पटना राउंडटेबल कॉन्फ्रेंसः सरकार बदले तो बदले, शिक्षा नीति, सिलेबस और पैटर्न न बदले
एएन कॉलेज के प्रोफेसर कलानाथ मिश्र ने कहा कि सामान्य ज्ञान और भाषा त्रुटि हमारी कार्यक्षमता का जायका बिगाड़ रही है।
दैनिक जागरण के माय सिटी माय प्राइड महाअभियान के तहत शिक्षा पर आयोजित राउंडटेबल कॉन्फ्रेंस में वक्ताओं ने कहा कि सरकार के साथ-साथ शिक्षा नीति, सिलेबस और पैटर्न भी नहीं बदल जाना चाहिए। संबंधित सभी पक्षों से बातचीत के बाद ही शिक्षा नीति को मूर्तरूप देना चाहिए। किसी खास वर्ग और क्षेत्र को लाभ पहुंचाने की दृष्टि से किसी तरह की नीति नहीं बननी चाहिए। सबकी भागीदारी और भविष्य की आवश्यकताओं पर केंद्रित हो।
बिहार विद्यालय परीक्षा समिति के अध्यक्ष आनंद किशोर ने कहा कि शिक्षा में तेजी से बदलाव के लिए तकनीक का सहारा लेना जरूरी है। शुरुआती समय में थोड़ी परेशानी होती है। कंप्यूटराइजेशन के युग में हम पीछे नहीं जा सकते हैं। अगली पीढ़ी डिजिटल है। मोबाइल का उपयोग पांच-छह साल के बच्चे कर रहे हैं।
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उन्होंने कहा कि ग्रामीण क्षेत्र में भी अब स्मार्टफोन के माध्यम से लोग इंटरनेट फ्रेंडली हो रहे हैं। ऑनलाइन प्रक्रिया से जुड़ने में एक-दो बार ही परेशानी होती है। इसके बाद पूरा सिस्टम सहज हो जाता है। बिहार बोर्ड ने सभी कार्य ऑनलाइन कर दिए हैं। इसका लाभ ग्रामीण क्षेत्र के बच्चों को मिल रहा है। ओएफएसएस के पहले कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था कि घर बैठे मोबाइल से एक साथ 20 कॉलेजों में नामांकन कर सकते हैं। स्मार्ट क्लास के माध्यम से एक शिक्षक एक बार में सैकड़ों-हजारों स्कलों में पढ़ा सकते हैं।
आनंद के मुताबिक वह दिन दूर नहीं जब बेंगलुरु में बैठे शिक्षक पटना के विद्यार्थी को ऑनलाइन गाइड करेंगे। जानकारी समुचित नहीं होने के कारण थोड़ी परेशानी हो रही है। मानवीय चूक हो सकती है, लेकिन सॉफ्टवेयर गलती नहीं कर सकता है।
समाज को लेनी होगी अपनी जवाबदेही
पूर्व डीपीजी सह अभयानंद सुपर-30 के एकेडमिक मेंटर अभयानंद का कहना था कि शिक्षा में सुधार के लिए सरकार से ज्यादा समाज को जवाबदेह होना होगा। सरकार नीति बना सकती है, समय-समय पर कार्रवाई कर सकती है, लेकिन अच्छे और बुरे की पहचान समाज को ही करनी होगी। गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों को शिक्षकों का साथ देना होगा। हमें यह भी विचार करना चाहिए कि वर्तमान पीढ़ी से पहले शिक्षकों और विद्यार्थियों का संबंध कैसा था।
उन्होंने कहा कि आज इसमें गिरावट क्यों आई है। बच्चों को उसकी रुचि वाले क्षेत्रों में भेजने की पूरी व्यवस्था होनी चाहिए। एसोचैम, फिक्की आदि की रिपोर्ट बताती है कि बहुराष्ट्रीय कंपनियों को केवल आइआइटी और आइआइएम की पढ़ाई वाले छात्र ही नहीं चाहिए। उन्हें इसके अतिरिक्त भी चाहिए। कंपनी की डिमांड के अनुसार कोर्स फ्रेम करने पर रोजगार कैंपस से निकलते ही हाथ में होगा। तकनीक का बड़े स्तर पर सहयोग लेना होगा।
भाषा की त्रुटि बिगाड़ रही जायका
एएन कॉलेज के प्रोफेसर कलानाथ मिश्र ने कहा कि सामान्य ज्ञान और भाषा त्रुटि हमारी कार्यक्षमता का जायका बिगाड़ रही है। स्नातक करने के बाद भी एक लेटर और परिचय लिखने में विद्यार्थियों के पसीने छूटने लगते हैं। इसके अभाव में अभिव्यक्ति, मौलिक चिंतन की क्षमता नहीं आ रही है। युवा कॉलेज से नौकरी के लिए संस्थानों में जाते हैं और मौलिक जानकारी नहीं होने के कारण उन्हें निराशा हाथ लग रही है।
मिश्र ने कहा कि सभी की शिकायत रहती है कि काम के अनुरूप दक्ष युवा नहीं मिल पा रहे हैं। हम बाजार परक शिक्षा की ओर जरूर बढ़ें, लेकिन मूल्य आधारित शिक्षा को दरकिनार कर नहीं। प्रारंभिक दिनों में ही बच्चों को मूलभूत जानकारी हमें उपलब्ध करानी होगी। शिक्षा की व्यवस्था नहीं सुधरी तो अन्य सभी संसाधन बेकार साबित होंगे। परिवार से ही बच्चों को अनुशासन की पहली सीख मिलती है। यदि हम उन्हें परीक्षा में चोरी करने को कहेंगे तो अन्य स्थानों पर उसे चोरी करने से कैसे रोक सकते हैं।
शिक्षकों के नियमित प्रशिक्षण से बढ़ेगी गुणवत्ता
बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ सह एमएलसी और अध्यक्ष केदारनाथ पांडेय ने कहा कि वर्तमान में 80 फीसद विद्यार्थी सरकारी और शेष 20 फीसद ही निजी शिक्षण संस्थानों में पढ़ाई करते हैं। शिक्षा की बेहतरी की सोसाइटी से ज्यादा सरकार की जिम्मेदारी है। जीडीपी का छह फीसद खर्च करने की सिफारिश आज भी धूल फांक रही है। इसका सबसे ज्यादा खामियाजा गरीब और ग्रामीण क्षेत्र के बच्चों को उठना पड़ रहा है। बीएड कर नौकरी कर लेने के बाद सरकार और व्यवस्था शिक्षकों के प्रशिक्षण की जरूरत नहीं समझती है, जबकि हर दिन बदलाव हो रहे हैं। इससे शिक्षकों को रूबरू कराने के लिए नियमित प्रशिक्षण की व्यवस्था होनी चाहिए। प्रशिक्षण केवल खानापूर्ति भर होगा तो स्थिति में सुधार संभव नहीं है।
उन्होंने कहा कि शिक्षकों को दोयम समझने की प्रवृत्ति भी तेजी से बढ़ रही है। इससे बेहतर काम करने वाले शिक्षकों के मनोबल पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। आज भी आइएएस, आइआइटी, मेडिकल में सरकारी स्कूल के बच्चे सफलता अर्जित करते हैं। ऐसी बात भी नहीं है कि वहां गुणवत्तापूर्ण शिक्षा नहीं दी जा रही है। सरकारी स्कूलों को खत्म कर निजी को प्रोत्साहित करने का फैशन चल पड़ा है, जबकि निजी स्कूलों की गुणवत्ता परीक्षा में प्राप्त अंक से आंकी जा रही है। शिक्षा की बेहतरी के लिए एक समान स्कूल पद्धति सबसे बेहतर है।
शिक्षा में बढ़ानी होगी निजी क्षेत्र की भागीदारी
पटना विश्वविद्यालय डीएसडब्ल्यू के प्रो एनके झा ने कहा कि शिक्षा में गुणवत्ता के लिए निजी क्षेत्र को भी बढ़ावा देना होगा। यदि हम बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने में समर्थ नहीं होते हैं तो पलायन नहीं रुकेगा। सरकार के पास शिक्षा में निवेश के लिए प्रारंभ से ही पर्याप्त बजट का अभाव रहा है। निजी क्षेत्र की भागीदारी बढऩे से हमारे पास विकल्प अधिक होंगे। सरकार संख्या के बजाए गुणवत्ता पर ध्यान देगी। इसके लिए हमें अपने माइंड सेट को भी बदलना होगा।
झा के मुताबिक पारंपरिक के साथ-साथ स्किल आधारित शिक्षा को प्रमोट करना होगा। मूल्यपरक शिक्षा के ही अभाव में सोसाइटी जातिवाद, क्षेत्रवाद, प्रांतवाद, धर्मवाद आदि के चंगुल से बाहर नहीं निकल पा रहा है। पढ़े-लिखे भी यदि सोसाइटी की बेहतरी के लिए विचार नहीं कर पा रहे हैं तो शिक्षा व्यवस्था पर चिंतन अनिवार्य प्रतीत होता है। सरकार को भी जमीन हकीकत जानकर निर्णय लेने होंगे। अभी सेमेस्टर सिस्टम शिक्षक और छात्र ठीक से समझे भी नहीं कि च्वाइस बेस्ड क्रेडिट सिस्टम हाजिर है।
बगैर शिक्षक कैसे लौटेगी शिक्षण संस्थानों में गुणवत्ता
पटना विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. एलएन राम ने कहा कि शिक्षण संस्थानों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा में आज सबसे बड़ा रोड़ा शिक्षकों की कमी है। सूबे के सबसे प्रतिष्ठित पटना विश्वविद्यालय में कई विभाग हैं, जहां एक या दो शिक्षक बचे हैं। ऐसी स्थिति में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के बजाय नामांकन, फॉर्म, परीक्षा और रिजल्ट पर ज्यादा ध्यान देना लाजिमी है। 1997 के बाद 2003 और उसके बाद 2018 में शिक्षक बहाल किए जा रहे हैं। जब बहाली में इतने वर्षों का अंतर होगा तो कौन कॉलेज में शिक्षक बनना चाहेगा।
उन्होंने कहा कि स्कूल और कॉलेजों में योग्य शिक्षक पर्याप्त संख्या में होंगे तो कमोबेश गुणवत्ता लौट आएगी। निजी और सरकारी दोनों संस्थानों में गुणवत्ता कमोबेश एक जैसी ही है। गुणवत्ता नहीं रहने पर छात्र शिक्षकों को भूलते चले जाते हैं। हम अपने स्कूल और कॉलेज के उन्हीं शिक्षकों को याद रखते हैं जो हमें बेहतर तरीके पढ़ाने में सफल हुए थे। कॉलेजों में सीटें बढ़ीं, लेकिन शिक्षकों की कमी भी। नीति बनाने से पहले शिक्षा और उससे संबंधित क्षेत्र से जुड़े लोगों की राय काफी महत्वपूर्ण होती है।
युवा की आवश्यकता के अनुरूप बनाए जाएं कोर्स
कॉलेज ऑफ कॉमर्स ऑर्ट्स एंड साइंस के प्राचार्य प्रो. तपन कुमार शांडिल्य का कहना था कि वर्तमान शिक्षा व्यवस्था में खामी के कारण ही युवाओं को रोजगार प्राप्त करने में परेशानी हो रही है। मूल्य आधारित शिक्षा के साथ-साथ स्किल को भी बढ़ावा देना अनिवार्य है। पुरानी शिक्षा व्यवस्था विद्यार्थियों की सीमित संख्या के कारण बेहतर प्रतीत होती थी। आज जितने छात्र पढ़ाई के लिए पहुंच रहे हैं, उन्हें गुणवत्तापूर्ण और रोजगार परक शिक्षा बगैर तकनीक का उपयोग किए बिना संभव नहीं है। प्राथमिक, माध्यमिक, उच्च माध्यमिक, कॉलेज और विश्वविद्यालय स्तर के विद्यार्थियों के लिए अलग-अलग काउंसलिंग की व्यवस्था होनी चाहिए। इससे छात्रों को अपने भविष्य को संवारने में सहूलियत होगी। उन्हें भविष्य की आवश्यकताओं से भी रूबरू कराने में हम सफल होंगे।
एनएसएस और एनसीसी शहर को गांव से जोड़ेगा
एएन कॉलेज के डॉ. रत्ना अमृत पटना में रहने वाली एक बड़ी आबादी गांव और झुग्गी से अनभिज्ञ है। इन घरों के बच्चों को गांव और स्लम से जोड़ने का सबसे बेहतर माध्यम राष्ट्रीय सेवा योजना (एनएसएस) तथा एनसीसी है। इन दोनों के माध्यम से शहरी बच्चे ग्रामीण क्षेत्रों में कैंप लगाकर उनके जीवन शैली और दुश्वारियों को समझ सकते हैं।
उन्होंने कहा कि शहरीकरण के दौर में एनएसएस और एनसीसी की जिम्मेवारी और बढ़ेगी। कॉलेज और विश्वविद्यालय के बच्चे गांव और बच्चों को गोद लेकर उनके जीवन में बदलाव ला सकते हैं। इसके साथ शिक्षण संस्थानों में छात्राओं के लिए सुविधाएं बढ़ानी होगी। यदि हम छात्र-छात्रों को पांच-छह घंटे कैंपस में रोककर रखना चाहते हैं तो उनके लिए कैंटीन, शौचालय, कॉमन रूम आदि की व्यवस्था करनी होगी।
तकनीक से सुधरेगी परीक्षा व्यवस्था
कॉलेज ऑफ कॉमर्स, ऑर्ट्स एंड साइंस के प्रो. अनिल कुमार सिंह ने कहा कि बच्चों की संख्या को देखते हुए अब ऑफलाइन परीक्षा व्यवस्था परेशानी उत्पन्न कर रही है। इससे निजात के लिए हमें प्रारंभिक परेशानियों को झेलते हुए ऑनलाइन की ओर पलायन करना होगा। बगैर इसके काम नहीं चलेगी। कंप्यूटराइजेशन से कार्यक्षमता में कई गुना की वृद्धि हो जाती है। राष्ट्रीय स्तर की अधिसंख्य प्रतियोगी परीक्षाएं अब ऑनलाइन हो रही है। इसके लिए हमें वर्तमान पीढ़ी के लिए विशेष तैयारी करनी होगी। ऐसा नहीं करने पर हम पीछे छूट जाएंगे।
कार्यक्रम में बिहार विद्यालय परीक्षा समिति के अध्यक्ष आनंद किशोर, पूर्व डीजीपी सह अभयानंद सुपर-30 के एकेडमिक मेंटर अभयानंद, बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ के अध्यक्ष सह एमएलसी केदारनाथ पांडेय, पटना विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. एलएन राम, पटना विश्वविद्यालय के डीएसडब्ल्यू प्रो. एनके झा, कॉलेज ऑफ कॉमर्स के प्राचार्य प्रो. तपन कुमार शांडिल्य, प्रो. अनिल कुमार सिंह, एएन कॉलेज के प्रो. कलानाथ मिश्रा, डॉ. रत्ना अमृत ने विभिन्न स्तर पर राजधानी की शिक्षा-व्यवस्था दुरुस्त करने के लिए अहम सुझाव दिए।
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