लंग्स कैंसर की देर से होती है पहचान, अमेरिकी डॉक्टर ने बताया कैसे करें बचाव?
एक अमेरिकी डॉक्टर ने लंग्स कैंसर की देर से पहचान होने के खतरे और बचाव के उपायों पर प्रकाश डाला है। उन्होंने बताया कि कैसे शुरुआती पहचान से बेहतर इलाज ...और पढ़ें

जागरण संवाददाता, पटना। इंटरस्टिशियल लंग डिजीज (आइएलडी) एक गंभीर बीमारी है, लेकिन यह अक्सर देर से पहचान में आती है। इसके सही समय पर पहचान होने से पूरी तरह निदान संभव है। ये बातें अमेरिका के यूनिवर्सिटी ऑफ वाशिंगटन के विश्व प्रसिद्ध लंग्स रोग विशेषज्ञ डॉ. गणेश रघु ने कहीं।
वह ज्ञान भवन में आयोजित देश की प्रतिष्ठित श्वसन रोग कांग्रेस नैपकान 2025 के वैज्ञानिक सत्र को संबोधित कर रहे थे। शनिवार को इंटरस्टिशियल लंग डिजीज (आइएलडी) पर केंद्रित बहुविषयक चर्चा विशेष आकर्षण का केंद्र रही। इस सत्र में उन्होंने फाइब्रोटिक फेफड़ों की बीमारियों पर वैश्विक अनुभव साझा किए।
बताया कि आइएलडी एक गंभीर, लेकिन अक्सर देर से पहचानी जाने वाली बीमारी है, इसमें समय पर निदान और विशेषज्ञ आधारित उपचार से रोग की प्रगति को रोका जा सकता है।
स्टेज फोर में इलाज कठिन
उन्होंने बताया कि पूरे विश्व में लंग्स कैंसर की पहचान सबसे देर होती है, स्टेज फोर में जानकारी होने के कारण इसका उपचार कर ठीक करना कठिन हो जाता है। यदि समय पर पहचान हो जाए, तो इसे पूरी तरह ठीक किया जा सकता है।
इस पैनल चर्चा में डॉ. ऋतु अग्रवाल ने जटिल आइएलडी मामलों के प्रबंधन, डॉ. अनंत मोहन ने भारतीय संदर्भ में शोध व क्लिनिकल चुनौतियों तथा डॉ. रोहिणी हांडा ने आटोइम्यून रोगों से जुड़े फेफड़ों के प्रभावों पर अपने विचार रखे। कार्यक्रम का आयोजन आयोजन सचिव डॉ. सुधीर कुमार के नेतृत्व में किया गया।
नोएडा के डॉ. प्रणय बिनोद, डॉ. राजीव रंजन, लखनऊ के डॉ. सूर्यकांत एवं पारस के डॉ. कुमार अभिषेक ने कहा कि आइएलडी सहित अन्य श्वसन रोगों से प्रभावी ढंग से निपटने के लिए बहुविषयक सहयोग और अंतरराष्ट्रीय अनुभवों का आदान‑प्रदान आवश्यक है। कार्यक्रम में चेस्ट ओरेशन अवार्ड से चार विशेषज्ञों को सम्मानित किया गया।
टीबी, लेटेंट टीबी और एनटीएम पर विशेषज्ञों का फोकस
टीबी से जुड़े सत्रों में डॉ. सूर्यकांत, डॉ. संजीव नायर और डॉ. अमित शर्मा ने ड्रग रेजिस्टेंट टीबी, लेटेंट टीबी और नान-ट्यूबरकुलस माइकोबैक्टीरियल (एनटीएम) संक्रमण की बढ़ती चुनौतियों पर प्रकाश डाला। वक्ताओं ने सही जांच, समय पर पहचान और लक्षित उपचार की आवश्यकता पर जोर दिया।
ब्रोन्किइक्टेसिस, अस्थमा और एलर्जी का उन्नत उपचार
ब्रोन्किइक्टेसिस सत्रों में डॉ. साईं के. एस. शास्त्री और डॉ. विवेक चौकसे ने टीबी के बाद इस रोग के बढ़ते मामलों और दीर्घकालिक प्रबंधन पर चर्चा की। अस्थमा और एलर्जी सत्रों में डॉ. सलील भार्गव, डॉ. पारुल मृगपुरी, डॉ. हेमंत शर्मा और डॉ. के. के. अग्रवाल ने प्रिसीजन मेडिसिन, बायोलाजिक्स और सीवियर अस्थमा के आधुनिक उपचार विकल्पों को रेखांकित किया।

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