Bihar Politics: मांझी-सहनी और ओवैसी का 'दुश्मन' कौन? सबसे ज्यादा परेशान करता है NOTA
बिहार विधानसभा चुनावों में नोटा का इस्तेमाल घटा है फिर भी कई पार्टियों से ज़्यादा वोट इसे मिले। 2020 में ये आंकड़ा 1.7% रहा। कुछ ही दल नोटा से ज़्यादा वोट पा सके। कई सीटों पर हार-जीत का अंतर नोटा के वोटों से कम रहा। नोटा का मतलब है इनमें से कोई नहीं जिसे 2015 में पहली बार बिहार चुनाव में इस्तेमाल किया गया था।

कुमार रजत, पटना। बिहार विधानसभा चुनाव में वोटरों का नोटा के प्रति झुकाव घटा है, फिर भी 96 प्रतिशत दलों से ज्यादा वोट नोटा को मिल रहे हैं। वर्ष 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में नोटा को 2.4 प्रतिशत वोट शेयर मिला था जो 2020 में घटकर 1.7 प्रतिशत रह गया।
दोनों चुनावों में महज सात से आठ राजनीतिक दल ही ऐसे रहे जो नोटा से अधिक वोट शेयर हासिल कर सके। नोटा ने करीब दो दर्जन नजदीकी अंतर वाली सीटों पर उम्मीदवारों का खेल भी बिगाड़ा। यहां जीत के अंतर से दोगुने-तिगुने वोट नोटा को मिले।
वर्ष 2020 के विधानसभा चुनाव में 211 दलों ने किस्मत आजमाई। इनमें महज आठ दलों को ही नोटा से अधिक मत प्राप्त हुए। इनमें राजद, भाजपा, जदयू, कांग्रेस, भाकपा-माले, लोजपा और रालोसपा जैसे दल शामिल रहे।
नोटा से भी कम वोट
वहीं जीतन राम मांझी की पार्टी हम (0.9), मुकेश सहनी की पार्टी वीआईपी (1.5), ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम (1.3) जैसे दलों के विधायक जरूर जीते मगर उन्हें नोटा से भी कम वोट मिले थे।
नोटा को पिछले चुनाव में कुल सात लाख छह हजार 252 यानी 1.7 प्रतिशत वोट मिला था। इसी तरह वर्ष 2015 के विधानसभा चुनाव में नोटा को कुल नौ लाख 47 हजार 276 वोट मिले थे। यह कुल वोट का 2.4 प्रतिशत था।
छह दलों को ही नोटा से अधिक वोट
इस साल 156 दलों ने चुनाव में अपनी किस्मत आजमाई, मगर महज छह दलों को ही नोटा से अधिक वोट मिल सके। इस साल भाकपा-माले (1.6), हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (2.3), बहुजन समाज पार्टी (2.1), भाकपा (1.4), जन अधिकार पार्टी (1.4), समाजवादी पार्टी (1.0), शिवसेना (0.6), राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (0.5), एआईएमआईएम (0.2) जैसे दलों को नोटा से भी कम वोट मिले थे।
30 सीटों पर नोटा से अधिक हार-जीत का अंतर
पिछले विधानसभा चुनाव में करीब 30 सीटें ऐसी थीं, जहां हार-जीत का अंतर नोटा को मिले मतों से कम था। वहीं 2015 के चुनावों में ऐसी सीटों की संख्या 21 रही थीं।
2020 के विधानसभा चुनाव में हिलसा, बछवाड़ा, बखरी, बरबीघा, भोरे, चकाई, डेहरी, कुढ़नी, मटिहानी, परबत्ता, रामगढ़, सकरा, मुंगेर, भागलपुर, झाझा, कल्याणपुर, महिषी, परिहार और राजापाकर ऐसी सीटें थीं जहां जीत का अंतर दो हजार से भी कम था मगर इन सभी सीटों पर नोट को इससे दोगुने-तिगुने तक वोट मिले थे।
नोटा का मतलब इनमें से कोई नहीं
सुप्रीट कोर्ट के आदेश के बाद 2013 में चुनाव आयोग ने आम जनता को नोटा का विकल्प दिया था। नोटा का अर्थ है कि इनमें से कोई नहीं’।
चुनाव में अगर आपको कोई भी उम्मीदवार पसंद नहीं है तो आप नोटा का बटन दबा सकते हैं। बिहार विधानसभा चुनाव में पहली बार 2015 में नोटा का विकल्प वोटरों को दिया गया था।
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