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अब संगीत की महफिलों में नहीं नजर आएंगे गजेंद्र बाबू, पद्मश्री से हो चुके हैं सम्‍मानित

बिहार के सहरसा के रहने वाले पद्मश्री गजेंद्र नारायण सिंह का निधन हो गया। 2007 में उन्‍हें पद्मश्री सम्‍मान से सम्‍मानित किया गया था।

By Ravi RanjanEdited By: Published: Mon, 30 Apr 2018 04:05 PM (IST)Updated: Mon, 30 Apr 2018 08:40 PM (IST)
अब संगीत की महफिलों में नहीं नजर आएंगे गजेंद्र बाबू, पद्मश्री से हो चुके हैं सम्‍मानित
अब संगीत की महफिलों में नहीं नजर आएंगे गजेंद्र बाबू, पद्मश्री से हो चुके हैं सम्‍मानित
पटना [जेएनएन]। संगमरमर सा रंग, उस पर मलमल या सिल्क का कुर्ता, बंगाली अंदाज में बांधी धोती और मुंह में पान की गिलौरी। पहचान थी पद्मश्री गजेंद्र नारायण सिंह की। शहर में जब कहीं, जहां भी संगीत की महफिल सजती तो गजेंद्र बाबू उसमें न हों ऐसा अमूमन होता नहीं था। पर आज के बाद संगीत की महफिलें आगे भी जिन्दा होती रहेंगी, पर अब उनमें गजेंद्र बाबू नहीं होंगे। आज उन्होंने अंतिम विदा ले ली।
उन्हें जानने वाले मानते हैं कि वे एक ऐसे कलाकार थे जो सुरों को छुए बगैर ही ऐसे-ऐसे सुर लगा देते कि अच्छे-अच्छे गवइया सा संगीतकार नहीं लगा सकते थे। गायक शास्त्रीय हो, उप-शास्त्रीय हो या फिर लोक एवं सुगम संगीत का वह जानता था कि गजेंद्र बाबू जैसे शिल्पी की सराहना बगैर सब अधूरा है। उनकी सराहना न सिर्फ उसे स्थापित कर देगी बल्कि उस स्थापना को स्थायित्व भी दे जाएगी।
गजेंद्र बाबू सिर्फ सुनने के शौकीन हों और सुर के जानकार हों सिर्फ इतना ही नहीं था, वे कलम के भी उतने ही पारखी और जानकार थे। पंडित भीमसेन जोशी पर लिखी उनकी पुस्तक 'कालजयी सुर-पंडित भीमसेन जोशी' 'सुरीले लोगों की संगत' काफी चर्चा में रही।
भीमसेन जोशी के पुत्र श्रीनिवास जोशी ने एक बार भीमसेन जोशी के सामने सुरीले लोगों की संगत का पाठ किया। पूरी किताब सुनने के बाद पंडित जोशी ने गजेंद्र बाबू की सराहना करते हुए कहा था 'गजेंद्र नारायण बहुत अच्छा लिखता है, उसकी लेखनी सटीक एवं दिल को छू लेने वाली होती है'।
गजेंद्र बाबू संगीत पर चर्चाओं के दौरान अक्सर धु्रपद घरानों की बात करते लेकिन, इस क्रम में भी पटना सिटी की मशहूर तवायफ जोहरा बाई की चर्चा कदापि भूलते नहीं। इसी क्रम में वे आजादी के पूर्व संगीत की स्थिति का भी बखान करते। वे कहते आजादी के पूर्व संगीत की स्थिति को समझे बगैर हम आजादी के बाद के सत्तर साल के सफर को समझ नहीं सकते।
वे कहते बिहार में अनेक रियासतें और जमींदारी थी जिनके सामंत न केवल संगीतकारों के संरक्षक संवद्र्धक थे बल्कि उनमें अधिकांश स्वयं उच्च कोटि के संगीतकार और कला पारखी थे। ऐसी रियासतों में पंचगछिया (जिला सुपौल-पहले सहरसा), चम्पानगर, बनैली, पूर्णिया, दरभंगा, हथुआ, टेकारी (गया), बेतिया (चम्पारण), जमीरा (आरा जिला) जमींदारियों में संगीत कला जैसी फूली-फली वह काबिल-ए-तारीफ है।
वे कहते बिहार के साथ ही पूरे देश में धु्रपद, ख्याल, टप्पा-ठुमरीं, मृदंग-पखावज, हारमोनियम, तबला, सारंगी, इसराज और सितार जैसे साजों के ऐसे प्रस्तोता हुए जिन्होंने हिन्दुस्तानी संगीत का इतिहास रचा। फिर वे कहते बिहार की माटी में ऐसी-ऐसी कलावंत तवायफें हुईं की उनकी साधना, गायन कौशल, खुद्दारी, रहन-सहन, शाइस्तगी, तहजीब, सारी चीजों ने संगीत का एक बड़ा फलक दे दिया।
लेकिन गजेंद्र बाबू अब नहीं हैं। सिर्फ उनकी बातें और चर्चा जिन्दा हैं और जिन्दा रहेंगी। शायद आगे आने वाले दिनों में पटना में जब संगीत की कोई महफिल सजेगी और उसमें गजेंद्र बाबू नहीं नजर आएंगे तो शायद उस वक्त उनका यूं चले जाना ज्यादा तकलीफ देगा। पर इस तकलीफ को सहना होगा क्योंकि यही हकीकत है कि गजेंद्र बाबू जा चुके हैं कभी न लौटकर आने के लिए।
राज्यपाल, मुख्यमंत्री ने गजेंद्र नारायण सिंह के निधन पर शोक व्यक्त किया
राज्यपाल सत्य पाल मलिक और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने प्रख्यात संगीतज्ञ एवं संगीत समीक्षक गजेंद्र नारायण सिंह के निधन पर शोक व्यक्त किया है।
राज्यपाल ने कहा शास्त्रीय संगीत में राष्ट्रीय स्तर पर बिहार का नाम रोशन करने वाले गजेंद्र नारायण सिंह के निधन से भारतीय संगीत को अपूरणीय क्षति हुई है। महफिलें, कालजयी सुर-पं. भीमसेन जोशी, स्वरगंधा जैसी पुस्तकें लिख गजेंद्र बाबू ने बिहार का गौरव बढ़ाया।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा पद्मश्री गजेंद्र नारायण बिहार संगीत नाटक अकादमी के अध्यक्ष रह चुके थे। कला के क्षेत्र में विशेष योगदान के लिए उन्हें 2007 में पद्मश्री से विभूषित किया गया था। उनके निधन से कला एवं संस्कृति के क्षेत्र में अपूरणीय क्षति हुई है। राज्यपाल व मुख्यमंत्री ने दिवंगत आत्मा की शांति और उनके शोक संतप्त परिजनों को धैर्य धारण की क्षमता प्रदान करने के लिए ईश्वर से प्रार्थना की है। 

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