Voter List 2025: मतदाता सूची में नाम जोड़ने के लिए 3 मानदंडों पर करें दावा, 25 जुलाई है लास्ट डेट

    Updated: Wed, 16 Jul 2025 07:52 PM (IST)

    चुनाव आयोग ने मतदाता सूची के पुनरीक्षण अभियान में तीन महत्वपूर्ण तिथियों का साक्ष्य माँगा है जिसके अनुसार मतदान का अधिकार भारतीय होने की कानूनी पुष्टि से तय होगा न कि केवल भारत में जन्म लेने से। बिहार में मतदाता सूची में नाम जुड़वाने की अंतिम तिथि 25 जुलाई है। आयोग ने 2003 के बाद मतदाता बनने वालों की पड़ताल पर विशेष ध्यान केंद्रित किया है।

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    मतदाता सूची में नाम जोड़ने के लिए तीन मानदंडों पर करें दावा

    राज्य ब्यूरो, पटना। चुनाव आयोग ने मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण अभियान में तीन महत्वपूर्ण तिथियों का साक्ष्य मांगा है। इसमें स्पष्ट संदेश दिया गया है कि मतदान का अधिकार भारत में जन्म लेने भर से नहीं, भारतीय होने की कानूनी पुष्टि से तय होगा। ये तीन तिथियां सिर्फ टाइमलाइन नहीं हैं। ये हैं लोकतंत्र के दरवाजे में प्रवेश करने के ताला खोलने की तीन चाभियां हैं।

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    अगर आपके पास इनमें से कोई एक चाभी है तो आप भारत की सबसे बड़ी लोकतांत्रिक यात्रा में सहभागी बन सकते हैं। किसी कारणवश वंचित हो रहे हैं तो साक्ष्य पेश करें एवं शेष बचे नौ दिनों में मतदाता सूची में नाम जुड़वाना सुनिश्चित करें।

    बिहार में 25 जुलाई तक विधानसभा चुनाव को लेकर गणना प्रपत्र भरने एवं मतदाता सूची में नाम अंकित कराने की अंतिम तिथि निर्धारित है। आयोग ने मतदाता सूची की शुचिता पर विशेष ध्यान केंद्रित करते हुए 2003 के उपरांत मतदाता बनने वालों के पड़ताल एवं पहचान पर विशेष ध्यान केंद्रित किया है।

    पहला आधार

    एक जुलाई 1987 से पहले जन्मे मतदाताओं के लिए

    यह वह दौर था जब भारत को अपनी जनसंख्या पर शक नहीं था। जो भी भारत में जन्मा, वह भारतीय मतदाता माना गया। माता-पिता कौन थे, कहां से आए, इससे फर्क नहीं पड़ता था। भारतीय भूमि पर जन्म लेना ही पहचान था।

    ऐसे में भारत निर्वाचन आयोग भी 1987 से पहले जन्मे मतदाताओं से उनके जन्म तिथि एवं जन्मस्थान का साक्ष्य मांग रहा है। इससे पहले यह प्रविधान था कि 1955 से पहली जुलाई 1987 के बीच भारत में जन्म लेने वाला व्यक्ति मतदाता है, भले ही उसके माता-पिता की राष्ट्रीयता कुछ भी रही हो।

    दूसरा आधार

    पहली जुलाई 1987 से तीन दिसंबर 2004 के बीच जन्मे मतदाता के मामले में

    दरअसल, वर्ष 1987 तक देश में ऐसे मतदाताओं की संख्या में भारी वृद्धि हुई थी। ऐसे 1986 में संसद ने कानून बनाकर यह तय किया गया कि मतदाता अब माता या पिता के मतदाता होने पर भी आधारित होगी।

    इसमें कहा गया कि एक जुलाई 1987 के बाद भारत में पैदा हुए व्यक्ति को भारत का मतदाता तभी माना जाएगा जब उनके जन्म के समय उसके माता-पिता में से कोई एक भारत का मतदाता हो। विदेशी मतदाताओं के बच्चों को भारत की पहचान यूं ही नहीं दी जा सकती।

    तीसरा आधार

    तीन दिसंबर, 2004 के बाद जन्मे मतदाता यह लोकतांत्रिक व्यवस्था का सबसे सतर्क चरण है। अब यदि कोई भारत में जन्म लेता है, तो उसे मतदान का अधिकार तभी मिलेगा जब उसके माता-पिता दोनों भारतीय मतदाता हों। मतदाता कानून को 2004 में और सख्त बना दिया गया।

    संसद में 2003 में पारित संशोधित कानून में कहा गया कि तीन दिसंबर, 2004 को या उसके बाद भारत में जन्म लेने वालों को तभी मतदाता माना जाएगा, जब उनके माता-पिता दोनों मतदाता हों।

    इसी को आधार बनाकर भारत निर्वाचन आयोग ने मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण अभियान को प्रभावी बनाया है।

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