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    बिहार में मोबाइल की ब्लू लाइट चुरा रही नींद, कम उम्र में दे रही बुढ़ापे वाले रोग; हर महीने 300 पहुंच रहे अस्पताल

    राजधानी पटना से लेकर गांवों तक मोबाइल लैपटाप टीवी व नाइट शिफ्ट ने लोगों की नींद चुरा ली है। कम उम्र में ही मोटापा मधुमेह हृदय रोग बीपी शरीर में सूजन से लेकर अधिक उम्र में होने वाले डिमेंशिया याददाश्त की कमी अल्जाइमर व पार्किंसन जैसे रोगों का शिकंजा कसता जा रहा है।

    By Pawan Mishra Edited By: Akshay Pandey Updated: Fri, 04 Jul 2025 04:12 PM (IST)
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    मोबाइल की ब्लू लाइट नींद चुरा रही है। सांकेतिक तस्वीर।

    जागरण संवाददाता, पटना। नींद, आराम या आलस्य नहीं, बल्कि दिन भर की थकावट मिटा अगले दिन कार्य करने की शक्ति व शारीरिक-मानसिक व भावनात्मक स्वास्थ्य की आधार है। इसके विपरीत राजधानी पटना से लेकर गांवों तक मोबाइल, लैपटाप, टीवी व नाइट शिफ्ट ने लोगों की नींद चुरा ली है।

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    नतीजा कम उम्र में ही मोटापा, मधुमेह, हृदय रोग, बीपी, शरीर में सूजन से लेकर अधिक उम्र में होने वाले डिमेंशिया, याददाश्त की कमी, अल्जाइमर व पार्किंसन जैसे रोगों का शिकंजा कसता जा रहा है। एम्स पटना में 2023 में हुए शोध के अनुसार पटना शहरी क्षेत्र के 38 प्रतिशत लोग अपनी नींद की गुणवत्ता से असंतुष्ट थे। इसे देखते हुए यहां प्रदेश की पहली स्लीप लैब स्थापित की गई।

    वहीं आइटी, चिकित्सकीय सेवा, सुरक्षाकर्मियों या रात्रि शिफ्ट में काम करने वाले 60 प्रतिशत लोग स्लीप डिस्टर्बेंस से पीड़ित थे। इसके विपरीत बहुत कम लोग एम्स व आइजीआइएमएस में इलाज कराने पहुंच रहे हैं। दोनों संस्थानों में प्रतिमाह औसतन 250 से 300 मरीज अनिद्रा संबंधी रोगों के उपचार को पहुंच रहे हैं।

    एम्स पटना में फिजियोलाजी के विभागाध्यक्ष सह योगा व न्यूरोकाग्नेटिकव एंड स्लीप लैब की इंचार्ज डा. कमलेश झा के अनुसार नींद की सबसे बड़ी दुश्मन मोबाइल-लैपटाप, टीबी स्क्रीन की नीली रोशनी है। नीली रोशनी देरतक दिमाग को सक्रिय रहती है जबकि लाल-पीली रोशनी उसे आराम की मुद्रा में लाती है।

    प्रदेश में बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक रात 10 बजे के बाद मोबाइल पर सक्रियता बढ़ी है। वहीं स्कूलों में पढ़ने वाले 40 प्रतिशत किशोर रात 12 बजे या उसके बाद तक मोबाइल का प्रयोग करते हैं। इसका दुष्प्रभाव उनकी पढ़ाई, व्यवहार व शारीरिक विकास पर पड़ रहा है।

    विषाक्त तत्वों को बाहर निकाल मस्तिष्क शांत रखती नींद

    नींद, शरीर की जरूरत है, जिसे भागदौड़ व तनाव भरी आधुनिक जीवनशैली में आमजन आलस्य या विलासिता मानने लगे हैं। बच्चों, वयस्क व बुजुर्गों की उम्र के अनुसार नींद की मात्रा व गुणवत्ता तय है। डा. कमलेश झा ने बताया कि हर व्यक्ति के लिए प्रतिदिन 7 से 8 घंटे की गुणवत्तापूर्ण नींद लेना जरूरी है। यह विषाक्त तत्वों को बाहर निकाल मस्तिष्क का शांत रखती है बल्कि हृदय व रोग प्रतिरोधक क्षमता भी मजबूत होती है।

    लगातार छह घंटे से कम की नींद या आठ घंटे बिस्तर पर रहने पर भी अच्छी नींद नहीं आने से व्यक्ति थका-थका व चिड़चिड़ेपन के अलावा जीवनशैली संबंधी बीपी, मधुमेह, तनाव के अलावा याददाश्त की कमी, ध्यान केंद्रण में समस्या, निर्णय लेने व सीखने की क्षमता में कमी जैसे रोगों की चपेट में आ जाते हैं। दीर्घकाल में दिमाग में बीटा एमिलायड व टाउ जैसे हानिकारक प्रोटीन जमने से अल्जाइमर, पार्किंसन व डिमेंशिया जैसे रोग कम उम्र में हो जाते हैं।

    नीली रोशनी से रुक जाता नींद हार्माेन का स्राव

    मेलाटोनिन यानी नींद के हार्मोन का स्राव सामान्यत: रात के अंधेरे में अधिक होता है और सुबह का उजाला होते ही रुक जाता है। इसका स्राव पीनियल ग्रंथि जिसे आयुर्वेद व योग में थर्ड आइ या आज्ञा चक्र कहा जाता से होता है। यही पीनियल ग्रंथि सर्कैडियन रिद्म यानी शरीर की जैविक घड़ी को नियंत्रित करती है जो सोने-जागने के चक्र, पाचन, हार्मोन स्राव व शरीर के तापमान जैसे कार्यों के लिए जिम्मेदार है।

    मोबाइल, लैपटाप, टीवी या एलईडी लाइट्स से निकलने वाली नीली रोशनी की तरंगदैर्ध्य लगभग 450–490 नैनोमीटर होती है जो रेटिना में स्थित विशेष फोटोरिसेप्टर को सक्रिय करती है। ये कोशिकाएं सीधे हाइपोथैलेमस के सुप्राकायस्मैटिक न्यूक्लियस को संकेत भेजती हैं जो पीनियल ग्रंथि को मेलाटोनिन स्राव रोकने का आदेश देता है।

    इसके विपरीत प्राकृतिक लाल या हल्की पीली रोशनी जैसे सूर्योदय या सूर्यास्त के समय मेलाटोनिन स्राव को बाधित नहीं करती है। इसलिए रेड लाइट को स्लीप-फ्रेंडली माना जाता है जबकि ब्लू लाइट जैविक घड़ी को भ्रमित कर देती है। नतीजा, अनिद्रा, बार-बार नींद टूटना, हार्मोनल असंतुलन, मेटाबालिज्म गड़बड़ाने से वजन बढ़ना, मधुमेह होना, मूड स्विंग, चिड़चिड़ापन, अवसाद, इम्यून पावर में कमी, संक्रमण व सूजन का खतरा बढ़ जाता है।

    घंटे नहीं नींद के चारो चरण पूरे होना जरूरी 

    डा. कमलेश झा के अनुसार दो तरह के लाेग होते हैं, पहले जो एक बार सात-आठ घंटे में नींद पूरी कर लेते हैं, वहीं दूसरे खासकर बच्चे व बुजुर्ग टुकड़ों में नींद पूरी करते हैं। एकबार में अच्छी नींद सामान्यत: बेहतर मानी जाती है लेकिन टुकड़े में सोकर भी यदि व्यक्ति खुद को तरोताजा महसूस कर रहा है तो माना जाता है कि नींद पूरी हो रही है।

    एक्टीग्राफी जांच कर डाक्टर यह देखते हैं कि नींद पूरी हो रही है कि नहीं। एक अच्छी नींद के चार चरण होते हैं। हर चक्र में शरीर व मस्तिष्क अलग-अलग अवस्था से गुजरता है। सामान्यतः एक नींद चक्र 90 से 110 मिनट का होता है और एक रात में 4 से 6 बार दोहराया जाता है। अच्छी नींद के लिए चारो चरण जरूरी हैं, कोई भी चरण बाधित होने पर व्यक्ति अस्वस्थ महसूस करता है, भले ही आठ घंटे सोया हो।

    नींद के चरण

    • -एन-1 (हल्की नींद) : यह नींद की शुरुआत है। इसमें शरीर शिथिल होता है व मांसपेशियां ढीली पड़ने लगती हैं। इसमें व्यक्ति हल्की आवाज से जाग सकता है। यह चरण पांच से 10 मिनट का होता है।
    • - एन-2 (मध्यम गहरी नींद) :इसमें मस्तिष्क की तरंगें धीमी होने के साथ हृदयगति व शरीर का तापमान कम होता है। यह चरण कुल नींद का लगभग आधा होता है।
    • -एन-3 (गहरी नींद) : इसे स्लो वेव या या डेल्टा वेव नींद कहा जाता है। इसमें शरीर की मरम्मत, ऊतक निर्माण, इम्युनिटी व हार्मोन स्राव जैसे महत्वपूर्ण कार्य होते हैं। इस अवस्था में व्यक्ति को जगाना कठिन होता है।
    • - आरईएम यानी रैपिड आइ मूवमेंट नींद : इस चरण में व्यक्ति सपने देखता है। मस्तिष्क सक्रिय लेकिन शरीर स्थिर रहता है। इसमें याददाश्त, भावना संतुलन व मानसिक स्वास्थ्य में सहायक होता है। यह सबसे जरूरी चरण है।

    नींद पूरी होने की पहचान 

    नींद गुणवत्ता का मापदंड यह है कि व्यक्ति कितनी जल्दी सोता है, कितनी बार नींद टूटती है व नींद से उठने के बाद वह कैसा महसूस करता है।

    यदि सुबह उठने पर खुद को तरोताजा, ऊर्जावान व मानसिक रूप से बेहतर महसूस करते हैं तो आपकी नींद पूरी हो गई है, भले ही वह एक बार में हो या टुकड़ों में। यदि ऐसा नहीं है तो डाक्टर से परामर्श करना चाहिए लेकिन उसके लिए दवा के बजाय हल्के योग आजमाने चाहिए।

    दिन की नींद रात के बराबर की नहीं 

    नींद हार्मोन का स्राव केवल रात में होता है। ऐसे में दिन की नींद रात की बराबरी नहीं कर सकती लेकिन कुछ हद तक शरीर को आराम दे सकती है। जो लोग शिफ्ट वर्क में कार्य करने की वजह से रात में जागते हैं, उनमें अक्सर थकान, चिड़चिड़ापन, एकाग्रता में कमी से लेकर हृदयाघात तक का खतरा बढ़ जाता है। कारण शिफ्ट बदलने से शरीर की बायोलाजिकल क्लाक गड़बड़ा जाती है।

    रात में जागने वालों को चाहिए कि वे सोने के लिए अंधेरे, ठंडे व शांत कमरे का प्रयोग करें जहां बाहर का शोरगुल न पहुंचे। डा. कमलेश झा के अनुसार बच्चों के पाठ्यक्रम में अच्छी नींद के फायदे व स्लीप हाइजीन को शामिल किया जाना चाहिए।

    अच्छी नींद के लिए जरूरी नियम 

    बड़ी संख्या में लोग अनिद्रा, खर्राटे, बेचैनी या रात में बार-बार जागने की समस्या से जूझ रहे हैं। नींद के लिए सही दिनचर्या व आदतों से इसमें काफी हद तक राहत मिल सकती है। स्लीप हाइजीन के नियम अपनाने से अनिद्रा के मामलों में 60 प्रतिशत तक सुधार होता है। एम्स व निम्हांस जैसे संस्थानों के शोध में पाया गया कि योगनिद्रा व प्राणायाम का मेलाटोनिन स्राव पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

    - हर दिन नियत समय पर सोने व जागने से शरीर की जैविक घड़ी संतुलित रहती है।

    -सोने से दो घंटे पहले या रात नौ बजे के बाद मोबाइल-टीवी) से दूरी बना लें क्योंकि नीली रोशनी नींद हार्मोन का स्राव राेक, नींद आने में देरी का कारण बनती है।

    - नाइट मोड या ब्लू लाइट फिल्टर आन कर कमरे में रेड लाइट लैंप का प्रयोग करें।

    -रात में देर से भोजन, भारी भोजन या चाय-काफी, कोल्ड ड्रिंक जैसे कैफीन युक्त पेय नहीं लें।

    - कम रोशनी वाला शांत वातावरण वाले ठंडे कमरे में सोना नींद की गुणवत्ता बढ़ाता है।

    - बिस्तर का इस्तेमाल सिर्फ नींद व विश्राम के लिए करें, बिस्तर पर मोबाइल चलाने, टीवी देखने या खाने से मस्तिष्क भ्रमित होता है कि यह सोने की जगह है या नहीं।

    - सोने से पहले 15–20 मिनट हल्का योग-प्राणायाम करें, इससे मानसिक तनाव कम होगा व दिमाग नींद के लिए तैयार रहेगा।

    -स्क्रीन के बजाय किताब पढ़ें या ध्यान करें, इससे मन धीरे-धीरे शांत होता है और नींद अच्छी आती है।

    नींद पूरी नहीं होने पर हुए अध्ययनों का निष्कर्ष 

    • - 25 प्रतिशत तक बढ़ जाता टाइप-2 मधुमेह का खतरा 2022 में इंडियन स्लीप रिसर्च सोसाइटी की रिपोर्ट के अनुसार।
    • - 85 प्रतिशत तक मेलाटोनिन स्राव में कमी होती है 6.5 घंटे नीली रोशनी के संपर्क में रहने से, हार्वर्ड मेडिकल स्कूल का शोध।
    • -45 मिनट औसतन की देरी होती नींद आने में सोने से दो घंटे पहले मोबाइल स्क्रीन देखने से।
    • - 15 प्रतिशत संक्रमण की आशंका ज्यादा होती है अनिद्रा रोगियों को, एंटीबायोटिक की जरूरत 50 प्रतिशत अधिक।
    • - 26 प्रतिशत तक अधिक खतरा होता है हृदयाघात व ब्रेन स्ट्रोक, अस्थिर नींद चक्र यानी सोने-जागने का समय निश्चित नहीं होने पर।
    • - 24 प्रतिशत मृत्युदर 8 घंटे से कम समय तक सोने वालों की जबकि 9 घंटे से अधिक सोने वालों की मृत्युदर 17 प्रतिशत से अधिक।

    6 घंटे से कम व 9 घंटे से ज्यादा दोनों ही जोखिम भरी 

    6 घंटे से कम नींद लेना प्रतिरक्षा तंत्र को कमजोर करता है। इससे शरीर संक्रमण, वायरल व बैक्टीरियल रोगों की चपेट में जल्दी आता है। वहीं, 9 घंटे से अधिक नींद लेने से शरीर में सूजन व अन्य स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं।

    नींद शोध संस्थानों के अनुसार 7 से 8 घंटे की गुणवत्तापूर्ण नींद ही प्राकृतिक रक्षा तंत्र को ठीक से सक्रिय रखती है। 6 से कम या 9 घंटे से ज्यादा सोने पर फ्लू जैसे संक्रमणों का खतरा लगभग दोगुना हो जाता है। नींद की कमी या अधिकता से शरीर में साइटोकाइन्स नामक सूजन पैदा करने वाले प्रोटीन का स्तर असंतुलित होने से प्रतिरक्षा प्रणाली प्रभावित होती है।