नीतीश कैबिनेट में जाति के हिसाब के हिस्सेदारी फिक्स! सवर्णों के साथ अति-पिछड़ा का बना 'कॉकटेल'
बिहार मंत्रिमंडल विस्तार में भाजपा ने सामाजिक समीकरणों का ऐसा ताना-बाना बुना है जिससे चुनावी जीत का मार्ग प्रशस्त हो सकता है। सवर्णों के साथ पिछड़ा व अति-पिछड़ा वर्ग के कॉकटेल पर आधारित यह रणनीति पार्टी को व्यापक समर्थन दिला सकती है। कुल जनसंख्या में इस वर्ग की हिस्सेदारी लगभग 79 प्रतिशत है जबकि 2020 के विधानसभा चुनाव में राजग को कुल 37.23 प्रतिशत मत मिले थे।
विकाश चन्द्र पाण्डेय, पटना। तीसरे विस्तार के बाद बिहार मंत्रिमंडल (Bihar Cabinet Expansion) ने अपना पूर्ण आकार ले लिया है। इस संरचना में क्षेत्रीय संभावना के साथ सामाजिक समीकरण का वह स्वरूप भी है, जिसके बूते राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA), विशेषकर भाजपा, द्वारा चुनावी जीत का ताना-बाना बुना जा रहा।
यह ताना-बाना सवर्णाें के साथ पिछड़ा व अति-पिछड़ा के कॉकटेल का है। कुल जनसंख्या में इस वर्ग की हिस्सेदारी लगभग 79 प्रतिशत है, जबकि 2020 के विधानसभा चुनाव में राजग को कुल 37.23 प्रतिशत मत मिले थे।
बहरहाल, तीसरे विस्तार में जिन सात विधायकों को मंत्री बनाया गया है, वे सभी भाजपा से ही हैं। विधानसभा में दलीय स्थिति के आधार पर मंत्रिमंडल में उसी के कोटे के पद भी रिक्त थे।
अब BJP के 21 मंत्री, JDU के पास सिर्फ 13
इस विस्तार के बाद नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले मंत्रिमंडल में भाजपा कोटे के मंत्रियों की संख्या 21 हो गई है। जदयू के 13 मंत्री हैं और हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा से एकमात्र संतोष कुमार सुमन। निर्दलीय सुमित कुमार भी सरकार में हैं, जिन्हें जदयू खेमे का ही माना जाता है। संतोष और सुमन तो नीतीश के नौवीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेते समय ही मंत्री बनाए गए थे।
वह तारीख 2024 की 28 जनवरी थी। महागठबंधन को छोड़कर नीतीश एक बार फिर राजग के साथ हुए थे। तब मुख्यमंत्री के अलावा कुल आठ मंत्रियों ने शपथ ली थी। भाजपा कोटे से दो उप मुख्यमंत्री (सम्राट चौधरी व विजय कुमार सिन्हा) सहित प्रेम कुमार को सामाजिक समीकरण के दृष्टिगत ही मंत्रिमंडल में स्थान मिला था।
हालांकि, तब क्षेत्रीय समीकरण नहीं सध पाया था। तीनों कमोबेश दक्षिण बिहार से आते हैं। जदयू से विजय कुमार चौधरी, बिजेंद्र यादव व श्रवण कुमार मंत्री बने थे। उनमें मुख्यमंत्री सहित श्रवण भी बिहार से थे। मंत्रिमंडल के दूसरे विस्तार ने इसकी भरपाई की। सभी क्षेत्रों को उचित प्रतिनिधित्व देने का प्रयास हुआ। हालांकि, उसके बाद मिथिला और सीमांचल को लेकर राजनीति सरगर्म हुई।
इस कारण तीसरे विस्तार में इन क्षेत्रों का महत्व बन आया और साथ में जातियों का कॉकटेल बनाने का प्रयास भी हुआ। पिछले चुनावों में इसी बूते राजग को सफलता मिलती रही है, जिसे भाजपा आगे कुछ व्यापक स्वरूप में दोहराना चाह रही। कुर्मी समाज के कृष्ण कुमार मंटू और कुशवाहा समाज के डॉ. सुनील कुमार को मंत्री बनाकर उसने इसका संदेश देने का प्रयास किया है।
जाति से जीत:
जाति आधारित गणना के अनुसार, बिहार में सर्वाधिक जनसंख्या (36.01) अति-पिछड़ा वर्ग की है। उसके बाद पिछड़ा वर्ग की हिस्सेदारी 27.12 प्रतिशत की है। सवर्ण 15.52 प्रतिशत हैं।
सम्मिलित रूप से जनसंख्या में यह हिस्सेदारी 78.62 प्रतिशत की है। इतने व्यापक सामाजिक समीकरण के आधार पर बनाई गई चुनावी रणनीति शायद ही विफल हो।
सात नए मंत्री:
अमनौर के विधायक कृष्ण कुमार मंटू कुर्मी समाज से हैं। सिकटी के विधायक विजय मंडल केवट और साहेबगंज के राजू सिंह राजपूत जाति से। दरभंगा से विधायक संजय सारावगी मारवाड़ी समाज से हैं।
जाले से विधायक जीवेश मिश्रा भूमिहार और बिहारशरीफ से विधायक सुनील कुमार कुशवाहा जाति से आते हैं। रीगा के विधायक मोती लाल प्रसाद तेली समाज से आते हैं।
243 सदस्यीय विधानसभा में दलीय स्थिति
- भाजपा : 80
- जदयू : 45
- हम : 04
- निर्दलीय : 02
- राजद : 77
- कांग्रेस : 19
- माले : 11
- भाकपा : 02
- माकपा : 02
- एमआईएमआईएम : 01
मंत्रियों की जातिगत संख्या अभी राजग सरकार में
- पिछड़ा वर्ग : 09
- अति-पिछड़ा : 08
- अनुसूचित जाति : 07
- सवर्ण : 11
- मुसलमान : 01
पिछली महागठबंधन सरकार में
- पिछड़ा व अति-पिछड़ा वर्ग : 17
- अनुसूचित जाति : 05
- सवर्ण : 06
- मुसलमान : 05
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