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    Politics: लालू-नीतीश की छत्रछाया में कांग्रेस का जनाधार बढ़ाएंगे मोहन प्रकाश! राहुल गांधी के विश्वास को कायम रखने की होगी चुनौती

    कांग्रेस आलाकमान भी इस बात को मानता है बिहार में पार्टी अभी घुटने के बल रेंग रही है। इसके कई कारण हैं लेकिन निराकरण सिर्फ एक है। निराकरण का यह फार्मूला परंपरागत जनाधार को बहाल करते हुए पार्टी के साथ दूसरी जाति-जमात को भी जोड़ने का है। हालांकि इसमें कई अड़चनें हैं जिसके निवारण का टास्क नवनियुक्त प्रदेश प्रभारी मोहन प्रकाश को मिला है।

    By Vikash Chandra Pandey Edited By: Mohit Tripathi Updated: Sun, 24 Dec 2023 06:48 PM (IST)
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    बिहार कांग्रेस प्रभारी व राहुल गांधी। (ट्वीटर फोटो)

    विकाश चन्द्र पाण्डेय, पटना। आलाकमान भी यह मानता है कि बिहार में कांग्रेस अभी घुटने के बल रेंग रही है। इसके कई कारण हैं और निराकरण मात्र एक है। निराकरण का यह फॉर्मूला परंपरागत जनाधार को बहाल करते हुए पार्टी के साथ दूसरी जाति-जमात को भी जोड़ने का है। हालांकि, इसमें कई अड़चनें हैं, जिसके निवारण का टास्क नव-नियुक्त प्रदेश प्रभारी मोहन प्रकाश को मिला है।

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    उनके समक्ष पहली चुनौती प्रदेश कांग्रेस समिति के गठन की है। इसमें नए-पुराने चेहरों के सामंजस्य के साथ सामाजिक समीकरण का भी ध्यान रखना है।

    दूसरी चुनौती, आईएनडीआईए में समझौते के समय अपेक्षित संख्या में पार्टी के अनुकूल लोकसभा सीटें पाने की है। इस क्रम में राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सहजता का ख्याल भी रखना होगा।

    लालू-नीतीश संग बनाएंगे सहज समन्वय

    समाजवादी पृष्ठभूमि के कारण लालू-नीतीश के साथ मोहन के लिए समन्वय सहज होगा। वे जार्ज फर्नांडिस के निकटस्थ रह चुके हैं और नीतीश से उनके संबंध मधुर हैं।

    2014 के अगस्त में पैर टूट जाने के कारण मोहन मुंबई के नानावती अस्पताल में भर्ती थे। तब वे महाराष्ट्र कांग्रेस के प्रभारी थे। वहां विधानसभा चुनाव हो रहा था। अस्पताल का उनका कमरा ही वॉर-रूम बन गया था। तब उनका कुशल-क्षेम जानने नीतीश भी पहुंचे थे।

    अंदरुनी सूत्र बता रहे कि मोहन के चयन की एक कसौटी यह भी रही। उनकी मध्यस्थता से आईएनडीआईए के लिए बिहार में संभवत: कोई अड़चन नहीं होगी। सीटों पर समझौते के लिए कांग्रेस द्वारा गठित पांच सदस्यीय राष्ट्रीय समिति में भी वे सम्मिलित हैं।

    राहुल गांधी के विश्वास पर उतरेंगे खरा

    राजद से कांग्रेस के गठबंधन का यह तीसरा दशक है। सार्वजनिक मंच से लालू यह बता चुके हैं कि उनकी पसंद पर ही डॉ. अखिलेश प्रसाद सिंह बिहार कांग्रेस के अध्यक्ष बनाए गए हैं। कांग्रेस की तत्कालिक रणनीति के लिए यह अंतर्संबंध मोहन के अनुकूल बताया जा रहा।

    इस साथ-संगत के सहारे वे प्रदेश कांग्रेस समिति का गठन भी सहजता से करा जाएंगे, क्योंकि आलाकमान, विशेषकर राहुल गांधी, का उन पर पूर्ण विश्वास है। पार्टी में नई और पुरानी पीढ़ी के विवाद में वे खुलकर राहुल के समर्थन में रहे हैं।

    बिहार में ऐसा कोई विवाद सतह पर नहीं, लेकिन अशोक चौधरी के अध्यक्षता-काल से चली आ रही अंदरखाने की खलबली आज भी यथावत है। ऐसे में सामंजस्य की अपेक्षा होगी।

    परंपरागत जनाधार स्थापित करने की चुनौती

    इसके अलावा उस परंपरागत जनाधार (सवर्ण-दलित व मुसलमान) को स्थापित करने की चुनौती भी है, जिसका एक वर्ग भाजपा के पाले में जा चुका है तो दूसरा सहयोगी दलों के साथ।

    भविष्य की राजनीति के हवाले से राहुल गांधी जब कभी पिछड़ा-अति पिछड़ा वर्ग की बात करते हैं, तो जिलों से लेकर प्रदेश नेतृत्व की पांत तक एक प्रश्न बिहार कांग्रेस के समक्ष भी खड़ा हो जाता है। बदले राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में मोहन को उसका भी उत्तर ढूंढना है।

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