निगम की बैठकों में MP-MLA और मंत्रियों के प्रतिनिधि भी ले सकेंगे भाग, बिहार कैबिनेट ने लगाई मुहर
बिहार में अब नगर निकाय की बैठकों में मंत्री अपने प्रतिनिधि भेज सकेंगे बशर्ते वे उनके करीबी रिश्तेदार न हों। बिहार नगरपालिका अधिनियम 2007 में संशोधन किया गया है जिसके तहत सशक्त स्थायी समिति के सदस्यों का चयन गुप्त मतदान से होगा जिसका पर्यवेक्षण जिला पदाधिकारी करेंगे। जिवेश कुमार ने बताया कि इससे पारदर्शिता आएगी और योजनाओं में तेजी आएगी। Patna City news में यह बदलाव अहम है।

राज्य ब्यूरो, पटना। अब नगर निकायों की बैठक में केंद्रीय मंत्री, राज्य सरकार के कैबिनेट मंत्री, सांसद, विधायक और विधानपार्षद अपने प्रतिनिधि भेज सकेंगे मगर शर्त यह होगी कि वह उनका निकट संबंधी न हो।
अपनी व्यस्तता की स्थिति में मंत्री, सांसद या विधायक प्रतिनिधि के रूप में ऐसे व्यक्ति के मनोनयन की छूट होगी। यह प्रतिनिधि बैठक में हिस्सा लेगा लेकिन इसे मतदान में हिस्सा लेने का अधिकार नहीं होगा।
इसके अलावा लोकसभा/राज्यसभा/विधानसभा/विधान परिषद् के वैसे सदस्यों को अब सत्रावधि के दौरान नगरपालिका की बैठक में भाग लेने की छूट प्राप्त होगी, जो नगरपालिका क्षेत्र के स्थानीय निकाय निर्वाचन क्षेत्र से चुने गए हों और उन्हें नगरपालिका का सदस्य माना गया है।
बिहार नगरपालिका अधिनियम, 2007 (बिहार नगरपालिका (संशोधन) अधिनियम, 2024) में संशोधन में यह प्रविधान किए गए हैं। मंगलवार को ही राज्य कैबिनेट से इसकी स्वीकृति मिली है।
इसके अलावा एक और अहम बदलाव धारा-21 की उपधारा (3) में भी किया गया है। इसके तहत नगर निकाय के सशक्त स्थायी समिति के सदस्यों का चयन संबंधित पार्षदों के गुप्त मतदान के द्वारा बहुमत के आधार पर किया जाएगा।
जिला पदाधिकारी के नियंत्रण में होगा चुनाव
यह चुनाव जिला पदाधिकारी के पर्यवेक्षण, निर्देशन एवं नियंत्रण में किया जाएगा। इस अध्यादेश के प्रवृत्त होने के बाद, अधिकतम छह माह की अवधि के भीतर सशक्त स्थायी समिति के गठन का निर्वाचन कराया जाएगा।
यदि सशक्त स्थायी समिति के सदस्यों के पद में कोई आकस्मिक रिक्ति होती है तो फिर से चुनाव के जरिए चयन किया जाएगा। ऐसा पार्षद अपने पूर्वाधिकारी के बचे हुए कार्यकाल तक पद धारण करेगा।
नगर विकास एवं आवास विभाग के मंत्री जिवेश कुमार ने कहा कि सशक्त स्थायी समिति की चयन प्रक्रिया के लोकतांत्रिक होने से नगरपालिका के काम में पारदर्शिता आएगी और योजनाओं का कार्यान्वयन तेज गति से होगा।
पार्षदों की लंबे समय से मांग थी कि स्थायी समिति के सदस्यों को चुनने का अधिकार मनोनयन न होकर निर्वाचन हो। अब सदस्यों का चयन जिला अधिकारी के मार्गदर्शन में होगा।
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