NDA की आंधी में महिषी का चमत्कार, पूर्व बीडीओ डॉ. गौतम कृष्णा ने कैसे जीती जंग?
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में एनडीए की प्रचंड लहर के बावजूद, आरजेडी के डॉ. गौतम कृष्णा ने महिषी विधानसभा सीट पर जीत हासिल की। पूर्व बीडीओ डॉ. गौतम ने एनडीए के उम्मीदवार को हराया। उन्होंने स्थानीय मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया और जनता के बीच अपनी सादगी से लोकप्रियता हासिल की। उनकी जीत बिहार की राजनीति में एक नई उम्मीद की किरण है।

तेजस्वी यादव के साथ डॉ. गौतम कृष्णा। फोटो- फेसबुक
डिजिटल डेस्क, पटना। बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) की सुनामी ने पूरे राज्य को झकझोर दिया। एनडीए ने 243 सीटों में से 202 पर कब्जा जमाया, जहां भाजपा ने 89, जद(यू) ने 85 और उनके सहयोगियों ने बाकी सीटें जीतीं। महागठबंधन बुरी तरह बिखर गया, लेकिन इस तूफान के बीच सहरसा जिले की महिषी विधानसभा सीट पर एक चमत्कार हुआ।
यहां राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के उम्मीदवार और पूर्व ब्लॉक डेवलपमेंट ऑफिसर (बीडीओ) डॉ. गौतम कृष्णा ने एनडीए के दिग्गज को धूल चटा दी। यह जीत न केवल राजनीतिक उलटफेर है, बल्कि एक साधारण आदमी की जिद और जनता के विश्वास की मिसाल है।
एनडीए की आंधी में महिषी की चुनौती
2025 के चुनाव में एनडीए ने ऐतिहासिक जीत दर्ज की। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की जद(यू) और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भाजपा ने विकास, कानून-व्यवस्था और सामाजिक न्याय के नारे पर जनता को लुभाया। महागठबंधन, जिसमें आरजेडी, कांग्रेस और अन्य दल शामिल थे, मात्र 30-40 सीटों पर सिमट गया, लेकिन महिषी में कहानी अलग थी। यहां 2020 में जद(यू) के गुंजेश्वर साह ने डॉ. गौतम को महज 1,630 वोटों से हराया था।
इस बार एनडीए की लहर में गुंजेश्वर साह फिर मैदान में थे, लेकिन डॉ. गौतम ने उन्हें 3,740 वोटों के अंतर से परास्त कर दिया। डॉ. गौतम को 93,752 वोट मिले, जबकि गुंजेश्वर साह को 90,012 वोटों पर संतोष करना पड़ा। अन्य उम्मीदवारों में सुरज सम्राट (इंडिपेंडेंट) को 3,142 और शामिम अख्तर (जन सुराज पार्टी) को 2,571 वोट मिले, लेकिन मुख्य मुकाबला आरजेडी बनाम जद(यू) का रहा।
बाढ़ की गोद से राजनीति की ऊंचाइयों तक
डॉ. गौतम कृष्णा का जन्म सहरसा के बाढ़-प्रभावित महिषी इलाके में एक साधारण परिवार में हुआ। पिता विष्णुदेव यादव एक किसान थे, जो बाढ़ की मार से जूझते हुए भी बेटे को पढ़ाई का महत्व सिखाते रहे। गौतम ने पटना विश्वविद्यालय से राजनीति शास्त्र में पीएचडी की और बिहार सरकार में बीडीओ बनकर प्रशासनिक सेवा में कदम रखा। लेकिन 2015 में उन्होंने नौकरी छोड़ दी, क्योंकि उनका सपना था- अपने इलाके की गरीबी, बेरोजगारी और बाढ़ जैसी समस्याओं को जड़ से उखाड़ना।
गौतम ने एक साक्षात्कार में कहा- "मैं अधिकारी बनकर फाइलों में कैद नहीं रहना चाहता था, जनता के बीच रहकर लड़ना चाहता था।"
2020 में हार के बावजूद उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। इलाके के गांव-गांव घूमकर लोगों से जुड़े। उनकी सादगी ने सबको मोह लिया- वे आज भी चप्पल पहनकर चलते हैं, साइकिल पर प्रचार करते हैं और खुद को 'गरीब मजदूर' कहते हैं। चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक, उनके खिलाफ 5 आपराधिक मामले हैं, लेकिन ये राजनीतिक साजिशों से जुड़े बताए जाते हैं। उनकी संपत्ति महज 1.3 करोड़ रुपये है, जो एक विधायक के लिए सादगी का उदाहरण है।

स्थानीय मुद्दों पर फोकस्ड रहे
एनडीए की लहर में जीतना आसान नहीं था। राज्य स्तर पर विकास के बड़े वादे चल रहे थे, लेकिन डॉ. गौतम ने स्थानीय मुद्दों को हथियार बनाया। महिषी इलाका हर साल बाढ़ से तबाह होता है- नदियां उफनती हैं, फसलें बह जाती हैं, गांव डूब जाते हैं। उन्होंने प्रचार में वादा किया, बाढ़ नियंत्रण, नालियां, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र मेरी प्राथमिकता होंगी। अब जीत के बाद उनको वादा निभाना है।
चुनाव विश्लेषक कुणाल प्रताप सिंह कहते हैं- "जन सुराज पार्टी और इंडिपेंडेंट उम्मीदवारों ने वोट काटे, लेकिन डॉ. गौतम की व्यक्तिगत लोकप्रियता ने एनडीए के वोट बैंक में सेंध लगाई। यादव वोट और युवाओं का समर्थन उनकी जीत का राज रहा।"
डॉ. गौतम की जीत बिहार की राजनीति में एक नई रोशनी है। एनडीए की आंधी में जहां महागठबंधन डूब गया, वहां उन्होंने अपनी मेहनत से किला फतह किया। यह कहानी बताती है कि सच्ची सेवा और जनता का विश्वास अहम है। चाहे वह अफसर के रूप में हो या नेता के तौर पर।
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