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सिताब दियारा नहीं बक्सर में जन्मे थे जयप्रकाश नारायण, ऐसे बने देश के लोकनायक

बहुत कम लोग जानते हैं कि लोकनायक जयप्रकाश नारायण की जन्मस्थली सिताबदियारा नहीं बल्कि बक्सर जिला के सिकरौल लख में हुआ था। जानिए उनसे संबंधित बातें इस रिपोर्ट में...

By Kajal KumariEdited By: Published: Fri, 11 Oct 2019 01:48 PM (IST)Updated: Fri, 11 Oct 2019 10:46 PM (IST)
सिताब दियारा नहीं बक्सर में जन्मे थे जयप्रकाश नारायण, ऐसे बने देश के लोकनायक
सिताब दियारा नहीं बक्सर में जन्मे थे जयप्रकाश नारायण, ऐसे बने देश के लोकनायक

पटना, जेएनएन।“जेपी आंदोलन से देश में हलचल पैदा हुई और 1977 में हुए चुनाव में पहली बार लोगों ने कांग्रेस को सत्ता से दूर कर दिया। इन्दिरा गांधी का गुमान टूट गया। उम्मीद थी जेपी सत्ता की बागडोर संभालेंगे, पर फक्कड़ संत सत्ता लेकर क्या करता? वो निकल पड़ा, भूदान आंदोलन पर, देश सेवा, मानव सेवा और कुछ उसे ताउम्र कुछ नहीं चाहिए था।”

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अस्सी के दशक में, जब इन्दिरा गांधी का हिटलरी गुमान देश को एक और गुलामी की ओर ले जा रहा था और बूढ़े जयप्रकाश (जेपी) ने उसके खिलाफ आंदोलन का बिगुल फूंका था। जी हां, 11 अक्टूबर को उसी जेपी की जयंती थी। बिहार आंदोलन वाला जेपी, संपूर्ण क्रांति वाला जेपी, सरकार की चूलें हिला देने वाला जेपी, पूरे देश को आंदोलित करने वाला जेपी और सत्ता को धूल चटाने वाला जेपी।

जयप्रकाश नारायण एक ऐसा नेता जिसने संपूर्ण क्रांति आंदोलन की न केवल कल्पना की बल्कि उसकी अगुवाई भी की। संपूर्ण मतलब सामाजिक, राजनीतिक, बौद्धिक और सांस्कृतिक आंदोलन। 

बक्सर के सिकरौल में हुआ था जेपी का जन्म 

लेखक और पत्रकार मुरली मनोहर श्रीवास्तव के मुताबिक बहुत कम लोग जानते हैं कि जयप्रकाश नारायण (जेपी) का जन्म 11 अक्टूबर 1902 को बिहार के बक्सर जिले के डुमरांव अनुमंडल के सिकरौल लख पर हुआ था। ब्रिटिश सरकार के अधीन सिंचाई विभाग में हरसु दयाल वहां पदास्थापित थे। साहित्यकार रामवृक्ष बेनीपुरी ने 'जयप्रकाश' नामक अपनी पुस्तक में जेपी की जीवनी लिखते हुए बताया है कि उनके दादा बाबू देवकी नंदन लाल अंग्रेजी राज में दारोगा थे।

जेपी के पिता हरसु दलाल सिकरौल लख के नहर विभाग में जिलदार के पद पर कार्यरत थे। 1974 के आंदोलनकारी बेलहरी निवासी कमलेश कुमार सिंह जो कि सिकरौल हाई स्कूल से पासआउट हैं तथा सिकरौल हाई स्कूल के पूर्व प्रधानाचार्य द्वारिका लाल भी इस बात से सहमत है कि जेपी के जन्म के समय उनके पिता सिकरौल लख पर कार्यरत थे।

हरसु दयाल अपनी पत्नी के साथ सिकरौल लख स्थित हाई स्कूल के बगल में विभागीय क्वार्टर में पूरे परिवार के साथ रहते थे। ऐसा माना जाता है कि कैमूर के हरसु ब्रह्मधाम में माता-पिता की मन्नत के बाद जेपी का जन्म हुआ था और उनका शुरुआती बचपन अपने पिता के सरकारी क्वार्टर में ही गुजरा था। 

पैतृक गांव है सिताब दियारा 

बिहार के छपरा जिले के सिताब दियारा जयप्रकाश का पैतृक गांव है। इस जगह पर इनकी स्मृतियों को सहेजने की पूरी कोशिश की गई है। लेकिन उनकी जन्मस्थली को लेकर बिहार और यूपी के सिताब दियारा के बीच विवाद हमेशा से रहा है। हालांकि इन सभी से इतर अगर सही मायने में देखा जाए तो जेपी अपनी कार्यशैली से हमेशा सुर्खियों में बने रहे। सिकरौल लख में जन्मे, सिताब दियारा पैतृक भूमि से प्रसिद्ध हुए जय प्रकाश नायारण देश के लोकनायक बने।

जब चर्चित हुए जयप्रकाश

अक्टूबर 1920 में जेपी की शादी प्रभावती से हुई। विवाहोपरांत प्रभावती कस्तुरबा गांधी के साथ गांधी आश्रम में रहने लगी थीं। इसके बाद जेपी भी डॉ. राजेंद्र प्रसाद और अनुग्रह नारायण सिंह द्वारा स्थापित बिहार विद्यापीठ में शामिल हो गए। 1929 में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम परवान पर था। उसी वक्त जेपी गांधी-नेहरु के संपर्क में आए।

1932 में गांधी-नेहरु के जेल जाने के बाद जेपी ने कमान संभाल लिया। लेकिन उनको भी उसी वर्ष मद्रास से गिरफ्तार कर नासिक जेल भेज दिया गया। उस समय जेल में कई महत्वपूर्ण लोगों से इनकी मुलाकात हुई। इसी का नतीजा रहा कि कुछ समय बाद कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी का जन्म हुआ। 

दूरदृष्टि सोच वाले नेता थे जेपी 

राष्ट्रीय मुद्दों के साथ-साथ जेपी को अंतरराष्ट्रीय मुद्दों की भी समझ थी। 1934 में चुनाव में उन्होंने कांग्रेस के हिस्सा लेने का विरोध किया। लोकनायक 1939 में दूसरे विश्वयुद्ध के समय अंग्रेजों का विरोध करते हुए 1943 में गिरफ्तार हुए। तब गांधीजी ने कहा था कि जेपी छूटेंगे तभी फिरंगियों से कोई बात होगी। आखिरकार, 1946 में जेपी जेल से रिहा हुए।

स्वतंत्रता संग्राम के दौरान हथियारों के इस्तेमाल को अनिवार्य समझा, जिसके बाद उन्होंने नेपाल जाकर “आज़ाद दस्ते” का गठन किया और उन्हें प्रशिक्षण दिया। 19 अप्रैल 1954 में, जयप्रकाश नारायण स्वतंत्रता सेनानी विनोबा भावे से प्रोत्साहित होकर गया में आयोजित “सर्वोदय आंदोलन” से जुड़ गए।

1957 में, उन्होंने लोकनीति के पक्ष में राजनीति छोड़ने तक का फैसला किया। बिहार के छात्रों और युवकों ने भ्रष्टाचार, महंगाई, बेरोजगारी और गलत शिक्षा नीति के खिलाफ 18 मार्च, 1974 को पटना से पूरे देश में आंदोलन की शुरुआत हुई ,जिसमें जेपी का नेतृत्व मिला।

जेपी ने 05 जून 1975 को पटना के गांधी मैदान में विशाल जनसमूह को संबोधित किया, जहां उन्हें ‘लोकनायक‘ की उपाधि दी गई। इसके कुछ दिनों बाद उन्होंने दिल्ली के रामलीला मैदान में ऐतिहासिक भाषण देकर देश के विपक्षियों को एकजुट किया।

जेपी समाजवादी, सर्वोदयी तथा लोकतान्त्रिक जीवन पद्धति के समर्थक थे। उनके अनुसार समाजवाद एक जीवन पद्धति है, जो मानव की स्वतन्त्रता, समानता, बन्धुत्व तथा सर्वोदय की समर्थक है, समाजवाद आर्थिक तथा सामाजिक पुनर्निमाण की पूर्ण विचारधारा है। उन्होंने अनेक किताबें भी लिखी हैं, जिनमें से “व्हाई सोसियलिज्म”? (1936) प्रमुख है।

जेपी आंदोलन के केंद्र में रहा बिहार

लाखों राजनीतिक नेता और कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया। उस समय के छात्र नेता के रुप में लालू प्रसाद यादव, नीतीश कुमार, रामविलास पासवान,  आर.के.सिन्हा, सुशील कुमार मोदी, रवि शंकर प्रसाद, शिवानंद तिवारी, वशिष्ठ नारायण सिंह, नरेंद्र कुमार सिंह, राम जतन सिन्हा और कृपानाथ पाठक प्रमुख थे। इनमें से कई लोगों को चोटें आयीं।

पुलिस द्वारा निर्मम प्रहार से भीड़ में उत्तेजना फैल गई। भीड़ बेकाबू हो गई, भीड़ किसी नेता के कंट्रोल में नहीं रही। पटना शहर को सेना के हवाले कर दिया गया। मुख्यमंत्री अब्दुल गफूर और कुछ मंत्रियों ने छिप कर खुद को बचाया। आंदोलन के हिसंक होने पर जेपी ने कहा था कि हिंसा और आगजनी से क्रांति नहीं होगी। अपने आंदोलन की दुर्दशा देखकर कुछ छात्रों और युवकों ने जेपी से मुलाकात की।

जेपी ने कहा कि आंदोलन में हिंसा के लिए कोई स्थान नहीं होगा। इस शर्त को आंदोलनकारी ने माना। जेपी ने बिहार विधान सभा के सदस्यों से सदन की सदस्यता से इस्तीफा दे देने की अपील की। अधिकतर प्रतिपक्षी सदस्यों ने तो इस्तीफा दे दिया पर कांग्रेस सदस्यों ने इस्तीफा नहीं दिया।

इस आंदोलन का नतीजा रहा कि 1977 की जनवरी में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने लोकसभा चुनाव की घोषणा कर दी। इंदिरा गांधी ने यह ऐलान इमरजेंसी पूरी तरह खत्म किए बगैर कर दिया था। इमरजेंसी की ज्यादतियों और धांधलियों के कारण सरकार पर प्रतिपक्ष का विश्वास नहीं था। जय प्रकाश नारायण से लेकर जॉर्ज फर्नांडिस तक सबने आशंकाएं जाहिर की थीं। जेपी के साथ जॉर्ज की चर्चा इसलिए महत्पूर्ण है कि जॉर्ज गैर अहिंसक तरीके से इमरजेंसी का विरोध कर रहे थे।

जेपी की नेताओं को सीख

25 जून 1975 की रात को आपातकाल की घोषणा कर दी गई थी। इस बीच चार गैर कांग्रेसी दलों-जनसंघ, संगठन कांग्रेस, सोशलिस्ट पार्टी और भारतीय लोकदल ने मिलकर जनता पार्टी बना ली थी। इन दलों के विलयन में जब कुछ नेताओं ने अड़चन डालने की कोशिश की तो जेपी ने उन्हें चेताया कि यदि आप ऐसा करेंगे तो हम अलग दल बना लेंगे। फिर सभी दलों के लोग एक साथ आने को तैयार हो गए।

जनता पार्टी के अध्यक्ष मोरारजी देसाई और चौधरी चरण सिंह उपाध्यक्ष चुने गए। युवा तुर्क चंद्रशेखर का गुट भी जनता पार्टी में शमिल हो गया था। जेपी के अपील पर लोगों ने जनता पार्टी के लिए उदारतापूर्वक दान दिया जिससे चुनावी खर्च उठाने में सफलता मिली। उस चुनाव में मुख्य रूप से कांग्रेस के साथ सीपीआई थी तो, जनता पार्टी के साथ सीपीएम और अकाली दल जग जीवन राम के नेतृत्व वाली कांग्रेस फॉर डेमोक्रेसी ने जनता पार्टी के साथ चुनावी तालमेल किया।

जगजीवन राम के कांग्रेस छोड़ने के बाद ही जनता पार्टी के पक्ष में चुनावी हवा बनी। 1977 के चुनाव में जनता पार्टी को लोकसभा की 295 और कांग्रेस को 154 सीटें मिलीं। मोरारजी देसाई प्रधान मंत्री बने। जनता पार्टी के कुछ बड़े नेताओं की राजनीतिक महत्वाकांक्षा के कारण मोरारजी सरकार अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सकी। वे समाज-सेवक थे, जिन्हें 'लोकनायक' के नाम से भी जाना जाता है।

आपातकाल के दौरान हजारीबाग जेल में बंद रहने के कारण उनकी तबीयत अचानक ख़राब हो गई, यह देखते हुए उन्हें 12 नवम्बर 1976 को रिहा कर दिया गया। रिहा होने के बाद भी वे चलने फिरने में असमर्थ थे। मुंबई के जसलोक अस्पताल में जांच के लिए ले जाया गया, जहां उनकी किडनी ख़राब हो गई थी, जिसके बाद वह डायलिसिस पर ही रहे और अंत में 8 अक्टूबर 1979 को पटना में दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया।

वर्ष 1965 में जेपी को समाजसेवा के लिए मैगसेसे पुरस्कार दिया गया था जबकि 1998 में मरणोपरांत उन्हें भारत रत्न से नवाजा गया। 


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