Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    जन सुराज प्रमुख उदय सिंह बोले-एनडीए की जीत खरीदी गई, लेकिन हमारा संघर्ष जारी रहेगा... राजद के डर ने वोट बदले

    By Vikash Chandra PandeyEdited By: Radha Krishna
    Updated: Sat, 15 Nov 2025 03:44 PM (IST)

    बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजों के दिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की चुप्पी चर्चा का विषय रही। वे न तो जनता के बीच आए, न मीडिया के सामने, जिससे कई सवाल उठे। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह एक सोची-समझी रणनीति हो सकती है, जबकि विपक्ष इसे असहजता का संकेत मान रहा है। उनकी चुप्पी ने राजनीतिक गलियारों में जिज्ञासा पैदा कर दी है।

    Hero Image

    बेली रोड स्थित शेखपुरा हाउस में महत्वपूर्ण प्रेस कांफ्रेंस की

    राज्य ब्यूरो, पटना। बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजों वाले दिन जहां पूरे राज्य में राजनीतिक दलों के दफ्तरों में हलचल थी, नेताओं की प्रेस कॉन्फ्रेंस हो रही थीं, वहीं मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का पूरा दिन सार्वजनिक तौर पर अदृश्य रहना राजनीतिक गलियारों में चर्चा का बड़ा विषय बन गया। न केवल वे जनता के बीच या मीडिया के सामने आए, बल्कि उनके आवास 1, अणे मार्ग से कोई आधिकारिक तस्वीर भी बाहर नहीं आई। मीडिया जगत इसे “असामान्य खामोशी” करार दे रहा है।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    बीते विधानसभा और लोकसभा चुनावों के दौरान ऐसा कम ही देखा गया है कि चुनाव परिणाम के दिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पूरी तरह ओझल रहे हों।

    भले वे बयान देने में सधे हुए और संयमित रहे हों, लेकिन वे आमतौर पर चुनाव नतीजों के दिन किसी न किसी रूप में सामने आते रहे हैं, चाहे वह पार्टी दफ्तर में उपस्थिति हो, मीडिया से संक्षिप्त बातचीत हो या फिर सहयोगी नेताओं से मुलाकात की तस्वीरें जारी करना।

    मगर इस बार न कोई बयान, न कोई संदेश, न कोई विजुअल। यह अभूतपूर्व चुप्पी कई सवाल खड़े कर रही है।

    राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि नीतीश कुमार का इस तरह पूरे दिन तक न दिखना एक सोची-समझी रणनीति का हिस्सा भी हो सकता है। 

    इस चुनाव में एनडीए को मिली जीत में जदयू के प्रदर्शन पर अलग-अलग तरह की व्याख्याएं सामने आ रही हैं। ऐसे में नीतीश कुमार संभवतः परिणामों पर प्रतिक्रिया देने से पहले हालात को समझना और आंतरिक समीक्षा करना चाहते हों।

    कुछ जानकार यह भी मानते हैं कि परिणामों के दिन नीतीश कुमार का चुप रहना, पार्टी की सीटों और गठबंधन में उनकी स्थिति को लेकर पैदा हुए सवालों से दूरी बनाने का तरीका हो सकता है।

    राजनीतिक रूप से यह संदेश भी गया कि वे इस बार “फ्रंट पेज विजिबिलिटी” से बचते दिखे, जो उनके लंबे राजनीतिक करियर के लिहाज से असामान्य है।

    दूसरी ओर, विपक्ष इस खामोशी को अपने हिसाब से पढ़ रहा है। कुछ नेताओं ने तंज कसा कि नीतीश कुमार जनता के जनादेश के बाद असहज थे, इसलिए सामने नहीं आए।

    वहीं एनडीए खेमे में भी यह सवाल उठा कि जब भाजपा और अन्य सहयोगी दल पूरे दिन सक्रिय रहे, तब मुख्यमंत्री आवास पर सन्नाटा क्यों छाया रहा।

    हालांकि जदयू की ओर से इसे लेकर कोई आधिकारिक स्पष्टीकरण सामने नहीं आया है। लेकिन यह तय है कि चुनाव परिणाम के दिन नीतीश कुमार की गैरमौजूदगी ने राजनीति में एक नए प्रकार की जिज्ञासा पैदा कर दी है।

    आने वाले दिनों में उनके बयान और गतिविधियाँ ही बताएंगी कि इस खामोशी का अर्थ क्या था, रणनीति, असहजता या फिर सिर्फ एक संयोग।