हिदी साहित्य के मजबूत स्तंभ थे नलिन शर्मा
पटना। पटनासिटी के भद्रघाट पर 18 फरवरी 1916 को जन्मे आचार्य नलिन विलोचन शर्मा हिदी साहित्य के बड़े स्तंभ थे। ...और पढ़ें

पटना। पटनासिटी के भद्रघाट पर 18 फरवरी 1916 को जन्मे आचार्य नलिन विलोचन शर्मा हिदी साहित्य के मजबूत स्तंभ थे। वे दर्शन और संस्कृत के मनीषी पं. रामावतार शर्मा के ज्येष्ठ पुत्र थे। पटना विश्वविद्यालय में 1959 से 1961 तक हिदी विभाग में प्राध्यापक रहते हुए उन्होंने अपनी भूमिका निभाई।
पटना विवि के पूर्व प्राध्यापक व बिहार विधान परिषद के सदस्य प्रो. रामवचन राय के अनुसार, नलिन विलोचन शर्मा ने विवि परिसर में जुलाई 1961 में तुलसी जयंती के मौके पर भाषण दिया था। उसे सुनने के लिए छात्र-छात्राओं की भीड़ उमड़ी थी। नलिनजी भारतीय भाषा की 'साहित्य' पत्रिका में लिखा करते थे। उसी दौरान आंचलिक कथाकार फणीश्वर नाथ रेणु के ऐतिहासिक उपन्यास 'मैला आंचल' पर अपनी पत्रिका में पहली समीक्षा लिखी थी। उसके बाद हिदी जगत के लोगों का ध्यान मैला आंचल ने आकर्षित किया था। पटना विवि के हिदी विभागाध्यक्ष प्रो. तरुण कुमार कहते हैं, नलिनजी की समीक्षा के बाद रेणुजी की रचना 'मैला आंचल' को नए स्वरूप व संस्करण के साथ प्रकाशित किया गया था। वे रेणु की रचना 'मैला आंचल' से काफी प्रभावित थे। उन्होंने विश्व के 20 प्रसिद्ध उपन्यासों की सूची में 'मैला आंचल' को भी स्थान दिया था। प्रो. तरुण कुमार बताते हैं, उनका व्यक्तित्व लोगों को आकर्षित करता था। उनका शरीर तो मजबूत था ही, वे दिल और दिमाग से भी सशक्त थे। हिदी में सच्चिदानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय' के बाद प्रयोगवाद की चर्चा में नलिन विलोचन शर्मा भी थे।। उन्होंने कविता आंदोलन को खड़ा किया और बिहार हिदी साहित्य सम्मेलन को नई ऊर्जा दी। उन्होंने विवि के लिए समर्पित शिक्षक के रूप एक पहचान बनाई थी। वे 'साहित्य', 'दृष्टिकोण' और 'कविता' के संपादक भी रहे। राममनोहर लोहिया के विचारों को देते थे आदर :
नलिन विलोचन का संबंध डॉ. राम मनोहर लोहिया से भी रहा। प्रो. रामवचन राय कहते हैं, डॉ. लोहिया ने चित्रकूट में 'रामायण मेला' कराने को लेकर नलिनजी से राय ली थी। जिस पर उन्होंने कहा था कि इस प्रकार के मेले का आयोजन होने से समाज में जागृत पैदा होगी और लोगों के बीच मधुरता बनी रहेगी। नलिनजी का समाजवादी लोगों से हमेशा जुड़ाव रहा। नलिनजी ने बाबू जगजीवन राम पर अंग्रेजी में उनकी जीवनी लिखी थी। साथ ही बिहार के तत्कालीन राज्यपाल आरआर दिवाकर द्वारा लिखित 'बिहार थ्रू द एजेज' पुस्तक में साहित्य के बारे में नलिनजी ने अपनी बात रखी है। उनकी प्रमुख रचनाओं में विष के दांत, मानदंड आदि प्रमुख रही हैं।

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