दुष्कर्म की सजा-लालू ने 23 साल पहले राजबल्लभ को रोकने की कोशिश की थी
राजद सुप्रीमो लालू यादव ने नाबालिग से दुष्कर्म के आरोप में आजीवन कारावास की सजा पाने वाले राजवल्लभ यादव को आज से 23 साल पहले विधानसभा जाने से रोकने की ...और पढ़ें

पटना, राज्य ब्यूरो। रेप के आरोप में सजा पाने के चलते राजद विधायक राजबल्लभ यादव चुनाव नहीं लड़ पाएंगे। कानूनी प्रक्रिया पूरी होने के बाद विधानसभा की सदस्यता भी रद हो जाएगी। यह अदालत की पहल पर होगा। लेकिन, राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद ने अपनी ओर से राजबल्लभ यादव को विधानसभा में जाने से रोकने की कोशिश आज से 23 साल पहले की थी। वे कामयाब नहीं हो पाए। बाद के दिनों में तो यह दागी विधायक राजद का प्यारा बन गया।
कहानी दिलचस्प है। राजबल्लभ के बड़े भाई थे कृष्णा प्रसाद यादव। वह भाजपा के संगठन में पदधारक थे। उसी के टिकट पर 1990 में नवादा से विधायक बने। साल भर बाद भाजपा में विभाजन हो गया। उसके 39 में से 13 विधायक संपूर्ण क्रांति दल बनाकर तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद के समर्थन में खड़े हो गए। बारी-बारी से ये विधायक जनता दल के अंग बन गए।
1994 में एक सड़क हादसे में कृष्णा यादव की मौत हो गई। अगले साल विधानसभा का आम चुनाव हुआ। छोटे भाई के नाते राजबल्लभ यादव जनता दल के टिकट के दावेदार थे। उन्हें उम्मीदवार बनाने का मन लालू ने भी बना लिया था। उसी समय उन्हें जानकारी मिली कि राजबल्लभ पर एक महिला ने दुष्कर्म का आरोप लगाया है।
लालू सतर्क हो गए। अंतिम समय में राजबल्लभ के बदले चंद्रभूषण यादव को जनता दल का उम्मीदवार बनाया गया। राजबल्लभ निर्दलीय चुनाव लड़े। जीत भी गए। जनता दल के आधिकारिक उम्मीदवार तीसरे नम्बर पर चले गए। चुनाव प्रचार में राजबल्लभ के समर्थकों ने उनकी रूचि का पूरा ख्याल रखा था। चुनाव निशान छाता था। समर्थक प्रचार में कहते थे-मेरी छतरी के नीचे आ जा....। जनता छतरी के नीचे आ गई और वह खुद लालू प्रसाद की छत्रछाया में आ गए।
पांच साल लालू के संरक्षण में गुजारने के बाद 2000 के विधानसभा में राजबल्लभ राजद के अधिकृत उम्मीदवार बने। जीत गए। श्रम राज्य मंत्री भी बने। लेकिन, 2005 और 2010 के विधानसभा चुनाव में जनता ने उन्हें नवादा में ही रोके रखा। 2015 में महागठबंधन की गोलबंदी से जीत हासिल हुई। रेप के आरोप में जेल गए तो उम्र भर की सजा मिल गई।
नवादा के लोग कहते हैं कि चुनावी राजनीति में आने से पहले भी राजबल्लभ की छवि रंगीन मिजाज की ही थी। सत्ता के संरक्षण में कारोबार बेशुमार बढ़ा तो कई और दुर्गुण आ गए। अपसढ़ नरसंहार 2001 में हुआ था। राजबल्लभ को अभियुक्त बनाया गया था। पुलिस जांच में बेदाग निकल गए। हत्या के एक अन्य मामले में भी नाम आया था। इसमें कुछ हुआ नहीं। राजबल्लभ ने अपने राजनीतिक प्रभाव का पूरा इस्तेमाल किया।
खनिज में दिलचस्पी दिखाई तो ठेका और कंस्ट्रक्शन के क्षेत्र में भी अच्छी कमाई की। अपने पिता जेहल प्रसाद यादव को जिला परिषद का अध्यक्ष भी बनवा दिया। यह देखना दिलचस्प होगा कि नवादा विधानसभा के उप चुनाव में राजद राजबल्लभ का उत्तराधिकारी किसे बनाता है?

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