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    गोपालगंज के थावे में है मां दुर्गा का शक्‍ति‍पीठ, जहां भक्त की पुकार पर प्रकट हुई थीं मां भवानी

    By Sumita JaiswalEdited By:
    Updated: Tue, 13 Apr 2021 07:39 AM (IST)

    गोपालगंज जिले में थावेवाली मां दुर्गा का मंदिर 300 साल पूर्व स्थापित जाग्रत शक्तिपीठों में से एक है। यहां चैत्र व शारदीय नवरात्र के दौरान यहां पूजा का विशेष महत्व है। इस मंदिर में बिहार ही नहीं यूपी और नेपाल से भी भक्‍तों की भीड़ उमड़ती है।

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    गोपालगंज में मां थावे मंदिर में भवानी की तस्‍वीर।

    गोपालगंज, जागरण संवाददाता। बिहार के गोपालगंज जिले में थावे का अति प्राचीन दुर्गा मंदिर देवी भक्‍ताें की श्रद्धा का बड़ा केंद्र है। गोपालज जिला मुख्यालय से छह किलोमीटर दूर सिवान-गोपालगंज मुख्य मार्ग पर स्थित मां दुर्गा के इस मंदिर में सिर झुकाने के लिए बिहार के साथ उत्‍तर प्रदेश और नेपाल के लोग भी आते हैं। करीब तीन सौ साल पूर्व स्थापित यह जाग्रत प्राचीन शक्ति पीठ मंदिरों में से एक है। प्रति वर्ष नवरात्र के समय यहां मेला लगता है। कहा जाता है कि यहां मां भगवती भक्त की पुकार पर प्रकट हुई थीं। यहां पूजा अर्चना करने से भक्तों की हर मनोकामना पूर्ण होती है। प्रतिवर्ष अष्टमी को यहां बलि का विधान है, जिसे हथुआ राजपरिवार की ओर से संपन्न कराया जाता है। यह स्थान हथुआ राज के ही अधीन था। मंदिर की पूरी देखरेख पहले हथुआ राज प्रशासन द्वारा ही की जाती थी। अब यह मंदिर बिहार पर्यटन के नक्शे में आ गया है। यहां जाने के लिए गोपालगंज शहर से हर समय आवागमन की सुविधा है।

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    चेरो वंश से जुड़ा है मंदिर का इतिहास

     इस जाग्रत पीठ का इतिहास भक्त रहषू स्वामी और चेरो वंश के क्रूर राजा की कहानी से जुड़ी हुई है। 1714 के पूर्व यहां चेरो वंश के राजा मनन सेन का साम्राज्य हुआ करता था। ऐसा माना जाता है कि इस क्रूर राजा के दबाव डालने पर भक्त रहषू स्वामी की पुकार पर मां भवानी कामरुप कामाख्या से चलकर थावे पहुंचीं। उनके थावे पहुंचने के साथ ही राजा मनन सिंह का महल खंडहर में तब्दील हो गया। भक्त रहषू के सिर से मां ने अपना कंगन युक्त हाथ प्रकट कर राजा को दर्शन दिया। देवी के दर्शन के साथ ही राजा मनन सेन का भी प्राणांत हो गया। इस घटना की चर्चा पर स्थानीय लोगों ने वहां देवी की पूजा शुरू कर दी। तब से यह स्थान जाग्रत पीठ के रूप में मान्य है।

    वन प्रदेश से घिरा है मंदिर

    ऐतिहासिक थावे स्थित दुर्गा मंदिर तीन ओर से वन प्रदेशों से घिरा हुआ है। वन क्षेत्र से घिरे होने के कारण पूरा मंदिर परिसर रमणीय दिखता है। मंदिर में प्रवेश व निकास के लिए एक-एक द्वार है, जहां सुरक्षा की पुख्ता व्यवस्था रहती है।

    सप्तमी की पूजा का विशेष महत्व

    थावे दुर्गा मंदिर में चैत्र व शारदीय नवरात्र के दौरान सप्तमी के दिन होने वाली पूजा का विशेष महत्व है। इस पूजा में भाग लेने के लिए भक्त दूर-दूर से मंदिर में पहुंचते हैं। करीब एक घंटे तक चलने वाली इस पूजा के बाद महाप्रसाद का वितरण किया जाता है। इसके प्रति लोगों में बड़ी आस्था है। जो नहीं पहुंच पाते, उनकी भी इच्छा यहां का प्रसाद ग्रहण करने की होती है।

    नवरात्र में आरती के बाद बंद नहीं होते कपाट  

    यहां सालों भर मां की दिन में दो बार आरती होती है। नवरात्र को छोड़ अन्य दिनों में रात्रि की आरती के बाद मंदिर के कपाट बंद कर दिये जाते हैं। लेकिन नवरात्र के दौरान कपाट बंद नहीं होते। जय अंबे गौरी, मैया जब अंबे गौरी..., आरती यहां कई सालों से हो रही है।

    सड़क व रेल मार्ग से जुड़ा है मंदिर

     यह मंदिर गोपालगंज से सिवान जाने वाले एनएच पर अवस्थित है। गोपालगंज से और सिवान से भी हर समय वाहन उपलब्ध रहते हैं। जिला मुख्यालय से प्रत्येक पांच मिनट पर आॅटो व बस की सुविधा मंदिर तक जाने के लिए है। इसके अलावा मंदिर के समीप ही थावे जंक्शन स्थित है। जहां सिवान व गोरखपुर से ट्रेन की सुविधा है। थावे जंक्शन के समीप देवी हाल्ट भी है। जहां इस रुट से आने वाली सभी पैसेंजर ट्रेनों का ठहराव इस हाल्ट पर होता है। शारदीय और वासंतिक नवरात्र के दिनों में सभी ट्रेनों का ठहराव देवी हाल्ट पर होता है।

    300 साल से भी पुराना है मंदिर का इतिहास : पुजारी

     मंदिर के मुख्य पुजारी सुरेश पाण्डेय का कहना है कि मंदिर का इतिहास तीन सौ साल से भी अधिक पुराना है। यहां देवी की पूजा आदिकाल से पूरी भक्ति व निष्ठा के साथ की जाती है। उन्होंने बताया कि यहां मां भगवती यहां भक्त की पुकार पर प्रकट हुई थीं। यहां पूजा अर्चना करने से भक्तों की हरेक मनोकामना पूर्ण होती है। नवरात्र के दौरान यहां पूजा अर्चना करने का विशेष महत्व है।

     

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