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    'मिथिला डक' को मिली दुनिया में पहचान

    By JagranEdited By:
    Updated: Wed, 25 Dec 2019 06:07 AM (IST)

    उत्तरी बिहार के गांवों में पाई जाने वाली बत्तख की प्रजाति को दुनियाभर में मिथिला डक के रूप में नई पहचान मिली है।

    'मिथिला डक' को मिली दुनिया में पहचान

    पटना । उत्तरी बिहार के गांवों में पाई जाने वाली बत्तख की प्रजाति को दुनियाभर में 'मिथिला डक' के रूप में पहचान मिली है। इस पर पिछले तीन वर्षो से पटना स्थित भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आइसीएआर) के पूर्वी क्षेत्र के वैज्ञानिको की टीम काम कर रही थी।

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    आइसीएआर के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. अमिताभ डे ने बताया कि उत्तरी बिहार के अधिकांश गांवों में बत्तख की एक विशेष प्रजाति पाई जाती है। इस प्रजाति की अबतक पहचान नहीं हो पाई थी। इस क्षेत्र में पाई जाने वाली यह दुनिया की अनोखी बत्तख की प्रजाति है। यह बाकी प्रजातियों से कई मामलों में अलग है। यह बहुत कम लागत में पल जाती है।

    वैज्ञानिकों के अनुसार उत्तरी बिहार पानी बहुल इलाका होने के कारण, यहां पर काफी संख्या में तालाब, पोखर एवं अन्य जलाशय हैं। इस इलाके में नदियों का भी जाल है। ऐसे में यहा, खासकर मिथिला इलाके में काफी मछली पालन किया जाता है।

    : उत्तरी बिहार के 60 गांवों से लिए गए नमूने :

    आइसीएआर के वैज्ञानिकों के अनुसार 'मिथिला डक' के अनुसंधान के क्रम में पूर्णिया, अररिया एवं कटिहार सहित उत्तरी बिहार के विभिन्न जिले के 60 गांवों में पाली जाने वाली बतखों के 500 से अधिक नमूने लिए गए। उनमें 100 सर्वश्रेष्ठ नमूनों का चयन कर शोध शुरू हुआ। कई चरणों में अनुसंधान करने पर इस प्रजाति की पहचान की गई, बत्तख की अन्य प्रजातियों से इसे अलग पाया गया। स्थानीय स्तर पर इसकी श्रेणी की पहचान करने के बाद आइसीएआर की टीम ने नेशनल ब्यूरो ऑफ एनिमल जेनेटिक रिर्सोसेज को पत्र लिखा था। आइसीआइआर के पत्र पर नेशनल ब्यूरो की टीम ने इस प्रजाति का परीक्षण कर संतोष जाहिर किया है। : कम लागत में बेहतर उत्पादन :

    'मिथिला डक' प्रजाति की बत्तख की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह अत्यंत कम लागत में पाली जाती है। उत्तरी बिहार के तालाबों में पाली जाने वाली इस प्रजाति के लिए मत्स्य पालकों एवं किसानों को विशेष खर्च नहीं करना पड़ता है। यहां पर मछली पालन के साथ किसान बत्तख पालन भी कर लेते हैं। इससे मछली के उत्पादन में भी वृद्धि होती है।

    : कुपोषण दूर करने के साथ, आय का साधन भी :

    वैज्ञानिकों का कहना है कि इस प्रजाति की बत्तख में काफी मात्रा में प्रोटीन होता है। ग्रामीण इलाकों में किसान बत्तख पालकर कुपोषण की समस्या दूर कर सकते हैं। इसके अलावा इसको बेचकर वे बेहतर आय भी कमा सकते हैं। मिथिला डक का पालन युवा किसान बेहतर व्यावसायिक के रूप से कर सकते हैं। इससे इस इलाके में रोजगार के अवसर भी विकसित होंगे।