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    Pappu Yadav: पप्पू यादव ने क्यों थामा कांग्रेस का हाथ, आखिर इस 'पॉलिटिकल पिक्चर' की क्या है इनसाइड स्टोरी?

    Updated: Wed, 20 Mar 2024 08:30 PM (IST)

    2015 में पप्पू ने जन अधिकार पार्टी (जाप) का गठन किया था और उसके बाद के लोकसभा व विधानसभा का चुनाव भी लड़े। इन क्षेत्रों में से उन्हें कहीं भी सफलता नहीं मिली। यही कारण है कि उनकी जिस पार्टी का कांग्रेस में विलय हुआ है उसके विधायक-सांसद तो दूर उससे सीधे जुड़े मुखिया-सरपंच तक नहीं। अलबत्ता पप्पू के साथ समर्थकों का एक हुजूम होता है।

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    पप्पू यादव ने क्यों थामा कांग्रेस का हाथ, आखिर इस 'पॉलिटिकल पिक्चर' की क्या है इनसाइड स्टोरी?

    राज्य ब्यूरो, पटना। इधर के दिनों में दूसरे दलों से कांग्रेस में जितने भी छोटे-बड़े नेता आए, उनमें पूर्व सांसद राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव सर्वाधिक सक्रिय रहे हैं। राजनीतिक महत्वाकांक्षा में अपनी अलग पार्टी (जन अधिकार पार्टी) तक बनाए और चुनाव में दांव आजमाकर भी देख लिया। अब पुत्र सार्थक रंजन के साथ कांग्रेस के हो गए हैं। इस प्रतिबद्धता के साथ कि कोसी, सीमांचल और मिथिलांचल में वे कांग्रेस व महागठबंधन की मजबूती के लिए अथक प्रयास करेंगे।

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    प्रेस-वार्ता में उन्होंने इसकी सार्वजनिक रूप से घोषणा की है। पत्नी रंजीत रंजन पहले से ही कांग्रेस का हाथ थामे हुए है और छत्तीसगढ़ से राज्यसभा की सदस्य हैं। पप्पू के बारे में भी यह धारणा है कि वे कहीं टिक कर नहीं रहते। संसदीय क्षेत्र की तरह पार्टी भी बदलते रहते हैं। हालांकि, उन्होंने यह कसरत पिछले वर्षों में की है और उसका परिणाम भी देख-समझ चुके हैं।

    'कांग्रेस जाति-संप्रदाय में विश्वास नहीं रखती'

    बिहार कांग्रेस आज जिस स्थिति में है, उसमें असीम धैर्य की आवश्यकता है। पार्टी के एक अनुभवी ओहदेदार का कहना है कि कांग्रेस की अपनी चाल-ढाल है और वह बिहार को क्षेत्र में बांटकर नहीं देखती, न ही जाति-संप्रदाय की राजनीति में विश्वास रखती है।

    संभवत: यह संदेश पप्पू के लिए भी हो, क्योंकि दिल्ली में उनके समर्थकों द्वारा जिंदाबाद के नारे लगाए जाने पर कांग्रेस-जनों ने प्रेस-वार्ता की मर्यादा का ध्यान दिलाया और उन्हें कांग्रेस की रीति-नीति के अनुपालन की सीख दी।

    मधेपुरा और पूर्णिया संसदीय क्षेत्रों से लड़कर पप्पू हारते-जीतते रहे हैं। रंजीत भी सहरसा और सुपौल संसदीय क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं। इनमें से पूर्णिया सीमांचल का अंश है और बाकी संसदीय क्षेत्रों की गिनती कोसी परिक्षेत्र में होती है।

    2015 में पप्पू ने जन अधिकार पार्टी (जाप) का गठन किया था और उसके बाद के लोकसभा व विधानसभा का चुनाव भी लड़े। इन क्षेत्रों में से उन्हें कहीं भी सफलता नहीं मिली। यही कारण है कि उनकी जिस पार्टी का कांग्रेस में विलय हुआ है, उसके विधायक-सांसद तो दूर, उससे सीधे जुड़े मुखिया-सरपंच तक नहीं। अलबत्ता पप्पू के साथ समर्थकों का एक हुजूम होता है।

    • लोकसभा के छह चुनाव लड़ चुके हैं पप्पू, पांच बार रहे विजयी, एक बार विधायक भी रहे
    • 2014 में राजद प्रत्याशी के रूप में मधेपुरा में शरद यादव को पराजित करना बड़ी उपलब्धि
    • 2015 में उनकी पार्टी 40 विधानसभा क्षेत्रों में लड़कर हर जगह हारी, दो प्रतिशत वोट मिले
    • 2019 में मधेपुरा में 97631 वोट पाकर तीसरे नंबर पर रहे, जदयू से हार गए थे शरद यादव

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