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बिहार: यहां सूचना मांगने पर मिलती है मौत, 13 साल में 13 की हत्‍या

सूचना का अधिकार कानून लागू हुए 13 साल हुए हैं। इन तेरह सालों में 13 आरटीआइ कार्यकर्ता मौत के घाट उतारे जा चुके हैं।

By Ravi RanjanEdited By: Published: Fri, 06 Apr 2018 09:31 AM (IST)Updated: Fri, 06 Apr 2018 11:35 PM (IST)
बिहार: यहां सूचना मांगने पर मिलती है मौत, 13 साल में 13 की हत्‍या
बिहार: यहां सूचना मांगने पर मिलती है मौत, 13 साल में 13 की हत्‍या

पटना [राजीव रंजन]। वर्ष 2005 में जब देश में सूचना का अधिकार कानून लागू हुआ था, तब उम्मीद जगी थी कि भ्रष्टाचारियों के खिलाफ यह एक बड़ा हथियार होगा। लेकिन भ्रष्टाचार और अव्यवस्था के खिलाफ इस कानून का इस्तेमाल करने वाले आरटीआइ कार्यकर्ता ही निशाना बन गए। देश में सूचना का अधिकार कानून लागू हुए अभी 13 साल ही हुए हैं लेकिन बिहार में इस कानून के तहत अपने अधिकारों का इस्तेमाल करने वाले एक-दो नहीं बल्कि कुल 13 आरटीआइ कार्यकर्ता एक के बाद एक कर मौत के घाट उतार दिए गए।

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विगत बुधवार को वैशाली में भी एक आरटीआइ कार्यकर्ता की हत्या हो गई। जयंत कुमार नामक एक आरटीआइ कार्यकर्ता को हत्यारों ने गोरौल में गोलियों से भुनकर मौत के घाट उतार दिया। जयंत का कसूर बस यही था कि उसने गोरौल थाना के एक तत्कालीन थानाध्यक्ष के खिलाफ सूचना के अधिकार का इस्तेमाल किया था। बाद में उसे झूठे मुकदमें में फंसाकर जेल भी भेजा गया। जेल से जमानत पर छूटने के बाद भी उसने जब उक्त सूचना को लेकर अपने तेवर नहीं बदले तो उसे बीच बाजार में दिनदहाड़े मौत के घाट उतार दिया गया।

600 से भी अधिक आरटीआइ कार्यकर्ताओं पर दर्ज हैं झूठे केस

पिछले 13 वर्षों में बिहार में छह सौ भी अधिक आरटीआइ कार्यकर्ताओं को सूचना मांगने के एवज में न केवल झूठे मुकदमों में फंसाया गया बल्कि इनमें आधे से अधिक को जेल की हवा भी खानी पड़ी। यहां तक कि बिहार में इस कानून को भ्रष्टाचार के खिलाफ हथियार की तरह इस्तेमाल करने वाले नागरिक अधिकार मंच के संयोजक शिवप्रकाश राय को भी इसी तरह के एक झूठे मुकदमे में फंसा कर जेल भेज दिया गया।

गृह सचिव व डीजीपी की शिकायत सेल नहीं हुई कारगर

ऐसा नहीं है कि राज्य सरकार ने अपने नागरिकों को सूचना का अधिकार देने के साथ उनकी सुरक्षा की कभी परवाह नहीं की है। वर्ष 2010 में सरकार ने राज्य के गृह सचिव और पुलिस महानिदेशक की अगुवाई में एक सेल का गठन किया था। इस सेल को जिम्मेदारी दी गई थी कि वह आरटीआइ कार्यकर्ताओं के उत्पीडऩ से संबंधित शिकायतों पर तत्काल कार्रवाई करे। लेकिन यह सेल निष्क्रिय ही रहा। सबसे मजेदार बात तो यह है कि आरटीआइ कार्यकर्ता ने जब इस सेल में अपनी शिकायत दर्ज कराई तो उस शिकायत को उन्हीं पदाधिकारियों के पास जांच के नाम पर भेज दिया गया, जिनके खिलाफ आरटीआइ कार्यकर्ताओं ने शिकायत दर्ज कराई थी।

13 वर्षों में मौत के घाट के उतारे गए 13 आरटीआइ कार्यकर्ता

आरटीआइ कार्यकर्ता का नाम     हत्या की तिथि

1. गोपाल प्रसाद (बक्सर)             19-7-2010

2. शशिधर मिश्रा (बेगूसराय)          14-02-2010

3. रामविलास सिंह (लखीसराय)       8-12-2011

4. डॉ. मुरलीधर जायसवाल (मुंगेर)   04-03-2012

5. राहुल कुमार (कटिहार)             11--3-2012

6. राजेश यादव (गया)                 12-12-2012

7. रामकुमार ठाकुर (कटिहार)          23-03-2013

8. सुरेंद्र शर्मा (मसौढ़ी)                03-04-2015

9. गोपाल तिवारी (गोपालगंज)         2015

10. मृत्युंजय सिंह  (भोजपुर)           2017

11. शिवशंकर झा  (सहरसा)          2014

12. रमाकांत सिंह (रोहतास)           2016

13. जयंत कुमार (वैशाली)           04-04-2018


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