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    वक्त की करवट और राजनीति की धूल: नीतीन नवीन का सफर बताता है कि पटना की सड़कों से पोस्टर-बैनर तक कैसे बदलती है पहचान

    Updated: Tue, 23 Dec 2025 12:57 PM (IST)

    नीतीन नवीन का पटना की सड़कों से राजनीतिक पहचान तक का सफर एक बदलाव की कहानी है। कभी पटना की धूल में मेहनत करते नीतीन नवीन को कम लोग जानते थे, लेकिन आज ...और पढ़ें

    राधा कृष्ण, पटना। कहते हैं जब किसी की किस्मत बदलती है, तो सिर्फ हालात नहीं बदलते, नजरिया भी बदल जाता है। राजनीति में यह सच और भी गहराई से दिखाई देता है। पटना की सड़कों पर वर्षों तक सक्रिय रहे, आम लोगों के बीच उठते-बैठते रहे नीतीन नवीन का सफर इसी बदलाव की कहानी कहता है। एक समय था जब वही नीतीन नवीन पटना की राजनीतिक धूल में मेहनत करते दिखते थे, लेकिन उन्हें देखने वाली नजरें बहुत कम थीं। आज वही चेहरा पोस्टर-बैनरों पर है और उस पर जमी धूल तक चर्चा का विषय बन रही है।

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    नितिन नवीन का शान-ओ-शौकत से होगा स्वागत

    यह महज व्यक्ति विशेष की कहानी नहीं, बल्कि समय, सत्ता और समाज की सामूहिक मानसिकता का आईना है। राजनीति में लंबे समय तक काम करना, संगठन को मजबूत करना और जमीन से जुड़े रहना अक्सर सुर्खियों में नहीं आता। नीतीन नवीन जैसे नेता वर्षों तक कार्यकर्ताओं के बीच रहकर काम करते हैं, लेकिन जब तक पद, जिम्मेदारी या बड़ी पहचान नहीं मिलती, तब तक उनका संघर्ष सार्वजनिक विमर्श का हिस्सा नहीं बनता।

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    पोस्टर पर लगे धूल को पोछते आदमी

    पटना की धूल यहां सिर्फ भौगोलिक नहीं, प्रतीकात्मक भी है। यह उस संघर्ष, उपेक्षा और इंतजार की धूल है, जो हर उस व्यक्ति पर जमती है जो बिना शोर किए अपना काम करता रहता है। पहले जब नीतीन नवीन उसी धूल में नजर आते थे, तब वह आम बात थी। लेकिन आज जब वही धूल किसी पोस्टर या बैनर पर दिख जाए, तो वह खबर बन जाती है। यही फर्क है गुमनामी और पहचान के बीच।

    यह बदलाव यह भी बताता है कि हमारा समाज और राजनीति अक्सर सफलता के बाद ही किसी को गंभीरता से लेती है। पहले वही चेहरा अनदेखा रहता है, बाद में उसी चेहरे की तस्वीरें सजाई जाती हैं। यह सवाल भी खड़ा करता है कि क्या हम किसी व्यक्ति की काबिलियत को सिर्फ उसके ओहदे और चमक से ही आंकते हैं?

    नीतीन नवीन का उदाहरण उन हजारों कार्यकर्ताओं और नेताओं के लिए एक संकेत है, जो आज भी पटना की गलियों, चौक-चौराहों और बैठकों में मेहनत कर रहे हैं। समय सबका आता है, बस फर्क इतना है कि कोई उसे चुपचाप काटता है और कोई उसे पहचान के साथ जीता है।

    इस पूरे परिदृश्य का सार यही है कि वक्त सबसे बड़ा निर्णायक है। आज जो चेहरा धूल में है, वह कल बैनर पर भी हो सकता है। इसलिए इंतजार जरूरी है, धैर्य जरूरी है। क्योंकि राजनीति हो या जिंदगी, जब समय चमकता है, तो अंदर की मेहनत से लेकर बाहर की तस्वीर तक सब कुछ चमकने लगता है।