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    Lok Sabha Elections 2024 : बिहार में अकेले चुनाव क्यों नहीं लड़ती BJP-RJD? मांझी जैसे नेता कर देते हैं खेल

    Bihar Politics पार्टियां पांच साल तक भले ही मजबूती का दावा करती रहे मगर ठीक चुनाव के समय उनकी हवा निकल जाती है जब उन्हें पता चलता है कि लड़ने लायक उम्मीदवार तो दल में हैं ही नहीं। यही कारण है कि लंबे समय से राज्य में कोई पार्टी विधानसभा या लोकसभा की सभी सीटों पर अकेले नहीं लड़ रही हैं।

    By Arun Ashesh Edited By: Mohit Tripathi Updated: Sat, 23 Mar 2024 04:30 PM (IST)
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    बिहार में अकेले चुनाव नहीं लड़ती BJP-RJD। (फाइल फोटो)

    राज्य ब्यूरो, पटना। Bihar Political News In Hindi । बिहार में गठबंधन के कारण सभी पार्टियों को विधानसभा या लोकसभा की निर्धारित से कम सीटों पर ही उम्मीदवार देना पड़ता है। यह संख्या भी अपने दलों से पूरी नहीं हो पाती है। 2019 के लोकसभा चुनाव में सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस को लड़ने के लिए सिर्फ नौ सीटें मिली थीं। इनमें से छह उम्मीदवार बाहर से बुलाने पड़े थे।

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    सबसे बड़ी पार्टी भाजपा को 2014 के मोदी लहर में दूसरे दलों से उम्मीदवार लेना पड़ा था। इस बार भी उधार के उम्मीदवारों की खोज जारी है। संभावना यही है कि भाजपा को छोड़ अन्य दल बाहरी उम्मीदवारों को आश्रय दें।

    जदयू हो या राजद दूसरे दल से आए नेताओं को दे रही तरजीह

    शुरुआत जदयू से हो चुकी है। जदयू ने कांग्रेस-राजद सहित अन्य दलों में रहीं पूर्व सांसद लवली आनंद को शिवहर से उम्मीदवार बनाया है। वह चुनाव की अधिसूचना जारी होते ही जदयू में शामिल हो गईं।

    विधानसभा में सबसे बड़े दल राजद को भी दूसरे दलों से उम्मीदवार लेना पड़ रहा है। जदयू के राष्ट्रीय महासचिव अली अशरफ फातमी और युवा जदयू के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अभय सिंह कुशवाहा राजद में शामिल हो गए हैं। फातमी मधुबनी और अभय औरंगाबाद लोकसभा क्षेत्र से राजद उम्मीदवार बनाए गए हैं।

    कांग्रेस में जन अधिकार पार्टी का विलय हो गया है। इसके संस्थापक राजेश रंजन ऊर्फ पप्पू यादव भी लोकसभा चुनाव लड़ने की उम्मीद में हैं। वह पहले भी सांसद रह चुके हैं। उनकी पत्नी रंजीता रंजन कांग्रेस से राज्यसभा सदस्य हैं।

    बड़े दलों के सहारे राजनीति करने वाली पार्टियां

    दिलचस्प यह है कि बिहार की कई पार्टियों के नेता दूसरे दलों के सहारे राजनीति करते हैं और उन्हें मददगार दलों की शर्तें भी माननी पड़ती हैं। हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा के संस्थापक जीतनराम मांझी लोकसभा की एक सीट लेकर राजी हो गए। वे गया से चुनाव लड़ रहे हैं।

    राजग ने एक से अधिक सीट देने की उनकी मांग को ठुकरा दिया। पिछले चुनाव में यह मोर्चा महागठबंधन के साथ था। तीन सीटें दी गईं थीं। तीनों पर हार हुई।

    राष्ट्रीय लोक मोर्चा के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा को भी राजग में शामिल होने पर एक सीट दी गई है। वह काराकाट से चुनाव लड़ रहे हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में उपेंद्र कुशवाहा की तत्कालीन राष्ट्रीय लोक समता पार्टी को महागठबंधन की तरफ से पांच सीटें दी गई थीं। सब पर हार हुई।

    किसके साथ जाएगी मुकेश सहनी की वीआईपी?

    विकासशील इंसान पार्टी का निर्णय नहीं हुआ है। इस पार्टी के संस्थापक मुकेश सहनी भी दूसरे दलों के सहयोग से चुनाव जीतना चाहते हैं।

    पिछले चुनाव में मुकेश सहनी को लोकसभा की तीन सीटें दी गई थीं। तब वे महागठबंधन के घटक के रूप में लड़े थे। खगड़िया में उनकी हार हुई। मुजफ्फरपुर और मधुबनी में उनके उम्मीदवार हारे।

    इस समय राजग और महागठबंधन दोनों से उनकी बातचीत चल रही है। संभावना यह है कि उन्हें स्वयं के लिए कोई एक सीट दे दी जाएगी। मांझी और कुशवाहा की तरह मुकेश सहनी भी जीत के लिए दूसरे दलों पर आश्रित हैं।

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