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    जैन मुनियों की चरणरज से पवित्र होती रही है पाटलिपुत्र की धरती, आस्‍था का केंद्र हैं पटना के ये जैन मंदिर

    By Shubh Narayan PathakEdited By:
    Updated: Sat, 24 Apr 2021 01:22 PM (IST)

    Lord Mahavir Jayanti Special बिहार की धरती दुनिया को मानवता का संदेश देने वाले भगवान महावीर की धरती है। राज्‍य की राजधानी पटना भी कई प्रसिद्ध जैन मुनियों की कर्मभूमि रहा है। शहर में कई प्रसिद्ध जैन मंदिर हैं।

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    पटना सिटी के बेगमपुर स्थित दादाबाड़ी जैन मंदिर। जागरण

    पटना, जागरण संवाददाता। बिहार की धरती महापुरुषों और साधु-संतों की धरती रही है। यह धरती भगवान बुद्ध, महावीर, गुरु गोविंद सिंह जैसे अहिंसा, कर्म, त्याग और देश प्रेम के महान संदेश वाहकों का जन्म स्थल भी है। इन महापुरुषों ने देश और राज्‍य की सीमाओं से बाहर असंख्य लोगों को जीवन और चिंतन को प्रभावित तथा समृद्ध किया है। बिहार में विभिन्न वर्गो के लोगों से जुड़े कई धार्मिक स्थल हैं। इनमें जैन मंदिरों का भी जिक्र आता है। पटना में स्थापित प्राचीन जैन मंदिरों में देश के दुनिया के जैन संतों का आगमन होता रहा है। शहर में प्राचीन  जैन मंदिरों में पटना सिटी के दादाबाड़ी जैन मंदिर, गुलजारबाग स्थित कमलदह पथ, मीठापुर व कांग्रेस मैदान स्थित दिगंबर जैन मंदिर आदि प्रमुख मंदिरों की अपनी महत्ता और इतिहास है। 25 अप्रैल यानी रविवार को पड़ रही भगवान महावीर की जयंती पर शहर के जैन मंदिरों पर प्रकाश डालती रिपोर्ट।

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    जैन महामुनि निर्वाणस्थली है कमलदह दिगंबर जैन मंदिर

    पटना के प्राचीन जैन मंदिरों में से एक गुलजारबाग स्थित कमलदह दिगंबर जैन मंदिर, जैन मुनियों के आकर्षण का केंद्र रहा है। इस मंदिर का निर्माण 1729 में हुआ था। जैन श्रद्धालु मुनीश जैन की मानें तो जिस समय मंदिर का निर्माण यहां पर हुआ था, उस दौरान इन जगहों पर बहुत सारे तालाब हुआ करते थे। तालाबों के बीचो-बीच मंदिर स्थापित किया गया था। इन तालाबों में कमल के ढेर सारे पुष्प होते थे, जो लोगों को अपनी ओर आकर्षित करते थे। कमल के फूल से घिरे होने के कारण इस जगह का नामकरण कमलदह मंदिर पड़ा। यह मंदिर दिगंबर जैन महामुनि सेठ सुदर्शन के निर्वाण स्थली के रूप में प्रसिद्ध हुआ। मंदिर में सुदर्शन मुनि के चरण श्याम पाषाण विराजमान हैं।

    भागलपुर में हुआ था सुदर्शन मुनि का जन्‍म

    जानकारों की मानें तो सेठ सुदर्शन का जन्म चंपानगर (भागलपुर) के नगर सेठ वृषभदास के घर हुआ था। उनकी माता का नाम जिनमती था। ये जन्म से बहुत ही सुंदर थे, इसलिए इनका नाम सुदर्शन रखा गया। कुछ समय बाद महाराज सुदर्शन शादी विवाह के बंधन में बंधे। कुछ समय बाद सुदर्शन को वैराग्य की भावना मन में जागृत हुई और घर परिवार छोड़ जैन मुनि की दीक्षा ली। मुनि के रूप में हर जगह विचरण करने लगे। विचरण करने के दौरान मुनि सेठ सुदर्शन पाटलिपुत्र पहुंचे। मुनि पाटलिपुत्र के कमलदह में पौष पंचमी को निर्वाण को प्राप्त हुए। इस मंदिर में प्रतिवर्ष पौष शुक्ल पंचमी को धूमधाम से पर्व मनाया जाता है। इस आयोजन में देश के अलग-अलग हिस्सों से जैन मुनि आते हैं।

    दादाबाड़ी के रूप में विख्यात है जैन मंदिर

    पटना सिटी के बेगमपुर स्थित दादाबाड़ी जैन मंदिर भी पटना के प्रसिद्ध जैन मंदिरों में से एक है। जैन श्रद्धालु एमपी जैन की मानें तो लगभग 400 वर्ष पुराना है। मंदिर समिति के प्रदीप जैन की मानें तो यहां पर प्रीवक आचार्य दादा जिनदत्त सूरिजी, मणिधारी जिनचंद्रसूरिजी, जिनकुशलसूरिजी व दादा जिनचंद्र जी महाराज ने यहां पर साधना की थी। चार दादा गुरुओं की कृति बनाए रखने को लेकर दादाबाड़ी मंदिर के रूप में विख्यात हुआ। लगभग 30 हजार वर्गफुट में फैले मंदिर परिसर में श्रद्धालुओं के लिए ध्यान के लिए भवन, पुस्तकालय, व फूलों के बगीचे भी हैं, जहां पर जैन श्रद्धालुओं का आना-जाना लगा रहता है। महावीर जयंती पर यहां धूमधाम से पूजा-अर्चना होती है।

    1950 के आसपास पड़ी थी मंदिर की नींव

    मीठापुर का श्री दिगंबर जैन मंदिर जैन श्रद्धालुओं के लिए आस्था का सबसे बड़ा केंद्र है। सुरेंद्र जैन बताते हैं कि 1950 के दशक में मंदिर की नींव पड़ी थी। मंदिर में भगवान महावीर की आकर्षक प्रतिमा है, जहां श्रद्धालु  पूजा-अर्चना करने आते हैं। मीठापुर में रहने वाजे जैन अनुयायी के अलावा विभिन्न धर्म व वर्ग के लोगों निष्ठा भाव से आकर जैन तीर्थंकर महावीर की पूजा अर्चना करते रहे हैं। वहीं देश के कई जैन मुनियाें का भी विश्राम स्थल भी बनता है। कई मुनियों ने मंदिर में आकर तप साधाना करते रहे हैं।

    जैन मुनि की देखरेख में मंदिर की स्थापना

    सफेद संगमरमर से निर्मित कदमकुआं के श्री 1008 पार्श्‍वनाथ दिगंबर जैन मंदिर की स्थापना वर्ष 2017 में हुई थी। मंदिर से जुड़े मुकेश जैन बताते हैं कि मंदिर का उद्घाटन बिहार के तत्कालीन राज्यपाल रामनाथ कोविंद के हाथों हुआ था। मंदिर निर्माण को लेकर जैन मुनि शीतल सागर का भी योगदान रहा है। उन्हीं की प्रेरणा से यहां पर मंदिर स्थापित किया गया था। मंदिर बनने में करीब तीन वर्षो का समय लगा। लगभग छह हजार वर्गफुट में बने मंदिर में महावीर धर्म के 22वें तीर्थंकर पार्श्‍वनाथ की प्रतिमा स्थापित है। देश के अलग-अलग जगहों से जैन मुनियाें का आना-जाना यहां लगा रहता है। यहां पर जैन मुनियाें का सत्संग भी आयोजित होता रहता है। इसका लाभ शहरवासी समय-समय पर उठाते रहते हैं।