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    Patna Book Fair: मैदान पर दबदबा रखने वाली मह‍िला खिलाड़ी बोलीं, बेटी अवसर पाएगी तो अव्वल ही आएगी

    By Akshay Pandey Edited By: Vyas Chandra
    Updated: Mon, 08 Dec 2025 08:45 PM (IST)

    पटना पुस्तक मेले में एक महिला खिलाड़ी ने अपनी बात रखते हुए कहा कि अगर बेटी को अवसर मिलेगा तो वह हमेशा आगे रहेगी। उन्होंने खेल और शिक्षा के महत्व पर जो ...और पढ़ें

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    पटना पुस्तक मेले में महिला खिलाड़ियों के साथ क्राइस्ट चर्च डायोसेशन स्कूल के बच्चे व अन्य। जागरण

    जागरण संवाददाता, पटना। किसी का भाई प्रशिक्षक बना, तो किसी को बहन का साथ मिला। खुद की यात्रा साझा करते हुए बेटियों की आंख में आंसू आए, तो दर्शक दीर्घा में बैठे चेहरे गर्व से चमके। वो धूप में जलीं और निखर आईं।

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    मध्यम वर्गीय परिवार से आने वाली बेटियों ने बिहार का नाम फलक पर पहुंचा दिया। मैदान पर दबदबा बनाने वाली लड़कियों की कहानियां सोमवार को पटना पुस्तक मेले के मंच से सामने आई, तो संघर्ष सुन हौसला देने को तालियां ही गूंजती रहीं।

    'हमारे हीरो'' कार्यक्रम के दौरान डा. मोनी त्रिपाठी की नमिता, श्यामा, रेमी, मीरा और अंजिल से बातचीत का सार यह निकला कि अभिभावक साथ दें, तो कुछ भी असंभव नहीं है। बेटी अवसर पाएगी, तो अव्वल ही आएगी।

    Book Fair 2

    (सत्र के दौरान बातचीत करतीं (बाएं से) अंजलि, मीरा, रेमी, श्यामा, नमिता और डा. मोनी त्रिपाठी।)

    मैदान पर अब लड़कियों का दबदबा 

    भारतीय सेपकटाकरा टीम की सदस्य रहीं नमिता सिन्हा ने कहा कि मुझे खेल के लिए घर से समर्थन मिला। इसी वजह से मैं सेपकटाकरा जैसे कम प्रचलित खेल से इंडिया खेलने वाली बिहार की पहली महिला बनी। आज तो काफी परिवर्तन हुआ है।

    उन्होंने कहा कि अभिभावक एक घंटे बच्चों को जरूर मैदान भेजें। एक सीख भी दी कि कम चर्चित खेलों में भविष्य बनाने के लिए काफी अवसर हैं। भारतीय फुटबाल टीम की सदस्य रहीं श्यामा रानी ने बताया कि बहन को देख फुटबाल खेलना शुरू किया।

    सरकार ने बड़ी बहन को साइक‍िल दी, तो उसी से मैदान आना-जाना शुरू हुआ। उन्होंने कहा कि एक समर्थन मिल जाए, तो बेटी मैदान मार सकती है। कहा कि जो प्रोत्साहन नहीं देते, वे हमें ज्यादा हौसला देते हैं।

    श्यामा ने कहा कि अब बेहतर प्रशिक्षक और मैदान है। स्कूलस्तर पर प्रतिभा तराशी जा रही है। इस बार खेल कोटे से मिली नौकरी का आंकड़ा देख लें, 87 में 39 महिला हैं।

    अभिभावक का भरोसा जीतिए

    राष्ट्रीय कबड्डी खिलाड़ी रहीं रेमी सिंह ने बचपन के दौर को ताजा करते हुए बताया कि एक लड़की छेड़खानी के मामले में लड़के को पीट रही थी। महिला को ऐसा करते देख मैंने पूछा, तुम्हें इतनी हिम्मत कहां से आई, उसने जवाब दिया, मैं कबड्डी खेलती हूं। मुझे लगा कि कबड्डी खेलने से मैं मजबूत हो जाऊंगी। बस यहीं से खेल की शुरुआत हुई।

    उन्होंने कहा कि बेटियों को अब कमेंट को परमानेंट मान लेना चाहिए। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। समाज बेटियों की उपलब्धियों को स्वीकार करे। बिहार एकलौता राज्य है जहां, मशाल जैसे आयोजन कर 60 हजार बच्चों का डाटा सरकार के पास है।

    उन्होंने कहा कि हम इतने अभाव में यहां तक पहुंच गए, अब तो खेल मंत्री श्रेयसी सिंह भी खिलाड़ी हैं। आप मेहनत करें, कमाल होगा। पांच वर्ष और प्रतीक्षा करिए, बिहार हर खेल में अव्वल होगा। बच्चों को सीख दी कि अपने अधिकार को पहचानिए। अभिभावक का भरोसा जीतिए।

    घर के समर्थन से कुछ भी है संभव

    अंतरराष्ट्रीय निशानेबाज मीरा ने बताया कि एनसीसी में रहते हुए पहली बार पिस्टल थामी। उस दौर में 40 लड़कों और पांच लड़कियों के बीच मेरा अचूक निशाना देख सीनियर ने अभ्यास की सलाह दी। जब खेल का क्रम शुरू हुआ, तो अन्य राज्यों के खिलाड़ियों से राइफल लेकर अभ्यास किया।

    इसके बाद वर्ष 2008 से 2016 तक भारतीय टीम के लिए खेली। कई राज्यों ने अपने यहां से निशाना लगाने का अवसर दिया, पर मैंने बिहार नहीं छोड़ा। उन्होंने कहा कि बेटी बाहर जाएगी, तो राज्य को चमकाएगी। राष्ट्रीय तीरंदाज अंजलि ने बताया कि मैं बिहार से हूं, पर खेल की यात्रा जमशेदपुर से शुरू हुई। मेरे प्रशिक्षक बड़े भाई रहे।

    उन्होंने मेरे लिए अपना भविष्य दांव पर लगा मुझे खेल के गुर सिखाए। उन्होंने कहा कि समाज ताने दे सकता है कि खेल छोड़ दो, पर घर का समर्थन रहे तो, कुछ भी संभव हो।

    पहले बेहतर प्रदर्शन के बावजूद पांच-पांच साल नौकरी के लिए इंतजार करना पड़ता था। आज पदक लाइए, आनलाइन निबंधन कर नौकरी पाइए। उन्होंने कहा कि बच्चे मोबाइल पर अधिक निर्भर हो रहे हैं, खेल से स्क्रीन टाइम कम किया जा सकता है।